हेमंत कुमार पारीक

कोई भी व्यक्ति आज देख सकता है कि किसी विद्यार्थी से दो संख्याओं का गुणा-भाग करने को कहा जाता है तो वह तुरंत गणक (कैलकुलेटर) निकाल लेता है। यह माना जा सकता है कि तकनीक के क्षेत्र में इतनी प्रगति कर ली गई है कि अब दिमाग लगा कर गुणा-भाग करने की आवश्यकता नहीं रही। हालांकि गणक से समय की बचत जरूर होती है, मगर इस बचत से कहीं न कहीं हमारा मस्तिष्क अक्रिय रह जाता है, क्योंकि कभी ऐसे गुणा-भाग मुंहजबानी प्रक्रिया का हिस्सा होते थे और इसीलिए दिमागी सक्रियता बनी रहती थी।

आज तो लाखों का गुणा-भाग संगणक (कंप्यूटर) पल भर में कर देता है। जटिल से जटिल प्रमेय और अल्गोरिद्म मिनटों में हल हो जाते हैं। पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले किसी भी ग्रह की स्थिति का हर पल पता चलता रहता है। यह मानव दिमाग के लिए असंभव है। गणक, संगणक आदि का जन्म भी आदमी के दिमाग की ही उपज है। कहने का अर्थ यह है कि मनुष्य का दिमाग इन तकनीकी माध्यमों से कहीं ज्यादा उन्नत है। ये सारे माध्यम मनुष्य के दिमाग की सक्रियता की ही देन हैं।

तकनीकी दुनिया आश्चर्यजनक रूप से कहां से कहां पहुंच गई है। साधारण गणक से मोबाइल फोन, मोबाइल फोन से स्मार्टफोन और ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ (एआइ) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक। अब तो एआइ से धोखाधड़ी के किस्से भी सुनाई देने लगे हैं। हालांकि किसी भी नवाचार के फायदे और नुकसान होते हैं। इसी क्रम में विभिन्न प्रकार के ऐप आ गए हैं। इससे हमें फायदा तो है ही, पर कहीं न कहीं ये हमारे दिमाग की क्रियाशीलता पर हावी हो रहे हैं।

उदाहरण के लिए ऐप यह बताता है कि कब हमें भोजन करना है और कब पानी पीना है और किस मात्रा में। दरअसल, भोजन करने और पानी पीने का समय हमारा शरीर मस्तिष्क के आदेश पर तय करता है। अगर यह कार्य मशीन ने छीन लिया तो क्या होगा? मतलब यह कि रोबोट बनाने वाला इंसान खुद रोबोट बनकर रह जाएगा।

छोटे-छोटे शहरों में भी बड़े (मेट्रो) शहर या महानगरों की देखादेखी ‘यूपीएस’ या गूगल नक्शे का चलन बढ़ता जा रहा है। जिस शहर के गली-कूचों से हम भलीभांति वाकिफ हैं और हजारों बार उन सड़कों से गुजरे हैं, वहां की दुकान, मकान, बाग-बगीचे पहचानते हैं, यह जानते हुए भी हम ‘यूपीएस’ का सहारा ले रहे हैं।

अर्थ यह है कि हर छोटे-बड़े कार्य के लिए हम बेमतलब मशीन पर निर्भर होते जा रहे हैं। जबकि हमारे शरीर की हर इंद्रिय अपना कार्य करने में सक्षम है। अवचेतन दिमाग ‘अलार्म’ घड़ी की तरह कार्य करता है। कुछ लोग तकिए से कह कर सोते हैं कि फलां वक्त पर उठना है। दरअसल, वे अवचेतन दिमाग को नोट करा रहे होते हैं और ठीक समय पर उठ भी जाते हैं।

एक परिचित बुजुर्ग ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। अपने समय में उन्होंने तीसरी कक्षा तक स्कूल में पढ़ाई की। बाद में वे सामाजिक कार्यकर्ता बने। उन्होंने जिंदगी भर समाज की निस्वार्थ सेवा की। लिहाजा गांव से शहर तक उनका अच्छा-खासा नाम था। इसी कारण वे एक समय नगरपालिका के अध्यक्ष के पद पर भी रहे। उस दौरान एक बार नगरपालिका में ‘मुनीम’ पद पर एक रिक्ति निकली।

साक्षात्कार में एक दसवीं पास युवक उनके सामने खड़ा हुआ। वे परिचित बुजुर्ग अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए। उन्होंने उस युवक से हाथ मिलाया। खड़े होकर उन्होंने उसकी शैक्षणिक योग्यता का सम्मान किया। उसके बाद साक्षात्कार में अभ्यर्थी से किसी संख्या के ‘अद्धा’, ‘पौना’ और ‘पौवा’ के बारे में पूछा गया। साक्षात्कार में आया वह नौजवान निरुत्तर था। परिणामस्वरूप यह कहते हुए उसे विदा किया गया कि यह पद उसके योग्य नहीं है, न कि पद के योग्य वह नहीं है। यह वाकया बहुत पुराना है, लेकिन इस संदर्भ में आज भी प्रासंगिक है।

आशय यह है कि जहां जितने उपकरणों की आवश्यकता है उतना ही उपयोग होना चाहिए। संस्कृत का प्रचलित वाक्यांश है कि ‘अति सर्वथा वर्जयेत’! यह कथन किसी भी क्षेत्र में एकदम सही बैठता है। जरूरत से ज्यादा भोजन कर लेने से कई प्रकार के विकार पैदा हो जाते हैं। जरूरत से ज्यादा श्रम करने से शरीर पर विपरीत असर होने लगता है। दिनभर कंप्यूटर या मोबाइल पर आंखें गड़ाए रहने से आंखों पर भार पड़ता है और देखने की क्षमता पर असर पड़ने लगता है। नतीजा हमारे सामने है। आजकल छोटे-छोटे बच्चों में दृष्टि-दोष की समस्याएं पैदा हो रही हैं। मोटे-मोटे चश्मे लगाए स्कूल जाते बच्चों को देखना चिंताजनक है।

वृद्धावस्था में दिमागी क्षमता कम होने लगती है। शरीर के दूसरे अंग भी शिथिल पड़ते जाते हैं। स्मरण शक्ति का ह्रास होने लगता है। परिणामस्वरूप ‘अल्जाइमर्स’ या स्मृतिलोप के रोग नजर आते हैं। इसलिए आजकल डाक्टर दिमागी सक्रियता बढ़ाने के लिए बुजुर्गों को पहेली (क्रासवर्ड) भरने या सुडोकू को हल करने का सुझाव देते हैं। हमारे कार्यों को आसान बनाने के लिए आज विभिन्न प्रकार के ऐप हैं, पर इनका यथोचित उपयोग होना चाहिए। वरना आने वाले वक्त में किसी भी काम के लिए हम एक दूसरे का चेहरा ताकते रहेंगे।