भावना मासीवाल

हर स्तर पर स्वास्थ्य की समस्या को हल करने के प्रयासों और दावों के बीच स्त्री की सेहत इस समय और समाज का ज्वलंत मुद्दा है, क्योंकि आज भी हमारे समाज में स्त्री दोयम दर्जें के नागरिक के रूप में रहती है। यही कारण है कि पहचान के प्रश्न के साथ-साथ स्त्री अपने स्वास्थ्य संबंधी सवालों से जूझ रही है। यह सवाल केवल किसी एक स्त्री का नहीं है, बल्कि इस प्रश्न से प्रत्येक परिवार की स्त्री किसी न किसी रूप में जूझ रही है।

हमारे समाज, परिवार में महिलाओं की इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया जाता। कहा जाता है कि महिलाएं कभी थकती नहीं, कभी बीमार नहीं पड़तीं। ऐसे जुमलों को बचपन से सुनती हुई स्त्रियां बड़ी होती हैं। महिलाओं की अपनी बहुत-सी समस्याएं हैं, जिन्हें अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता या उन्हें गैरजरूरी करार दिया जाता है। पुराने समय में शौचालय नहीं हुआ करते थे, तो महिलाओं को खुले में शौच जाना पड़ता था।

माहवारी के समय पर उनकी स्थिति अधिक दयनीय हो जाती थी। एक ओर शौचालय की समस्या, दूसरी तरफ माहवारी में साफ-सफाई के अभाव में महिलाओं का बहुत-सी बीमारियों का सामना करना। सरकार ने खुले में शौच की समस्या का निदान निकाला और हर घर शौचालय की व्यवस्था करने का वादा किया। काफी हद तक यह व्यवस्था लागू हुई भी।

बावजूद इसके, आज भी सार्वजनिक स्थानों से लेकर कार्यस्थलों तक में महिला शौचालय की स्थिति दयनीय देखी जा सकती है। देश के छोटे से लेकर बड़े संस्थानों तक में शौचालय की व्यवस्था नदारद है। अगर कहीं उपलब्ध भी है, तो वह अस्थायी व्यवस्था है या फिर बदहाल है। बहुत से बड़े-बड़े संस्थानों में तो व्यवस्था ही नदारद है।

महिलाओं के लिहाज से देखें तो शौचालय उनकी प्राथमिक आवश्यकता है। इसके अभाव के कारण महिलाओं को यूटीआइ यानी मूत्राशय और गुर्दे में संक्रमण की समस्या उत्पन्न होती है। हमारे आसपास बहुत-सी कामकाजी महिलाएं इस समस्या से जूझ रही हैं। देश के संविधान में अनुच्छेद 152 में सार्वजनिक जन-सुविधाओं के बारे में बताया गया है।

इसलिए हमारे देश में होटल रेस्तरां और ढाबा निजी संपति होने के बाद भी सार्वजनिक सेवाओं में आते हैं। संविधान के अनुच्छेद 152 में कहा गया है कि किसी भी नागरिक को उपर्युक्त स्थल पर लिंग, जाति, धर्म, भाषा, वेशभूषा या क्षेत्र के आधार प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता है।

सार्वजनिक विमर्शों में भले इस समस्या पर ज्यादा बात नहीं होती है, लेकिन सच यह है कि इस मुश्किल से सर्वाधिक कामकाजी महिलाएं जूझती हैं। यह लंबी यात्राओं से लेकर कार्यस्थल तक में शौचालय न होने के कारण स्वास्थ्य समस्याओं की बड़ी वजह बनता है। यह समस्या किसी एक स्थान विशेष की नहीं है, बल्कि पूरे भारत में महिलाएं इससे जूझ रही हैं। हम अक्सर सोचते हैं कि इस तरह की समस्याएं एक वर्ग विशेष की महिलाओं को झेलनी पड़ती हैं। मगर ऐसा नहीं है।

अलग-अलग तरीके से आमतौर पर सभी तबकों की महिलाएं इस मुश्किल का सामना करती हैं। पांच सितारा जगहों को अगर छोड़ दें तो ज्यादातर जगहों पर महिलाएं अपने काम के दौरान शौचालय की सुविधा उपलब्ध न होने या न्यूनतम साफ-सफाई न होने की समस्या से दो-चार होती हैं। हमारे समाज का ऐसा वर्ग, जो अधिक प्रभावी है और बल्कि समाज का एक वर्ग उनका अनुसरण करता है, उनकी कोई बहुत मामूली-सी गतिविधि भी सुर्खियों में होती है। विचित्र है कि ऐसे लोग भी इस तरह की समस्याओं का सामना करने को मजबूर हैं। ऐसे में आम कामकाजी महिलाओं की स्थिति को समझा जा सकता है।

आज भी हमारे ही देश में कितनी ही बालिकाएं ऐसी हैं जो शौचालय की दुरुस्त व्यवस्था न होने के कारण विद्यालय और महाविद्यालय नहीं जा पाती हैं। बल्कि लड़कियों के बीच में स्कूली पढ़ाई छोड़ने का यह एक बड़ा कारण भी है। यह समस्या ग्रामीण शेत्रों में अधिक देखी जा सकती है, जहां गांव दूर होने के कारण और अधिक दूरी के कारण बच्चियां अधिक छुट्टी लेती हैं।

मासिक धर्म में अधिक रक्त स्राव होने और शौचालय की समस्या के कारण लड़कियों को घरों में ही रहना पड़ता है। इस समस्या से किशोरियों से लेकर महिला कर्मचारियों तक को जूझना पड़ता है। सरकार की ओर से शौचालय बनवाए जा रहे हैं और लड़कियों या महिलाओं की सेहत का खयाल रख कर नीतियां बनाई जा रही हैं।

मगर उनका उसी रूप में जमीन पर उतरना एक बड़ी बाधा है। इन सब अव्यवस्थाओं के बीच आज भी सरकारी से लेकर सार्वजनिक और शहरी से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में कामकाजी महिलाओं को शौचालय की समस्या के कारण बहुत-सी बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। कई बार वे कैंसर तक से ग्रस्त हो जाती हैं। यह व्यवस्था के लिए परेशानी का कारण होना चाहिए कि आज आधी आबादी अपने स्वास्थ्य के प्रति हो रहे लापरवाही भरे रवैये के लिए सवाल करने को मजबूर हैं। स्वास्थ्य जीवन की अमूल्य निधि है, जिसकी सुरक्षा हम सभी का अधिकार है और कर्तव्य भी।