कुछ हीरोइनें शादी के बाद पारिवार को प्राथमिकता देते हुए कुछेक साल फिल्मों से दूरी बना लेती हैं। एक ब्रेक लेती हैं और फिर कुछ समय बाद फिल्मों में वापसी करती हैं। जैसे मुमताज से लेकर नीतू सिंह और श्रीदेवी लेकर माधुरी दीक्षित ने यही किया। कभी कभी यह ब्रेक लंबा हो जाता है। जैसे बेगम पारा (दिलीप कुमार के भाई नासिर खान की अभिनेत्री पत्नी और अभिनेता अयूब खान की मां) ने पचास साल फिल्मों से दूर रहने के बाद संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘सांवरिया’ में सोनम कपूर की दादी की भूमिका की थी।
कुछ अभिनेत्रियों ने शादी के बाद फिल्मों को पूरी तरह अलविदा कह दिया। ऐसा नहीं है कि उन्हें फिल्मों के प्रस्ताव नहीं मिले। जैसे वैजयंतीमाला को शादी के बाद फिल्मों में वापस लाने के लिए राज कपूर, गुलजार, यश चोपड़ा जैसे फिल्मकारों ने खूब कोशिशें की थीं। नरगिस, बबीता, टीना मुनानी से लेकर मीनाक्षी शेषाद्रि ने शादी के बाद फिल्में छोड़ीं, तो फिर वापसी नहीं की। मुनव्वर सुलताना डॉक्टर बनना चाहती थीं। संयोग से फिल्मों में आईं। लाहौर में पैदा हुई सुलताना ने ‘खजांची’ (1941) में एक छोटी-सी भूमिका की थी। उन्हें बड़ा मौका दिया था मजहर खान ने, जो फिल्मी ग्लैमर के मारे थे। बरेली में पैदा हुए खान ने कानून की पढ़ाई के लिए पुलिस अफसरी छोड़ दी।
फिर कानून की पढ़ाई अधूरी छोड़ी और 1921-22 में फिल्मों में आ गए। 20 साल एक्टिंग करने के बाद 1942 में अपनी फिल्म कंपनी बनाई और 1945 की ‘पहली नजर’ में मुनव्वर को मौका दिया, जिसका गाना ‘दिल जलता है तो जलने दे…’ खूब बजा। यह मुकेश का बतौर पार्श्वगायक, किसी दूसरे हीरो के लिए गाया, पहला गाना था। ‘पहली नजर’ में उन्होंने मोतीलाल के लिए गाने गाए और उनकी सिफारिश पर ही काम फिल्म भी मिली थी। मुकेश के दूर के रिश्तेदार मोतीलाल ने ही उन्हें दिल्ली से मुंबई बुला लिया था। ‘पहली नजर’ के इस गाने को परदे पर मोतीलाल के साथ सुलताना के क्लोज अप्स के साथ फिल्माया गया था।
मुनव्वर को निर्माता एआर कारदार ने ‘दर्द’ (1947) में अपने भाई नुसरत की हीरोइन बनाया, जिसमें सुरैया ने सहायक अभिनेत्रीथी। इसमें हीरोइन मुनव्वर के लिए गायिका उमा देवी यानी अभिनेत्री टुनटुन ने ‘अफसाना लिख रही हूं दिले बेकरार का…’ गाना गाया था। इसे मुनव्वर पर फिल्माया गया था। समीक्षकों ने इसे बकवास फिल्म बताया, दर्शकों ने सिरआंखों पर उठा लिया था।
मुनव्वर की फिल्म ‘बाबुल’ भी सुपर हिट हुई थी। प्रेम त्रिकोण पर बनी इस फिल्म में दिलीप कुमार-नरगिस की जोड़ी थी। इसका गाना ‘छोड़ बाबुल का घर आज पी के नगर मुझे जाना पड़ा…’ आज भी शादी-ब्याह में खूब बजता है। 1947 में विभाजन के दौरान कई कलाकार पाकिस्तान चले गए थे मगर मुनव्वर ने भारत में ही रहना तय किया।
1948 में मुनव्वर की मुलाकात फर्नीचर के एक कारोबारी शरीफ अली भगत से हुई, जिससे उन्होंने शादी कर ली। भगत ने मुनव्वर को लेकर दो फिल्में भी बनाई ‘मेरी कहानी’ और ‘प्यार की मंजिल’। शादी के बाद मुनव्वर ने फिल्मों को अलविदा कह दिया। उनकी अंतिम फिल्म ‘जल्लाद’ (1956) थी, जिसके हीरो दिलीप कुमार के भाई नासिर खान थे जो विभाजन के बाद पाकिस्तान जाकर वापस भारत लौट आए थे।

