जीवन एक भौतिक शब्द नहीं, बल्कि एक यात्रा है। सुनने में साधारण लगता है कि जीवन जन्म से शुरू होकर सामान्य तौर पर मृत्यु पर समाप्त हो जाता है, पर यह धारणा जितनी सामान्य प्रतीत होती है, अंदर से ये उतनी ही जटिल है। यह यात्रा हम सभी को कभी न कभी ऐसे दो-राहे पर लाकर खड़ी कर देती है, जहां हमें चुनाव करना होता है- सही और गलत के बीच। ऐसे यह चुनाव आमतौर पर सरल ही होता है।

हम सभी इस स्पष्ट तथ्य से अवगत होते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है, लेकिन यह चुनाव हमारी आत्मा और अस्तित्व को विचलित करके रख देता है। मगर यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि जीवन में सिर्फ गलत रास्तों पर चलने की ही कीमत नहीं चुकानी पड़ती, बल्कि सही राह चुनने के लिए भी भारी कीमत चुकानी पड़ती है। बचपन से ही हमें नैतिकता के पाठ के अंतर्गत यह बताया जाता है कि जो लोग गलतियां करते हैं, उन्हें ही दंड मिलता है और जो सही राह का अनुसरण करते हैं, उन्हें शांति, सफलता और सम्मान हासिल होता है। पर क्या यथार्थ बस इतना ही है? शायद नहीं।

आत्म सम्मान की रक्षा के लिए हम कुछ सीमाएं तय करते हैं

अक्सर सही राह के यात्री को उस पीड़ा का अनुभव करना पड़ता है, जो गलत राह के यात्री को अनुभव में प्राप्त नहीं होता। जब हम सत्य के पक्ष में खड़े होते हैं, तब वे लोग हमसे दूरी बना लेते हैं, जिनसे हमें सबसे अधिक स्नेह और समर्थन की अपेक्षा होती है। सच बोलने वाले व्यक्ति को अक्सर कठोर और निर्दयी कहा जाता है, क्योंकि सत्य का स्वरूप ऐसा है, जो नरम शब्दों में भी बोला जाए तो वह कभी-कभी विषैले बाण के प्रहार जैसा महसूस कराता है। कई बार हम कुछ सीमाएं तय करते हैं, ताकि अपने आत्मसम्मान की रक्षा कर सकें, लेकिन अक्सर लोग इसे अहंकार समझ बैठते हैं। हम अगर ‘न’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो लोग इसे अस्वीकार के दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि अपमान समझ कर देखते हैं।

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उन्हें लगता है कि हम बदल चुके हैं। जबकि यह हमारा एक प्रयास होता है कि हम खुद को खोना नहीं चाहते। फिर जब हम अन्याय के विरुद्ध बोलते हैं या उस पल में जब-जब मौन धारण करते हैं, तब लोग हमें विद्रोही, असहनीय और अव्यावहारिक समझ लेते हैं। उन्हें सत्य और सही नहीं, बल्कि उस क्षण यह दिखता है कि हमारे सही फैसलों से उन्हें किस प्रकार की असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में मन स्वयं से प्रश्न करता है कि जब सही राह पर चलने में इतना त्याग, कष्ट और एकाकीपन है तो इस पर चलना इतना आवश्यक क्यों है!

अनुभव इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने में हमारी सहायता करता है। जब जीवन ऐसे मोड़ पर पहुंचता है, जहां सब समाप्त हो जाता है, जब न ही कोई तालियां बजती हैं, न आलोचनाएं सुनाई देती हैं और आसपास के सारे चेहरे धुंधले हो जाते हैं। तब मात्र मौन की उपस्थिति रहती है उस क्षण में, जब हम स्वयं से प्रश्न करते हैं कि ‘क्या मैंने जीवन में सही निर्णय लिए?’ और तब जब स्वयं के अंदर से स्वर गूंजता है कि ‘हां, मैंने अपने आत्म सम्मान, अपनी आत्मा और अपने सिद्धांतों के साथ कोई समझौता नहीं किया,’ तो यही आत्म शांति हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है।

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सत्य की राह पर चलना किसी तपस्या से कम नहीं होता। यह ऐसा है कि हमें भीड़ में, भीड़ के विरुद्ध चलना होता है। यह ऐसा एकाकीपन है, जहां न कोई साथी होता है और न ही कोई सहारा। मगर यह कठोर राह हमारे अंदर एक अडिग विश्वास और अक्षुण्ण आत्म गरिमा को जन्म देती है। यह मार्ग हमें कभी भी स्वयं की नजरों में गिरने नहीं देता, भले संसार हमें किसी भी पायदान पर आंकें, हम संतोष के प्रकाश में जगमगाते हैं। यह भी सच है कि इस राह पर फल देर से प्राप्त होता है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि हमें हमारे त्याग का, हमारी सच्चाई का कोई फल नहीं मिला। पर यह पथ हमें अंदर से इतना मजबूत बना देता है कि हम बाहरी प्रशंसा की तुच्छता को समझ पाते हैं और अपनी पूर्णता का सम्मान करने लगते हैं।

जीवन का अंतिम उद्देश्य केवल सफलता, प्रसिद्धि या सुख नहीं है। बल्कि जीवन का असली अर्थ तब प्रकट होता है, जब हम सांसारिक जीवन के भीतर रहते हुए भी अपनी आत्मा से जुड़ते हैं। जब हम संसार की भीड़ में अकेले रहते हुए भी अपने सत्य पर अडिग रहते हैं। इस विशेष अवस्था को आत्मबल कहते हैं और यही आत्मबल जीवन के हर तूफान में हमारी ढाल बन जाता है।

इसलिए जब भी हमें ऐसा लगे कि सही राह चुनकर हमने सब कुछ और हर किसी को खो दिया है, तो थोड़ा ठहर कर खुद से ही सवाल कर लेना चाहिए कि हमने क्या पाया… कि हम अब भी स्वयं से आंखें मिला कर स्वयं पर गर्व कर सकते हैं! इस तरह जीवन की उत्कृष्टता सिद्ध हो जाती है। यह साध्य और साधन पर भी विचार का वक्त होता है। सही रहना कठिन जरूर है, पर वह कठिनाई ही हमारे चरित्र की परख है। यह राह भले ही कांटों से भरी हो, लेकिन अंत में यही मार्ग आत्मिक शांति, गरिमा और आत्मसम्मान की दिशा में लेकर जाता है और यही जीवन की सबसे बड़ी सफलता है।