हमारे जीवन में परिवार का बहुत महत्त्व है। आमतौर पर हर समाज में बच्चों का जन्म और पोषण परिवार में होता है। पैदा होने से लेकर जीवन के विभिन्न पड़ावों और संघर्ष से गुजरते हुए हर सफर में कदम-कदम पर उसकी महत्ता महसूस होती है। इसके बिना जीवन सूना-सा लगता है। जो परिवार की मजबूती के लिए निरंतर तन-मन-धन रूपी निवेश करता है और जोड़े रखने में समय लगाता है, वह उसकी कीमत जानता है। अच्छे-बुरे की जिम्मेदारी ईमानदारी से लेना और उतार-चढ़ाव का दर्द झेलना परिवार रूपी चिराग को रोशन करने की कला है।
पारिवारिक रचना में मर्यादा और आदर्श परंपरागत हैं। विकास की रफ्तार से आजीविका के साधनों और उन्नति की भूख ने इस पर असर डाला है। पाश्चात्य विचारधारा की शिक्षा-दीक्षा का प्रभाव समाज पर पड़ा है। ऐसे कारक संयुक्त परिवार प्रणाली के लिए चुनौती हैं। आय के असंतुलित साधन प्रतिकूलता ला रहे हैं। पारिवारिक अर्थव्यवस्था ने नई करवट ली है, जिससे उसका संयुक्त रूप समाप्ति की ओर है। आज के दौर में संयुक्त परिवार कम हो रहे हैं और नई परिभाषा भी गढ़ी जा रही है। अतीत में एक चूल्हा-चौका जीवनयापन का आधार था और तीन-चार पीढ़ी के लोग दुख-सुख में इकट्ठा जीते थे। रोटी कमाना बड़ी बात है, लेकिन परिवार के साथ रोटी खाना ज्यादा बड़ी बात है। जिन्होंने ऐसा परिवेश जिया या देखा है, वे ऐसी व्यवस्था की स्मृति से सुखद अहसास में चले जाते हैं। बदलाव की बयार से अकेलापन बढ़ रहा है। परिवार एकमात्र जगह है, जहां सारी कमियों के साथ स्वीकार किया जाता है।
जो परिवार अतीत में सम्मान का जीवन जी रहे थे, पर समय के फेर से परिवार के अंदर कुछ ऐसे सदस्य निकल आए जो खुद समस्या हैं और परिवार के लिए भी समस्या बन जाते हैं। ऐसे में परिवार पटरी से उतर जाता है और अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। जिस किसी ने परिवार बनाने में वर्षों लगाए हों, उसे टूटने का दर्द हो सकता है। इसके विपरीत जिसने स्वार्थ, तंगदिली और लोभ से जीवन चलाया हो, वह परिवार को समृद्ध क्या करेगा?
सामाजिक और आर्थिक के आधार पर बदल गया परिवार
तेजी से परिवर्तित हो रहे सामाजिक और आर्थिक दौर से जीने के अंदाज बदले हैं जिनसे मनमर्जी, विरोध और स्वार्थ के स्वर फूटने से अलग संसार बन रहा है। तन-मन से एकाकी व्यक्ति गलतफहमी में शक्तिशाली होने का पाखंड करता है, जबकि अंदरखाने खोखला है। उसे टूटन का दर्द नहीं होता, क्योंकि उसने जुड़ना नहीं सीखा। जो लोग स्वार्थी और छोटे दिल के राहगीर हैं, वे अपनी संतान को भी कमोबेश वही सिखाते हैं, जो वे खुद सीखे होते हैं। लोगों को संभलने में विश्वास नहीं, बल्कि फिसलने में ज्यादा आनंद और सुविधा लगती है।
गलत की सीख जल्दी रंग दिखाती है। लेकिन आघात का दर्द मरम्मत लायक भी नहीं रहता। एक व्यक्ति के परिवार में सब कुछ ठीक चल रहा था। वे अधिकारी बनकर दूसरे शहर में स्थापित हुए। गांव की संपत्ति भाइयों को इस्तेमाल के लिए दी हुई थी। जब वे गांव जाते, सब आवभगत करते। इस तरह नाम भी ऊंचा हो गया। सेवानिवृत्त हुए तो पत्नी संपति हासिल करने के लिए उकसाने लगी। पुश्तैनी मकान में पुराने कड़ी आदि लगे हुए थे। संपत्ति विभाजन मांगने पर आंखें लाल-पीली हुर्इं तो कुल मिलाकर इतनी रकम बंटवारे के हिस्से में आए, जो उनके लिए मायने नहीं रखते थे। भाईचारे में खटास आने पर जब भी गांव पहुंचते तो पहले जैसा सम्मान अब नहीं रहा। चायपान और भोजन तक के लिए कोई पूछने वाला नहीं था।
परिवार में आ रहे हैं मतभेद
इसके विपरीत एक व्यक्ति दूसरे शहर में संघर्ष से कुछ स्थापित हुए। परिवार में मतभेद होने पर खबर लगती तो त्याग की रोशनी में दीपक जगमग रखने की सोचते। जब भी झगड़े सामने आते, तो पल्ले से पैसे देकर मामले शांत करवा देते। रह-रहकर परिवार को बचाने की मिसाल पेश होती। जो इस बात को समझते थे, वे एक-एक करके शांत या संसार से विदा हो रहे। कुछ कम ही बचे जो उनके त्याग को मानते, लेकिन स्वार्थ की भूख के नाम पर लालच ने अपने पैर पसार लिया। घर को आबाद और बर्बाद करने के लिए कोई एक सदस्य ही काफी है। घर टपकता है तो उसकी मरम्मत की जाती है, गिर जाए तो उसे छोड़ दिया जाता है। अक्सर एक साथ जोड़े रखने वाली पिन ही कागजों को चुभती है। मिट्टी का मटका और परिवार की कीमत सिर्फ बनाने वाले को पता होती है, तोड़ने वाले को नहीं।
परिवार गीत है, जहां हमेशा सही गाना नहीं होता है, बस आपसी छोटी-मोटी गलतियों को नजरअंदाज कर थिरकना होता है। परिवार और समाज उस समय बर्बाद होने लगते हैं, जब समझदार मौन हो जाते हैं और नासमझ बोलने लगते हैं। पत्थर तब तक सलामत है, जब तक वह पर्वत से जुड़ा है। उसी तरह परिवार से अलग होकर आजादी तो मिल जाती है, लेकिन जरूरतें परिवार की याद दिलाती हैं। उन पत्तों की कोई कद्र नहीं होती जो पेड़ से गिर जाते हैं। परिवार के बुजुर्गों की आंखें कभी भीगने नहीं देना चाहिए। जिस घर की छत टपकती है, उसकी दीवारें भी कमजोर होती हैं। अच्छी उम्मीदों को पोषित करने के लिए मन-कर्म-वचन से समृद्ध करते जाएंगे तो परिवार के आनंद की बगिया खिल उठेगी। जिस परिवार या समाज में लोग बातचीत से नहीं भागते, वहां कम से कम विवाद होंगे। अगर विवाद होंगे तो भी जल्दी सुलझ जाएंगे।