निराशा और चिंता मनुष्य के जीवन की प्रगति के बड़े बाधक हैं। निराशा को तत्काल विचारों से अलग कर देना और चिंता को अपने मस्तिष्क में नहीं आने देना चाहिए, अन्यथा अत्यधिक चिंता व्यक्ति को चिता तक ले जाने में देर नहीं करती है। इसलिए सकारात्मक सोच के साथ चिंतन, नवीन संकल्प और दृढ़ निश्चय रख कर जीवन के पथ पर अग्रसर होने की जरूरत है। मन ही मन अगर हमने किसी कठिन कार्य को करने का संकल्प ले लिया, तो निरंतर जिजीविषा और संयम के साथ संघर्ष हर बड़ी जीत और सफलता के उत्तम मार्ग हैं। यों जीवन में कठिन कार्य को पहले चुनना चाहिए, जिससे पूरी शक्ति और ऊर्जा लगा कर हम उसे प्राप्त कर सकें।

कठिन कार्य से घबरा कर उससे पलायन करना निराशा को जन्म देता है। निराशा से बढ़ कर कोई अवरोध नहीं, इसलिए निराशा और हताशा को त्यागने और उत्साह के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है, तब सफलता हमारे कदमों पर होगी। हर बड़ा व्यक्ति जो हमें समाज से अलग हट कर खड़ा दिखाई देता है, जिसे हम विलक्षण और प्रतिभा संपन्न मानते हैं। आज के संदर्भ में हम उसे ‘सेलिब्रिटी’ या मशहूर हस्ती कहते हैं, तो निस्संदेह उसकी इस सफलता के पीछे अनवरत श्रम, अदम्य मानसिक शक्ति और संयम छिपा होता है।

कठिन श्रम ही सफलता के खोलते हैं रास्ते

बड़ी सफलता प्राप्त करने का कोई सरल उपाय या संक्षिप्त रास्ता नहीं होता है। विपरीत परिस्थितियों में मनुष्य की मानसिक दृढ़ता और संकल्पित कठिन श्रम ही सफलता के रास्ते खोलते हैं। यों तो हर इंसान के जीवन में विशेषताएं, मान्यताएं, प्रतिबद्धताएं और आकांक्षाएं होती हैं। सभी लोग मूलभूत आवश्यकताओं के साथ-साथ सामाजिकता, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा चाहते हैं। मनुष्य की स्वाभाविक और अदम्य इच्छा की पूर्ति संपूर्ण जीवन और उसके अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक है, लेकिन व्यक्ति की इच्छा, आकांक्षा और सफलता उसके मूल्यों, सिद्धांतों और आदर्शों की कीमत पर कतई नहीं होनी चाहिए।

नई नवेली दुल्हनों को चिट्ठियों के लिए करना होता था लंबा इंतजार, कागज पर लिखे शब्दों से भाव होते थे महसूस

व्यक्ति की आकांक्षा, सफलता और अदम्य इच्छा अगर भूख और मूल्यों को समाविष्ट न करते हुए दूसरी दिशा में जाती हो, तो ऐसे में उसकी सफलता पूरे मानव समाज और मानवता के लिए संकट का कारण भी बन सकती है। जिस तरह एक वैज्ञानिक मेहनत, लगन, प्रयोगशाला में मानवीय संवैधानिक मूल्यों से ओतप्रोत मानव कल्याण के उपकरण न बना कर जैविक और रासायनिक हथियार बना कर व्यापक जनसंहार जैसे अमानवीय आविष्कार को मूर्त रूप दे, तो यह समाज के लिए खतरनाक हो सकता है। यही वजह है कि सफलता का नशा और इच्छा के पीछे मानवीय मूल्यों का होना अत्यंत आवश्यक भी है।’

भारत में प्राचीन काल से ही मूल्यों की प्रतिबद्धता की परंपरा चली आ रही है

मूल्य, सिद्धांत और नैतिकता जीवन के लक्ष्य तथा उसके क्रियान्वयन में सर्वाधिक संवेदनशील एवं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सफलता की धारणा केवल स्थापित मापदंड न होकर मानवीय मूल्यों से जुड़ा होकर मानव कल्याण के लिए भी होना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि विश्व भर की सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों और धर्मों में अहिंसा, सत्य, करुणा, सेवा, दया और विश्व बंधुत्व की भावना की निर्विवाद उपस्थिति दिखाई देती है और वैश्विक विकास की अवधारणा भी इन्हीं बिंदुओं पर रख कर तय की जाती है। भारत में प्राचीन काल से ही मूल्यों की प्रतिबद्धता की परंपरा चली आ रही है।
ऋषि-मुनियों ने तो यहां तक कहा है कि जिसका चरित्र और मानवीय आदर्श चला गया, उस व्यक्ति का अस्तित्व क्या रहा। भारतीय संस्कृति में आदर्शों तथा मूल्य के पोषक उदाहरणों की अंतहीन सूची है, जिनमें कबीर, रैदास, संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, मोइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया, रहीम, खुसरो, गांधी, नेहरू, रवींद्रनाथ ठाकुर, सुभाषचंद्र बोस और विवेकानंद जैसे अन्य कई महान लोगों ने सिद्धांतों की प्रतिबद्धता को ही अपने जीवन की सफलता मान कर खुद को समाज और देश को सौंप दिया था।

जीवन का आधार है संबंध, इसी से हमारे कर्म का होता है निर्धारण

दरअसल, व्यक्ति को महज सफलता का पुजारी न बन कर मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होने का प्रयास करना चाहिए, ताकि थोड़ी सफलता के स्थान पर चिरस्थायी और समाज-उपयोगी सफलता प्राप्त हो सके। वर्तमान में यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि व्यक्ति स्वाद और सफलता के लिए अक्सर अपने मूल्यों को तिलांजलि दे देता है। वर्तमान सुख और लालच चिरस्थायी सफलता के सामने महत्त्वपूर्ण और प्राथमिक हो जाता है। आज मनुष्य तत्काल और अस्थायी सफलता के पीछे मानवीय मूल्यों प्रतिबद्धताओं को किनारे कर उस मरीचिका की तरफ दौड़ रहा है, जो अत्यंत अस्थायी और पानी के बुलबुले की तरह है। इससे न तो कोई इतिहास बनता है और न ही कोई प्रतिमान स्थापित होता है। पानी का पतला रेला नदी का रूप नहीं ले सकता। उसी तरह बिना मूल्यों की सफलता स्थायी नहीं होती है।

राजनीति और प्रशासन में मूल्यों-सिद्धांतों की ज्यादा आवश्यकता महसूस की जाती है, क्योंकि राष्ट्र और नीति निर्देशक तत्त्वों को संचालन की दिशा देने के लिए मानवीय संवेदना, मूल्य और सिद्धांतों की अत्यंत आवश्यकता होती है। अन्यथा समाज दिग्भ्रमित होकर बिखरने के कगार पर पहुंच जाता है। राष्ट्र विखंडित होने की स्थिति में आ जाता है। मूल्यविहीन समाज अपने अधिकारों के दुरुपयोग और कर्तव्य के प्रति लापरवाही तथा उदासीनता के चलते समाज को चिंताजनक स्तर पर लाकर खड़ा कर देता है। सफलता तभी शाश्वत और स्थायी हो सकती है, जब इसमें जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों का समावेश होता है। वही देश चिरस्थायी और लंबे समय तक स्वतंत्र रह सकता है, जिसके शासक और आम लोग अपने मूल्यों, सिद्धांतों और नैतिक प्रतिबद्धता के मार्ग पर चल कर दुनिया के अन्य देशों से अपने संबंध निर्मल और सैद्धांतिक बना कर रखते हैं।