सोच एक सतत प्रक्रिया है जो स्वत: ही उपजती है। हम चाह कर भी विचारों का प्रवाह रोक नहीं सकते। सकारात्मक सोच हमें प्रबल बनाती है, जिससे न केवल हमारा मानसिक बल बढ़ता है, बल्कि शारीरिक बल भी प्रबल होता है। विज्ञान कहता है कि हमारे भीतर जितने ज्यादा सकारात्मक विचार होते हैं, हमारा शरीर भी उतना ही स्वस्थ रहता है। जीवन में कभी ऐसा भी समय आता है कि नकारात्मकता की कालरात्रि का अंधकार ही अंधकार नजर आता है। ऐसे में अनुकूल समय की प्रतीक्षा एकमात्र ध्येय होना चाहिए। विपरीत परिस्थितियां हमें धैर्यवान बनाती हैं, हमारा अंतरतम कसौटी पर तपता है। यह तपन जब पूरी हो जाती है, तो मन का कुंदन खरा निकल कर आता है।

उम्मीद प्रकृति से मिला सर्वोत्तम उपहार है, जो हमारी समस्त नकारात्मक ऊर्जा को संचित कर हमें जीवन में आगे बढ़ने का संदेश देती है। अगर समय विपरीत है तो सोचने की जरूरत है। अगर किन्हीं वजहों से जीवन में निष्क्रियता का दौर है, तो हमें उसका सामना करना चाहिए। वह हमें मजबूत बनाएगी और निश्चित ही सक्रिय सूर्य उदित होगा। विपरीत समय में भी सकारात्मक सोच रखना प्रकृति और जीवन के प्रति आभार व्यक्त करना है। सृष्टि के किसी भी काम में सहयोग देना ईश्वर की उपासना से भी ज्यादा श्रेयस्कर है।

जिंदगी भी कभी एक ही लय में नहीं चलती

वक्त रेत की तरह फिसलता है और हम समझ ही नहीं पाते कि कब इतना जीवन निकल गया। रेत में घरौंदे बनाने वाले नन्हे हाथों से कब वक्त फिसल जाता है, पता ही नहीं चलता। कुछ सपने सिर्फ इसलिए पूरे नहीं हो पाते कि हम उन्हें पूरा करने के लिए पूरी तरह सही वक्त की बाट जोहते हैं और वह वक्त कभी नहीं आता। जिंदगी भी कभी एक ही लय में नहीं चलती, लेकिन सोच हमारी सदैव सकारात्मक होनी चाहिए। सोच में एक सकारात्मक जिद हमेशा होना चाहिए।

हवा की तरह परिस्थितियां भी हमेशा हमारे अनुरूप नहीं चलती, उनका रुख कभी सीधा तो कभी विपरीत होता रहता है। सकारात्मकता की पतवार सदैव अपने हाथों में होना चाहिए। कभी जीवन का बहाव विपरीत हो, तो सकारात्मक सोच के साथ हवा का रुख बदलने का इंतजार किए बिना मांझी बन जीवन-नैया को आगे बढ़ाना चाहिए।

अगर हम मन से नहीं हारे तो दुनिया का कोई तूफान हमारे हौसले को नहीं तोड़ सकता। मन की हार अगर प्रभावी हो गई तो हम जीतकर भी हार जाएंगे। इसके विपरीत अगर हम मन से ऊर्जावान हो, तो हार के बाद भी जीत के नए रास्ते खुल ही जाएंगे। इस संदर्भ में सबसे अच्छा उदाहरण कर्ण और कृष्ण का है।

कर्ण ‘महाभारत’ के श्रेष्ठतम पात्रों में से एक हैं। ऐसे महारथी, जो हारकर भी सबके मन को जीत लेते हैं। उनका जीवन प्रेरणा की मिसाल है। कृष्ण ने जब देखा कि इस युद्ध में जीत के दो ही प्रबल दावेदार हैं- अर्जुन और कर्ण। चूंकि कर्ण विरोधी खेमे में हैं और जीत धर्म की होनी चाहिए, तो उन्होंने युद्ध के पहले ही कर्ण को उनके जन्म के बारे में बताकर उनका मनोबल कमजोर कर दिया।

यह कृष्ण की कूटनीति थी। मनोबल से टूटा हुआ महारथी विजय नहीं पा सकता। कृष्ण अपने मंसूबे में कामयाब भी हुए। यों कर्ण ने अपनी दोस्ती पूरी निभाई। ‘महाभारत’ में भीष्म के अलावा भी कई किरदार हैं जो भिन्न-भिन्न प्रतिज्ञाओं से बंधे थे। कर्ण भी उनमें से एक थे, जो अपने मित्र का साथ देने के लिए बाध्य थे और उन्होंने साथ निभाया भी, लेकिन मनोबल से टूटे कर्ण अपने मित्र को जीत नहीं दिला सके।

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जीवन में कृष्ण जैसी रणनीति मन के लिए निर्धारित करना आवश्यक है, ताकि कोई दूसरा कृष्ण बनकर हमारे मनोयोग को न तोड़ सके। कहा जाता है कि जब कोई बड़ा योद्धा बैठा हो तो सारथी खुद बन जाना चाहिए। ऐसे ही जब कोई नकारात्मक पहलू जीवन का सामने आए तो अपने जुनून को हारने नहीं देना चाहिए ।

लक्ष्य निर्धारण से पूर्व स्व को पहचानने की जरूरत है। अपनी रुचि और परिस्थिति अनुरूप ही हमें अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। सकारात्मक नजरिया जीवन को जीने की वजह देता है और उसके लिए प्रयासरत भी रहना चाहिए, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि अपने लक्ष्य को पूरा करने के क्रम में किसी पर अति महत्त्वाकांक्षा की धुन न सवार हो जाए।

दरअसल, अति महत्त्वाकांक्षा सुकून छीन लेती है। जबकि जीवन में सुकून हासिल करने के लिए ही हम सपने तय करते हैं, लेकिन जब वह हमारी ही किसी महत्त्वाकांक्षा की वजह से तकलीफदेह हो जाए, तो हमें अपनी बेलगाम इच्छाओं को विराम देने पर विचार करना चाहिए।

जीवन एक यात्रा है। इस यात्रा की मंजिल व्यक्ति को खुद ही तय करनी होती है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना भी हमारे ही हाथ में है कि यात्रा ऐसी हो कि हम राह न भटकें और मंजिल पा लें। जीवन में अगर नकारात्मक समय भी है, तो सकारात्मक सोच उसे आसान बनाएगी। मुश्किल यह हो गई है कि हम वर्तमान से ज्यादा भविष्य के खयालों में जीने लगे हैं।

वही परेशानी की वजह है, क्योंकि हम अपने भविष्य के बारे में सोच तो सकते हैं, लेकिन उसे सौ फीसद अपने मुताबिक सुनिश्चित नहीं बना सकते। इसलिए इसका एक अच्छा समाधान यह है कि अच्छी ऊर्जा के साथ वर्तमान का आनंद लिया जाए। चिंताएं हमारी अपनी खोज हैं। ऐसे में जीवन में द्रष्टा बनना ही श्रेयस्कर है। सिर्फ नजरिया सकारात्मक हो, तो जीवन की विपरीत परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बनाया जा सकता है या उनका सामना आसानी से किया जा सकता है।

अगर परिस्थितियां सम हों तो आनंद लेने की जरूरत है और हालात विषम हैं, तो अनुकूल समय आने का इंतजार करना बेहतर है। शांति जीवन की संजीवनी है, जिसे हम अपने अंदर ही अनुभव कर सकते हैं।