बालकनी में बैठे हुए अचानक लाउडस्पीकर से निकली एक आवाज ने कौतुहल पैदा कर दिया। कोई महिला लोगों से गुहार लगा रही थी कि उसके पचहत्तर वर्षीय पिता शाम से घर नहीं लौटे हैं। वे पास के एक पार्क में टहलने गए थे। काफी देर बाद जब नहीं लौटे, तो उनके परिवार वालों ने आसपास ढूंढ़ना शुरू किया। मित्रों से पूछा। किसी को उनकी खबर नहीं थी। महिला यह भी कह रही थी कि उनके पिता को ‘डिमेंशिया’ यानी स्मृतिलोप नामक बीमारी है, जिस कारण कई बार वे रास्ते भूल जाते हैं। इसलिए उनके कुर्ते की जेब में घर का पता और फोन नंबर पर्ची में लिखकर रखा होता है। तिपहिया वाहन में बैठी वह महिला बीच-बीच में भावुक हो जा रही थी और उसी आवेग में अपनी बातें भी कहती जा रही थी। उसने यह भी बताया कि थाने में गुमशुदगी की रपट दर्ज करा दी गई है, फिर भी किसी को उनके पिता की खबर मिले, तो वे उनसे फोन पर जरूर संपर्क करें।
अकेलेपन से बढ़ रहा पहचान कम होने का संकट
ज्यादातर लोगों को ऐसे दिनों का ध्यान होगा, जब मोहल्ले में बच्चों की गुमशुदगी को लेकर गाड़ियों से घोषणा की जाती थी। मगर किसी बुजुर्ग के गुम हो जाने की सूचना बहुत कम मामलों में रहती थी। इसी तरह के एक मामले में एक चिकित्सक का भरा-पूरा परिवार था। वक्त आने पर बेटियों की शादी हो गई, बेटों ने अपना अलग आशियाना बना लिया। कुछ समय बाद पत्नी भी गुजर गईं और वे बिल्कुल अकेले पड़ गए। पहले उन्होंने बोलना कम कर दिया, फिर धीरे-धीरे वे भूलने की बीमारी की गिरफ्त में चले गए। कुछ समय बाद उन्होंने लोगों को पहचानना बंद कर दिया और चल बसे।
2050 तक एक करोड़ तिरपन लाख लोग होंगे पीड़ित
इस तरह के मामले अब अपने आसपास लोगों को देखने को मिल जा सकते हैं, जिसमें कोई बुजुर्ग स्मृतिलोप, डिमेंशिया या अल्जाइमर या भूलने की परेशानी या क्रम से बात याद नहीं रख पाने की दिक्कत से जूझ रहे हैं। खासतौर पर बुजुर्ग आबादी के बीच इसने एक ‘महामारी’ का रूप ले लिया है। लैंसेट पब्लिक हेल्थ जर्नल के अनुसार, वर्ष 2050 तक एक करोड़ तिरपन लाख से अधिक लोग इस बीमारी से पीड़ित हो सकते हैं। इसके शिकार लोगों की याददाश्त, सोच, भाषा और व्यवहार बढ़ती उम्र के साथ परिवर्तित हो रहे हैं।
बुजुर्ग महिलाओं की चुनौतियां कई गुना बढ़ सकती है
ह्यूस्टन विश्वविद्यालय में इस मसले पर हो रहा शोध बताता है कि लोग जितनी ज्यादा उम्र तक जीते हैं, उनमें अल्जाइमर होने का जोखिम उतना ज्यादा होता है। दूसरी ओर, इस सच को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि भारत समेत दुनिया भर में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2050 तक भारत में साठ वर्ष और इससे अधिक उम्र के बुजुर्गों की आबादी दोगुनी होकर 34.60 करोड़ तक पहुंच जाएगी। इससे उन बुजुर्ग महिलाओं की चुनौतियां कई गुना बढ़ जाएंगी, जो अकेली रहती हैं या फिर आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
यों वृद्धावस्था अपने आप में एक चुनौती है। बढ़ती उम्र के साथ शारीरिक व्याधियों से निरंतर संघर्ष चलता रहता है। उस पर से अगर मस्तिष्क साथ देना छोड़ दे, तो उनकी स्थिति, मन:स्थिति को समझा जा सकता है। जब स्मृतिलोप जैसे रोग होते हैं, तो मस्तिष्क में काफी कुछ घटित होता है, जो जटिल माना जाता है और लक्षण के वास्तविक शुरुआत से कई वर्ष पहले से घटित होने लगता है। चिकित्सकों का कहना है कि मस्तिष्क में अलग-अलग प्रकार के प्रोटीन जमा होने से वह उसकी कोशिकाओं के बीच संपर्क और संचार को नष्ट करना शुरू कर देते हैं। नतीजतन, बुजुर्गों का व्यवहार, आचरण, सोच बदलने लगते हैं।
इसमें दो मत नहीं कि आज भी लोग ऐसे बुजुर्ग माता-पिता का ध्यान रखने में कोई कमी या कसर नहीं छोड़ रहे। वे समझते हैं कि डिमेंशिया या अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी बीमारियों के कारण उनके व्यवहार में आने वाले चिड़चिड़ेपन, नाराजगी, गुस्से को उन्हें संवेदनशीलता के साथ स्वीकार करना है। छोटे बच्चे की तरह उनके साथ नरमी और सहानुभूति रखनी है, क्योंकि ये बीमारियां कुछ ऐसी हैं जो सिर्फ किसी वृद्ध को भावनात्मक और मानसिक रूप से असहाय नहीं कर रही, बल्कि पूरा परिवार इस विषम और विकट परिस्थिति का सामना करने को विवश होता है।
कहते हैं कि जब हमारी खुद की मन:स्थिति अच्छी और सकारात्मक होगी, तो परिस्थिति कभी हमारे ऊपर हावी नहीं होगी। हम अपनी मजबूत अवस्था और दृढ़ इच्छाशक्ति से किसी भी चुनौती का सामना कर लेंगे। भारतीय समाज में ये विश्वास आज भी कायम है कि बड़े-बुजुर्गों की निस्वार्थ सेवा करके पुण्य मिलता है। जब माता-पिता त्याग और संघर्ष के जरिये अपने बच्चों की परवरिश कर सकते हैं, हमारी छोटी-छोटी खुशियों का खयाल रख सकते हैं, तो बढ़ती उम्र में हम उनका हाथ क्यों नहीं थाम सकते? उनके साथ बातचीत का सिलसिला क्यों नहीं बनाए रख सकते? उनकी डांट या चिड़चिड़ेपन को क्यों स्वीकार नहीं कर सकते?
मस्तिष्क में होने वाले बदलावों को हम बेशक नहीं रोक सकते हों, लेकिन अपने बुजुर्ग अभिभावक को साथ में सैर पर ले जा सकते हैं, उनके साथ थोड़ा व्यायाम कर सकते हैं या कोई आसान सा खेल सकते हैं। चिकित्सकों का कहना है कि संगीत सुनना भी ऐसे बुजुर्गों के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है। तो हम उनकी उदासी मिटाने के लिए अपनी सीमा में जो संभव हो, वह कर सकते हैं। उनसे अपने दिल की बातें साझा कर सकते हैं और उन्हें अहसास करा सकते हैं कि वे हमारे लिए कितने महत्त्वपूर्ण हैं। बुढ़ापा अभिशाप नहीं, उम्र का एक पड़ाव भर है।