अमिताभ स.

सुबह-सवेरे उठिए, बिस्तर छोड़िए और समझिए कि जल्दी उठ कर ही आपने शुरुआती बड़ी सफलता से अपनी झोली लबालब भर ली है। दरअसल, शहरों में हर कोई महानगरीय जीवनशैली में जकड़ा है, जिसके चलते अरसे से उसकी खुद से मुलाकात नहीं हो पाती। सुबह की वेला और पैदल सैर करना स्वयं से मुलाकात करने का बड़ा मौका होता ही है। सुबह फुर्सत के कुछ मिनट खासे अहम होते हैं। बताते हैं कि शारीरिक और मनोवैज्ञानिक मिलन आत्मविकास का शिखर है। इसे हासिल करने के लिए खुद से संवाद लाजिमी है। सुबह की सैर के दौरान उभरे फुर्सत के पल बड़े-बड़े संवाद और विचारों से नवाजते हैं।

नेतृत्व के गुण और कामयाबी इसी समय भीतर से फूटती है

नेतृत्व के गुण और कामयाबी इसी समय भीतर से फूटती है। ऐसे आधे घंटे से ही इंसान की दिन भर की कार्यक्षमता और कुशलता रफ्तार पकड़ती है। यही समय होता है नई सोच, नव प्रारंभ, नवयौवन, नए विचार और नवेली खुशी का। कभी-कभी ऐसे पल किसी के कदम ही नहीं तय करते, बल्कि पूरा जीवनपथ ही बदल कर रख देते हैं। बुद्धि, योग्यता और नतीजे तभी भली-भांति अभिव्यक्त होंगे, जब भीतर से संतुलित होंगे। वास्तविक उन्नति इंसान की अध्यात्म मनोदशा के व्यापक सुधार से ही प्राप्त होती है।

कलाकार, साहित्यकार और बुद्धिजीवी मानते हैं श्रेष्ठ वक्त

सुबह की सैर करते-करते इंसान स्वयं से जुड़ता है। चलते-चलते खुद से संवाद करने का सबसे खास मौका होता है। अगर मौसम सुहावना हो, तो सोने पर सुहागा समझिए। ठंडी हवा के झोंके चेहरे को बार-बार छूते हैं। यही अनमोल पल हैं। खुद के संग और दिनोंदिन तक साथ-साथ चलते हैं। इसलिए कहते हैं कि सुबह एक घंटा ज्यादा सोते हुए गंवा दिया, तो उसकी भरपाई आप दिन भर नहीं कर पाते। कलाकार, साहित्यकार और बुद्धिजीवी सुबह-सवेरे पांच बजे के आसपास की वेला अपने मार्गदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानते हैं।

सभी गीतकार-संगीतकार भी तड़के ही रियाज करते हैं। नित्य व्यायाम या फिर योग करने वाले सभी लोग सुबह का समय ही चुनते हैं। इसीलिए दुनिया भर के स्कूल सवेरे जल्दी शुरू होते हैं। जहां कहीं दोपहर की पारी के स्कूल हैं, वहां भी अभिभावक अपने बच्चों को सुबह की पारी में दाखिल कराने को प्राथमिकता देते हैं।

टेक्सास विश्वविद्यालय के एक शोध ने तो इतना जाहिर किया है कि सुबह जल्दी उठ कर पढ़ने वाले विद्यार्थियों के अव्वल आने की संभावनाएं दोगुनी हो जाती हैं। ज्यादातर कामयाब इंसान अपने तमाम महत्त्वपूर्ण कार्यों को सुबह ही करते हैं, क्योंकि उस समय इंसान सर्वाधिक ऊर्जा से लबालब होता है। यदा-कदा बिस्तर पर लेटे-लेटे भी तमाम रचनात्मक विचार सुबह की सौगात बन जोहन में उमड़ने लगते हैं, जिनसे आगे कामयाबी हासिल करना खासा आसान हो जाता है। सवेरे उठने के हिमायतियों का मानना है कि सुबह पांच बजे जागना आदर्श वेला होती है सुकून और खुशी के लिए।

साथ ही, भावनात्मक तौर पर दिमागी नियंत्रण रखने में भी मददगार होता है, क्योंकि सुबह की वेला कम अड़चनें घेरती हैं। मोबाइल फोन की फालतू घंटियां नहीं बजतीं और मन तरोताजा होता है। ऐसा लगता है कि कामयाबी महज सूर्योदय की दूरी पर खड़ी है। सफल शख्सियतों के लिए यों भी कम ही आराम का समय होता है। ग्रीक दार्शनिक अरस्तु की राय में, ‘भोर फूटने से पहले बिस्तर छोड़ना अच्छे संस्कारों में शुमार है, जो सेहत, समृद्धि और बुद्धिमत्ता से लैस करता है।’

पवन, जल, फूल-पौधे, हरी-भरी घास और नीला आसमान नवाज कर कुदरत खुशियां लुटाने में व्यस्त है। लेकिन इन खुशियों को बटोरने-समेटने की फुर्सत नहीं है। इंसान अतिव्यस्त है, तमाम ऐसी चीजों की गिनती करने में, जो उसके पास नहीं है। जैसे और बड़ा बंगला, शानदार कार, रुतबा, हैसियत, ओहदा वगैरह। वह भूल जाता है कि एक रोज सब कुछ यों ही छोड़ कर निकल जाना है। इंसान नादान कस्तूरी मृग की भांति खुशबू की तलाश में जंगल-जंगल भटकता फिरता है। नहीं जानता कि खुशबू तो उसी की नाभि से उभर रही है। इंसान खुशी की खोज में मारा-मारा फिरता है, जबकि खुशी का फव्वारा तो उसकी सोच में उसी के भीतर समाया है। उसे कहीं मारा-मारा भटकने की जरूरत नहीं, बस सुकून के पल चाहिए। इंसान के पास खुशियों से भरी अनमोल जिंदगी है।

फिर बीज तभी अंकुरित होगा, जब मिट्टी उपजाऊ होगी और धूप-पानी से बराबर सिंचाई होगी। इंसानी मिजाज, स्वभाव और कामकाज की तरक्की भी काफी हद तक ऐसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। सुबह की सैर के बहाने स्वयं के साथ ज्यादा से ज्यादा समय गुजारना तन-मन की सेहत के लिए हर लिहाज से फायदेमंद है। मनोवैज्ञानिक सलाह देते हैं कि सुबह पैदल चलने से और सूर्य उदय को निहारने से शरीर की नसों को जबरदस्त सुकून मिलता है। सुबह की वेला के लिए समय न निकालने की सूरत में जिंदगी में खालीपन घेरने लगता है।