वे पंजाबी भाषा के प्रख्यात कवि थे, जो रूमानी कविताओं के लिए जाने जाते हैं। उनमें भावनाओं का उभार, करुणा, जुदाई और प्रेमी के दर्द का बखूबी चित्रित है। वे 1967 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के साहित्यकार थे। साहित्य अकादेमी ने उन्हें यह सम्मान पूरण भगत की प्राचीन कथा पर आधारित उनकी महाकाव्यात्मक नाटिका ‘लूणा’ के लिए दिया, जिसे आधुनिक पंजाबी साहित्य की महान कृति माना जाता है। इस कृति से आधुनिक पंजाबी किस्सागोई की एक नई शैली विकसित हुई। आज उनकी कविता आधुनिक पंजाबी कविता के अमृता प्रीतम और मोहन सिंह जैसे दिग्गजों के बीच बराबरी के स्तर पर खड़ी है, जिनमें से सभी भारत-पाकिस्तान सीमा के दोनों तरफ लोकप्रिय हैं।

बंटवारे के बाद पाकिस्तान से पंजाब में आकर बस गया था परिवार

शिवकुमार बटालवी का जन्म गांव बड़ा पिंड लोहटिया, शकरगढ़ तहसील (अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में) में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार गुरदासपुर जिले के बटाला चला आया, जहां उनके पिता ने पटवारी के रूप में अपना काम जारी रखा। वहीं शिवकुमार बटालवी ने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। 1953 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक किया और बटाला के बैरिंग यूनियन क्रिश्चियन कालेज में एफएससी कार्यक्रम में नामांकित हुए। उसके बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ के एक स्कूल में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लेने के लिए दाखिला लिया, पर फिर उन्होंने इसे भी बीच में ही छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने नाभा के सरकारी रिपुदमन कालेज में अध्ययन किया।

‘मैंनू विदा करो’, ‘असां ते जोबन रुत्ते मरना’ उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं

वे प्यार में नाकाम रहे और वही पीड़ा उनकी कविता में तीव्रता से परिलक्षित होती है। 1960 में उनकी कविताओं का पहला संकलन ‘पीड़ां दा परागा’ प्रकाशित हुआ, जो काफी सफल रहा। सस्वर काव्यपाठ और अपनी कविताओं को गाने की वजह से वे लोगों में काफी लोकप्रिय हुए। 1968 में वे चंडीगढ़ चले गए, जहां स्टेट बैंक आफ इंडिया में जनसंपर्क अधिकारी की नौकरी करने लगे। बाद के वर्षों में वे खराब स्वास्थ्य से परेशान रहे, पर उन्होंने लेखन जारी रखा। ‘मैंनू विदा करो’, ‘असां ते जोबन रुत्ते मरना’, ‘मर जाणां असां भरे भराए’, ‘हिजर तेरे दी कर परिकरमा’ उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं।

प्रेम में नाकामी की वजह से शिवकुमार बटालवी की रचनाओं में विरह और दर्द का भाव प्रबल है। अमृता प्रीतम ने उन्हें ‘विरह का सुल्तान’ कहा था। इसी नाम से गजल गायक जगजीत सिंह-चित्रा सिंह ने एक संगीत संग्रह निकाला था। शिवकुमार बटालवी की रचनाओं में निराशा और मृत्यु की इच्छा प्रबल दिखाई पड़ती है। उनके एक संकलन ‘अलविदा’ (विदाई) का प्रकाशन 1974 में मरणोपरांत अमृतसर के गुरु नानक देव विश्वविद्यालय द्वारा किया गया। हर साल पंजाबी के सर्वश्रेष्ठ लेखक को ‘शिव कुमार बटालवी पुरस्कार’ दिया जाता है।

उनकी कई कविताओं को दीदार सिंह परदेसी ने गाया है। जगजीत सिंह-चित्रा सिंह और सुरिंदर कौर ने भी उनकी अनेक कविताओं का गायन किया है। नुसरत फतेह अली खान ने उनकी कविता ‘माई नी माई’ को गीत में ढाला, जो अपनी रूहानी पुकार और चित्रात्मकता के लिए जाना जाता है। शिवकुमार बटालवी की कई कविताओं का उपयोग हिंदी फिल्मों में भी हुआ है। फिल्म ‘लव आजकल’ के लिए संगीतकार प्रीतम ने बटालवी की कविता ‘आज दिन चढ़ेया तेरे रंग वरगा’ पर गीत बनाया था। संगीतकार अमित त्रिवेदी ने फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ के लिए उनकी कविता ‘एक कुड़ी’ पर आधारित एक गीत बनाया था। इस गीत के तीन संस्करण थे, जिन्हें दिलजीत दोसांझ, शाहिद कपूर और आलिया भट्ट ने गाया था।