मीना बुद्धिराजा
प्रकृति ने मनुष्य को मुस्कराहट का अद्भुत गुण दिया है, जिसके उपयोग से बहुत-सी मुश्किलों में भी हम खुद खुश रह सकते और दूसरों को सकारात्मक रहने की दिशा दिखा सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि वह मुस्कान और हंसी सच्ची हो, नकली और बनावटी नहीं, और जो खुद अनेक संघर्षों से उत्पन्न होकर भी प्रत्येक परिस्थिति में जीने का हौसला देती हो। यह मुस्कान बहुत मूल्यवान है, जो पराजय में भी जीत की संभावना खोज सकती और उम्मीद के विकल्प को जिंदा रखती है। इस व्यापक मुस्कराहट में प्रेम, करुणा और आनंद का प्रसार है, जिसमें संपूर्ण सृष्टि का अपनापन समाहित है, मानवीय सौंदर्य और जीवन की शक्ति है।
जब तक सुख और दुख के अनुभवों के निरंतर चलते और बदलते क्रम में इस पूरी प्रक्रिया में हम उस मुख्य कारण से मुक्त नहीं होंगे, जो हमें अपनी वास्तविक और स्थायी मुस्कुराहट से वंचित रखता है, तब तक जीवन अंदर से अधिकांश दुख ही प्रतीत होगा और सुख की तलाश करते हुए दुनिया की मूर्खतापूर्ण हंसी और सतही मनोरंजन की खुशी में शामिल होकर भी इस मौलिक निष्कपट मुस्कान का हम अनुभव नहीं कर पाएंगे।
सच्ची पीड़ा और घोर निराशा के अंधकार की चुनौतियों से जूझने के बाद उभर कर आने वाली मुस्कान के आनंद को ही उच्चतम कहा जा सकता है। सुख और दुख से ऊपर होकर और अलग हटकर उचित और सार्थक कार्य करने के परिणाम के रूप में वह खुशी गहरी आतंरिक संतुष्टि का प्रतीक बन जाती है। जीवन में संघर्ष और कठिनाइयों से पलायन करने का कोई विकल्प नहीं होता। विपरीत समय में पूर्ण गरिमा के साथ अपनी मुस्कुराहट को कायम रखना ही मनुष्य की जिजीविषा बन सकती है, जिसे जीवन की यात्रा के अनुभवों की वास्तविक उपलब्धि कहा जा सकता है।
जीवन की समरसता और लयबद्धता में अपने आप में ही एक स्वाभाविक स्थायी मुस्कराहट अंतर्निहित होती है, जिसे किसी भी परिस्थिति में खोना नहीं चाहिए। जब किसी और बाहरी कारण और वस्तु से नहीं, बल्कि अपनी चेतना के स्वभाव से खुशी मिलती है तो हमें अपनी सभी गतिविधियों और कार्यों के लिए विशाल स्वतंत्रता प्राप्त हो जाती है।
इस आतंरिक सकारात्मक प्रेरणा से सफलता-विफलता और परिणाम की सोच पर निर्भर होने की सीमित मान्यता से मुक्त होकर खुले मन से सब कुछ स्वीकर करने की स्थिति में नई आशा, नए प्रयास के रास्ते पर चला जा सकता है। जब हम भीतर से जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में समस्या से विचलित न होकर समाधान के विकल्प के लिए तैयार रहते हैं तो यह मुस्कान हमारी परिपूर्णता, सौंदर्य और गरिमा के रूप में प्रतिबिंबित होती है।
मानवीय भावनाओं से लैस मन की प्रवृत्ति है कि वह बहुत-सी विविधताओं, पाने-खोने, भविष्य की कल्पनाओं में खुशी को खोजता है। उसकी पसंद-नापसंद पर निर्भर हंसी वास्तव में उसकी अपनी खुशी है ही नहीं, बल्कि परिस्थितियों का परिणाम है। जितना आंतरिक स्तर पर व्यथित, अपूर्ण और रिक्त मन होगा, वह बाहरी और सतही माध्यमों में उस खालीपन को भरने का प्रयास करता है, जबकि हमारी चेतना का स्वभाव ही आंनद है, मुक्ति है।
यह मुस्कान तभी संभव है जब वह हमारे अस्तित्व का स्वभाव बन जाए, हमेशा के लिए मनुष्य के जीवन की नियति बन जाए। इस निर्विकल्प खुशी के लिए बाहरी प्रशंसा, बाजार और उपभोगवादी जीवनशैली के प्रभाव, किसी प्रलोभन, भीड़ के लोगों के अस्थायी सहारों पर आश्रित होने का बंधन जरूरी नहीं होता।
यह आत्मिक, पूर्ण, बेशर्त और स्वतंत्र मुस्कराहट जीवन की मूल्यवान चीज है जो किसी परिस्थिति के दबाव और किन्हीं बाहरी शर्तों पर आधारित नहीं होती। इस मुस्कान के रचयिता हम खुद होते हैं और यह हम पर ही निर्भर करता है कि प्रकृति के इंद्रधनुष के रंगों में इस हंसी का विस्तार देखना है या निराशा के अंधकार में इसे विलीन कर देना है।
अपनी ही निर्मित आंतरिक और बाहरी संकीर्ण सीमाओं के पार जाकर और नई संभावनाओं की खोज करते हुए हमेशा इस मुस्कराहट को बनाए रखने का सामर्थ्य भी हमारा ही दायित्व है, किसी दूसरे का नहीं। जीवन की साधारण सतह से थोड़ा ऊपर उठकर जीवन को उच्चतम स्तर पर या उसकी गहराई का अनुभव करके जीने का अभ्यास हो तो इस स्थायी मुस्कराहट को छोटी-छोटी कठिनाइयां छू नहीं पातीं और किसी भी पराजय, विफलता की चुनौती में अपने स्वतंत्र अस्तित्व के बोध की इस मुस्कान की उपस्थिति को हमेशा बनाए रखा जा सकता है, जो इसकी वास्तविक मूल्यवत्ता है।