शांति शब्द कहने में जितना सहज और सरल प्रतीत होता है, वास्तव में अर्थ की दृष्टि से यह उतना ही अधिक गहरा और गूढ़ है। संसार का प्रत्येक मनुष्य आज शांति की खोज में बिल्कुल उसी तरह से लगा हुआ है जैसे कि बड़े-बड़े तपस्वी ईश्वर की तलाश में पूरी तन्मयता के साथ लगे रहते थे। अंतर सिर्फ इतना है कि ऋषि-मुनियों को तो यह भलीभांति पता था कि ईश्वर को कैसे ढूंढ़ा जा सकता है, लेकिन आज के भौतिकतावादी मनुष्य को सही मायने में शांति का अर्थ ही नहीं पता है। फिर भी वह भेड़चाल का अनुसरण करते हुए भांति-भांति के तरीकों से शांति को प्राप्त करने का प्रयास करता हुआ नजर आता है। कभी शांति प्राप्त करने के लिए एकांत स्थान ढूंढ़ा जाता है, तो कभी लोग साधु और संतों के प्रवचन सुनने जाते हैं और कभी प्रकृति की गोद में जाकर शांति को ढूंढ़ने का प्रयत्न किया जाता है।

सवाल है कि क्या प्रत्येक मनुष्य के लिए ये सारे प्रयत्न सार्थक सिद्ध होते हैं? संभवत: नहीं, क्योंकि शांति को हासिल करने में इन कारकों की भूमिका सदैव गौण होती है। दरअसल, शांति एक ऐसा सुंदर भाव है जो हमारे अंतर्मन में अपने आप ही प्रस्फुटित होता है, बशर्ते कि उसके प्रस्फुटन के लिए आवश्यक दशाएं हमारे मन मस्तिष्क में विद्यमान हों। यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी बीज को धरती के अंदर बो देने के उपरांत उसका पौधे के रूप में प्रस्फुटित होना। बीज से पौधे में रूपांतरण तभी संभव होता है जब उस रूपांतरण के लिए अनुकूल दशाएं पर्यावरण के द्वारा प्रदान की जाएं।

शांति एक ऐसा फल है जिसकी प्राप्ति के लिए अंतर्मन की भूमि को किसी भी तरह के बीज की आवश्यकता नहीं होती। अगर दशाएं अनुकूल हैं तो शांति का प्रस्फुटन अंत:करण के द्वारा अपने आप ही कर दिया जाता है। प्रश्न यह उठता है कि आखिरकार वे कौन-सी दशाएं हैं जो मन के अंदर शांति के भाव को जन्म देने के लिए अनिवार्य हैं। हम सभी जानते हैं कि योग के आठ अंगों में से पहला अंग ‘यम’ है और ‘यम’ के अंतर्गत भी पांच गुणों का समावेश होता है। ये पांच गुण हैं- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। माना जाता है कि जीवन में इन गुणों का पालन सुनिश्चित कर लिया जाए तो हम अपने अंतर्मन को शांति की दिशा में मोड़ सकने में सक्षम होंगे। लेकिन इस पर विचार की दुनिया में अलग-अलग मत रहे हैं। आमतौर पर ऐसा नहीं होता है।

मनुष्य द्वारा ऊपर से तो शांति की तलाश का दिखावा किया जाता है, लेकिन उसके अंतर्मन में लालच, ईर्ष्या, द्वेष, छल, कपट, धन, दौलत और भी न जाने ऐसे कितने विचार एवं विषय बादलों की तरह उमड़-घुमड़ कर रहे होते हैं। ये विचार और दुर्गुण इस तरह छिपे होते हैं कि हमें यह एहसास नहीं होने देते कि उनका हमारे साथ होना ही हमारी प्रगति और लक्ष्य प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है।

दरअसल, ये सभी ऐसे कारक हैं जो हमारी अक्ल पर पर्दा डालने का काम बखूबी करते हैं। लिहाजा हम यह समझ नहीं पाते कि शांति की तलाश के लिए हमें जब भी निकलना होगा, इन सभी कारकों को त्याग देना होगा। बुद्धि और विवेक पर पड़ा हुआ यह अस्थायी आवरण हमें बिना कुछ सोचे-समझे निर्णय लेने के लिए विवश कर देता है और हम अपने अंतर्मन को शांति का उपहार देने के लिए भांति-भांति के निरर्थक प्रयत्नों की शृंखला को आरंभ कर देते हैं। परिणाम यह निकलता है कि अनेक अनावश्यक प्रयासों की वजह से हमारे अंत:करण में अशांति का स्तर और अधिक बढ़ जाता है।

हम कभी जल पर गौर करें तो यह पाएंगे कि यह जब भी स्थिर रहता है तो इसमें किसी भी प्रकार की तरंगें उत्पन्न नहीं होती। ज्यों ही किसी कंकड़ या पत्थर की चोट के माध्यम से इसे आघात पहुंचाया जाता है, तब उस स्थिति में यह जल स्थिर नहीं रहता, बल्कि इसकी सतह पर लहरें उत्पन्न हो जाती हैं। आघात की तीव्रता अगर अधिक है तो ये लहरें सतह से लेकर भीतरी भागों तक भी पहुंच जाती हैं। हमारे अंतर्मन की स्थिति ठीक ऐसी ही है। जैसे ही सांसारिक मोहमाया, विषय, लोभ, लिप्सा हमारे शांत अंतर्मन पर चोट करती हैं, तत्काल ही इसके अंदर अशांति की तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। एक विशेष बात यह है कि अशांति की हलचल का उठना तो नितांत सरल प्रक्रिया है, लेकिन इनसे मुक्ति पाना यानी इस अशांति का फिर शांति की अवस्था में परिणत होना एक बहुत कठिन कार्य है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि एक बार अशांति के आवरण में प्रवेश करने के बाद फिर शांति की ओर लौट पाना नितांत दुस्साध्य कार्य है।

शांति एक ऐसा रत्न है जो वास्तव में बहुत दुर्लभ है और खास बात यह है कि संसार में इस रत्न के कई नकली प्रतिरूप भी पाए जाते हैं। यह हमारी बुद्धिमता पर निर्भर करता है कि हम असली और नकली में विभेद करके वास्तविक शांति की ओर अपना कदम बढ़ाएं। मगर कदम आगे बढ़ाने से पहले हमें यह भलीभांति सुनिश्चित कर लेना होगा कि हमारा अंतर्मन पूरी तरह से निष्कलुष हो और इसके अंदर किसी भी प्रकार की उथल-पुथल विद्यमान न रहे। जब तक हम आसक्ति के पाश में बंधे रहेंगे तब तक हम चाह कर भी शांति की दिशा में अपना कदम नहीं बढ़ा सकते।