जीवन एक कैनवास है, जो विविध रंगों से सजा है। कुछ स्याह तो कुछ शोख रंग। स्याह रंग हमारे जीवन के अंधियारे पक्ष के द्योतक माने जाते हैं, तो शोख रंग उजियारे पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं। जीवन कभी समग्र नहीं चलता। उसमें वक्त के साथ अच्छा-बुरा होता ही रहता है। जीवन की धुरी कभी अमावस तो कभी पूनम का सामना करती रहती है। प्रकृति में पाक्षिक अमावस और पूनम के दिन तो निर्धारित हैं, लेकिन जीवन की अमावस और पूनम के दिन निर्धारित नहीं है।
किसी का कोई भी पक्ष बड़ा और छोटा हो सकता है। कैनवास को सजाने के लिए हमने पर्व-त्योहार बनाए हैं जो हमारे जीवन में विविध रंग भरते हैं। ये त्योहार न केवल सांस्कृतिक महत्त्व रखते हैं, बल्कि रिश्तों की डोर को भी मजबूत बनाते हैं। यही वजह है कि हमारे देश में समय-समय पर रिश्तों के लिए भी अलग-अलग त्योहार आते हैं। रिश्ते होना सौभाग्य की बात है, लेकिन उनमें प्रगाढ़ता लाने के लिए समय-समय पर रिश्तों की बेल को सींचना भी चाहिए।
आंतरिक प्यार होने के बावजूद बाहरी अभिव्यक्ति भी समय-समय पर जरूरी होती है। उसी अभिव्यक्ति का माध्यम हैं त्योहार। पर्वों के माध्यम से हम अपनी भागमभाग वाली जिंदगी को विराम देते हैं और उसमें रिश्तों को अहमियत देते हैं। त्योहार शुष्क जीवन में नमी ला देते हैं। साझी रौनक रिश्तों का विस्तार करती है। दिवस विशेष पर रिश्तों को अहमियत देना सूखे दरख्तों को सीचने जैसा है। यों त्योहार शुरू से ही अपनी अहमियत रखते हैं, लेकिन आज की इस आभासी दुनिया में रिश्तों का वास्तविक स्वरूप पहचानने के लिए त्योहारों का मोड़ आना हमारी जिंदगी में बेहद जरूरी है।
हर त्योहारों के अलग-अलग खानपान
प्रकृति के पोर-पोर में समाई सेहत की संजीवनी त्योहारों के माध्यम से हमारी रगों में समाहित हो जाती है। मौसम के अनुरूप ही त्योहारों का खानपान होता है, जो न केवल हमें जायके में अच्छा लगता है, बल्कि सेहत के लिए भी लाभकारी होता है। होली पर बनने वाली ठंडाई, राखी पर बनने वाली खीर, मकरसंक्राति पर बनने वाले तिल के पकवान, दशहरे पर दही आदि हमें हमारी रसोई की महक से तो अवगत कराते ही हैं, साथ ही उत्तम स्वास्थ्य की कुंजी भी देते हैं। होली पर प्रयुक्त होने वाले रंग हमारे जीवन के कैनवास में रंग भरते हैं और हमारे स्वास्थ्य के लिए भी लाभप्रद होते हैं। त्योहारों से हमारा सामाजिक जीवन व्यवस्थित भी होता है, जैसे बारिश के बाद घरों की गंदगी हटाने के लिए दीपावली की सफाई घरों को स्वच्छ रखने में मददगार होती हैं।
त्योहारों से जुड़ी लोक कथाएं भी हमें विशिष्ट संदेश देती हैं। लोक कथाओं के माध्यम से हम न केवल अपने इतिहास को जानते हैं, बल्कि मानवीय रिश्तों की कीमत भी समझते हैं। पर्व हमारे परिजनों से आत्मीय जुड़ाव करवाते हैं और हमारी अंतर्मन की गिरहें भी खोलते हैं। अकेलेपन और अनमनेमन के लिए त्योहार प्रेमपगी अनुभूति है। जीवन गतिशील है, जैसे प्रकृति ने ऋतुओं के बदलाव को स्वीकारा है, हमें भी जीवन के बदलाव स्वीकार्य होने चाहिए। पर्व इस बदलाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आनंदमयी यात्रा के पड़ाव हैं त्योहार
ऋतुओं के अनुरूप हमारे खानपान, पहनावा आदि बदलते हैं, जो हितकर भी है और आवश्यक भी। आनंद तो हमारे भीतर है, पर चूंकि हम इंसान और सामाजिक हैं, इसलिए कुछ बाहरी आनंद की खोज स्वाभाविक हो जाती है। आंतरिक आनंद की खोज के लिए बाहरी आनंद की यात्रा तय करनी पड़ती है। त्योहार उसी आनंदमयी यात्रा के पड़ाव हैं। इन पड़ावों को सकारात्मक ढंग से जीने की जरूरत है। त्योहारों को उमंग से मनाने से बाहरी वातावरण तो सुवासित होता ही है, साथ ही लोग अपना अंतस भी महकाते हैं। आंतरिक आनंद की अनुभूति के लिए बाहरी अनुभूतियों से संतृप्त होना आवश्यक है।
अगर हमारा अंतर्मन इन बाहरी पर्वों से निवृत्त हो जाए तो हर दिन पर्व है। फिर किसी दिन विशेष के पर्व की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन उस तक पहुंचने के लिए मुस्कराहटों से नाता जोड़ना होगा, खुशियों से झोली भरनी होगी… अपनी भी और दूसरों की भी। खुशियां वे इत्र हैं जिसकी खुशबू बांटने से बढ़ती है। त्योहार जीवन बगिया के वसंत हैं, जिन्हें महकाने वाले माली हम स्वयं ही हैं। मनुष्य सामाजिक प्राणी है, अकेले रहना हमारी नियति ही नहीं। ये हमारे शुष्क जीवन में बदलाव की दस्तक देते हैं। मानव मन सर्वत्र एक है। खुशियां मनाना मानव स्वभाव है। खुशी मनाने का रूप कुछ भी हो, लेकिन मूल रूप सभी का एक है। खुशियों की राह अलग हो सकती है, लेकिन उसके मूल में अलगाव नहीं। यों समूचा विश्व ही अपने-अपने अनुसार त्योहार मनाता है, लेकिन भारत को पर्वों का देश कहा जाता है। यहां रिश्तों के साथ-साथ फसलों की बुआई और कटाई को भी उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यही हमारे देश की विशिष्टता है और यही यहां की माटी की सोंधी महक भी है।
हम त्योहार मनाते हैं और इनको मनाने से हम खुद भी संवर जाते हैं। हमारे मन का वसंत त्योहारों के आगमन से खिल उठता है। अपने मन के ऋतुराज को महकाए रखना हमारी ही जिम्मेदारी है और यह जरूरी भी है। हम स्वयं खुश होंगे तो अपने आसपास वालों को भी सकारात्मक ऊर्जा से ओतप्रोत करेंगे। आज के परिवेश में जहां हम वास्तविक दुनिया से ज्यादा आभासी दुनिया में जी रहे हैं, वहां त्योहारों का आगमन यथार्थ की दुनिया से भी रूबरू करता है। जीवन रूपी आकाश पर त्योहारों के इंद्रधनुष खिले रहें, हम उन रंगों में सराबोर हो जाएं। ये परंपराओं को सहेजने के लिए नहीं, बल्कि स्वयं के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए आवश्यक है। त्योहार मन की सजग अनुभूतियों के प्रतिबिंब हैं।