हम सब इस बात पर शायद ही कभी गौर करते हैं कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में प्लास्टिक एक अभिन्न अंग बन चुका है। अपने घर के अंदर और घर के बाहर जहां भी नजर दौड़ाएं, कुछ न कुछ चीज प्लास्टिक की नजर आ ही जाती है। सुबह से लेकर शाम तक अनगिनत प्लास्टिक की चीजों का प्रयोग करते रहते हैं। धरती से लेकर समुद्र और पहाड़ तक प्लास्टिक पहुंच गया है। ऐसा लगता है जैसे प्लास्टिक ने अपना हर तरफ साम्राज्य फैला लिया है। जबकि प्लास्टिक के अपने खुद के हाथ पैर नहीं होते हैं। उसे फैलाने वाले हम सभी होते हैं। बहुत दुखद है कि जिस दुनिया में मनुष्य को रहना, सांस लेना, जीवन जीना है, उस दुनिया को नष्ट करने का जरिया मनुष्य ही बनते जा रहे हैं। उससे भी दुखद बात यह है कि यह मात्र मनुष्य के अस्तित्व के लिए खतरा नहीं है, बल्कि यह समूचे जीव जगत के लिए नुकसानदायक है। मनुष्य के सुविधा भोगी होने का मूल्य अन्य पशु पक्षी-चुका रहे हैं।

रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाला प्लास्टिक दरअसल, वर्षों तक धरती के नीचे दबकर भी ज्यों का त्यों पड़ा रहता है। वह अन्य पदार्थों की तरह आसानी से विघटित नहीं होता है। इस कारण यह और नुकसानदेह हो जाता है। केवल हमारे देश में ही पंद्रह हजार टन प्लास्टिक अपशिष्ट प्रतिदिन निकलता है, लेकिन इसके निस्तारण का कोई समुचित प्रबंध नहीं होता है। प्लास्टिक को बनाने में बहुत सारे जहरीले रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके कारण यह जहां भी रहता है, वहां बीमारी, प्रदूषण और कई जटिल और गंभीर रोग पैदा करता है। पानी में जाने पर पानी को भी प्रदूषित कर देता है। प्रदूषण का नतीजा है कि आज अस्पताल रोगियों से भरे रहते हैं। स्वस्थ जीवन मुहाल है।

आज दुनिया भर में जिधर भी नजर डालें, हम सब प्लास्टिक कचरे के ढेर पर बैठे हुए हैं। विनाश के मुहाने पर हैं। सोचने में काफी भयावह है कि जितनी भारी मात्रा में प्लास्टिक अपशिष्ट निकल रहा है, उसके निष्पादन का कोई उपाय नहीं है। एक दिन सब इसी प्लास्टिक के अपशिष्ट के नीचे दबे नजर आएंगे। और इसका सबसे बड़ा कारण है लोगों की गैर-जिम्मेदारी और लापरवाह आदत है।

प्लास्टिक के बिना भी पहले चलता था जीवन

पहले भी जीवन चलता था, जिसमें प्लास्टिक नाममात्र का इस्तेमाल होता था। या बिल्कुल भी नहीं होता था। तब भी जीवन आसानी से चलता था। प्लास्टिक ऐसी धातु नहीं है कि उसके बिना जीवन न चल सके। प्लास्टिक से जितना मनुष्य को फायदा हो रहा है, उससे हजार गुना ज्यादा बीमारी और प्रदूषण हो रहा है। उसके बाद भी लोग सचेत नहीं हो रहे हैं। लोगों की आदत हो चुकी है कि वह हर बात के लिए सरकार की तरफ देखते हैं। खुद से अपनी जिम्मेदारी उठाने से कतराते हैं। जबकि प्लास्टिक का बहिष्कार करना या खुद से हर मनुष्य की जिम्मेदारी होनी चाहिए।

आजकल अधिकतर वस्तुओं की पैकिंग के लिए प्लास्टिक का ही उपयोग किया जाता है। खाने-पीने से लेकर दूध के पैकेट तक, सभी में प्लास्टिक का रैपर और पन्नियों का उपयोग किया जाता है। आमतौर पर पालिथीन का उपयोग सिर्फ एक बार किया जाता है। उसके बाद उसे कचरे के ढेर में फेंक दिया जाता है। ये प्लास्टिक अगर किसी धरती के हिस्से में दब जाते हैं, तो सालों तक इसी अवस्था में बने रहकर उस भूमि को बंजर करते हैं। यह बात लगभग हर कोई जानता है, फिर भी इस तरफ से लापरवाह बना रहता है।

प्लास्टिक से पहले कागज, कपड़े के बने थैले होते थे यूज

पहले लोग प्लास्टिक की जगह कपड़े और कागज, जूट से बने थैलों का इस्तेमाल करते थे। उन्हें इस्तेमाल करने के बाद अगर कहीं फेक भी दिया जाए, तो वे कुछ समय बाद आसानी से विघटित होकर मिट्टी में मिल जाते थे। प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचाते थे। आज भी हम छोटे-छोटे उपाय करके बहुत हद तक धरती को बचा सकते हैं। जैसे प्लास्टिक की जगह कपड़े, कागज और जूट की बनी थैलियां इस्तेमाल करें। प्लास्टिक का जब भी सामान खरीदें तो प्लास्टिक की पीईटीई और एचडीपीई प्रकार के समान को चुन सकते हैं, क्योंकि इस प्रकार के प्लास्टिक का पुनर्चक्रण करना आसान होता है।

पहले के जमाने की तरह मिट्टी के पारंपरिक तरीके से बनी चीज और बर्तनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। अपने आसपास के लोगों को भी प्लास्टिक से होने वाली हानियों के बारे में सचेत कर सकते हैं। प्लास्टिक के ऐसे किसी भी सामान को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, जो मात्र एक बार इस्तेमाल होती है। जैसे प्लास्टिक के पतले ग्लास, तरल पदार्थ पानी की बोतल और स्ट्रा, प्लास्टिक रैपर वाली खाने-पीने की वस्तुएं। सबको मात्र एक बार इस्तेमाल करके फेंक दिया जाता है, जो सालों तक ऐसे ही कहीं न कहीं पड़े रहते हैं और बीमारियां फैलाते हैं। साथ ही प्लास्टिक को कभी भी खुद से खत्म करने की कोशिश नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसके जलने पर अत्यंत हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है।

जमीन के नीचे प्लास्टिक खत्म नहीं होता है। इनको नष्ट करने का काम प्लास्टिक पुनर्चक्रण केंद्र पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए। हम बस प्लास्टिक अपशिष्ट को वहां तक पहुंचाने की व्यवस्था करें। ऐसे कुछ छोटे-छोटे उपाय ही पृथ्वी के जीवन को सुदीर्घ बना सकते हैं।