वर्तमान में समझदार लोग यह कहने लगे हैं कि ये जमाना जा किधर रहा है। सब ओर बच्चों और युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक के स्वभाव में परिवर्तन दिखाई दे रहा है। यह स्वभाव उनके व्यवहार में परिलक्षित होता है, यानी उनके व्यवहार को देखकर ही उनके स्वभाव का निर्धारण कर दिया जाता है। स्वभाव का निर्धारण सामने वाले के बोल-चाल, कार्य-व्यवहार, मानसिक समझ और समाज में परस्पर उचित-अनुचित, क्रिया-प्रतिक्रिया व्यक्त करने पर किया जाता है। इसमें व्यवहार उनके स्वभाव का प्रचार कर देते हैं। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि किसी एक के कहने पर ही तुरंत सामने वाले के व्यवहार के बारे में अंतिम रूप से अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि इसमें व्यवहार निश्चित करने वाले की मंशा और उसके मन में छिपे ध्येय को भी समझना जरूरी होता है। अन्यथा हम गलत निर्णय पर पहुंच कर स्वभाव के असत्य प्रचार के भागीदार हो सकते हैं, क्योंकि समय और परिस्थितियां इसमें प्रमुख भूमिका निभाती हैं।

किसी में भी स्वभाव का निर्माण बचपन या किशोरावस्था से ही उसके प्रति किए जा रहे व्यवहार, अकेलेपन या पारिवारिक-सामाजिक वातावरण या उसकी परवरिश की प्रक्रिया में बनने लगता है। किसी के अच्छे या बुरे स्वभाव के विकास में उसके पालन-पोषण, परिवार-समाज का वातावरण, संस्कृति-परंपराएं, धार्मिक मान्यताएं, रीति-रिवाज जैसी परिस्थितियों का योगदान होता है। इसमें सकारात्मक-नकारात्मक दृष्टिकोण भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

स्वभाव के निर्धारण में महसूस करना, सोचना और व्यवहार अहम होता है

स्वभाव के निर्धारण में पहले महसूस करना, फिर सोचना, तद्नुसार व्यवहार करना होता है। व्यक्ति के स्वभाव में सद्गुणों का समावेश जैसे ईमानदारी, कर्मठता, अनुशासन, धैर्य, मिलनसारिता, सत्यवादी, नैतिकता, जिज्ञासुपन, परस्पर सहयोग वृत्ति, प्रसन्नता आदि का समावेश होता है तो उसके अनुसार व्यवहार समाज के सामने आता है। उसके स्वभाव में मानवोचित गुणहीनता प्रकट होती है तो उसे असंयत, अव्यवहारिक या बुरे स्वभाव वाला घोषित कर दिया जाता है। किसी का स्वभाव बनाने में भाषा, जाति धर्म, परिवेश और जीवनशैली भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसी से उसके व्यवहार में उपेक्षा, कहना न मानना, झूठ, अनुशासनहीनता, विपरीत जीवनचर्या या रहन-सहन, अतिलाभ, परिवार-समाज द्रोह, कार्य-व्यापार में दोहरापन, धर्म की आड़ में पारिवारिक-व्यक्तिगत लाभ आदि प्रक्रियाएं देखने को मिलती हैं। यह सब मनुष्य के स्वभाव से बनती है, जन्म लेती है।

मनुष्य का स्वभाव उसके अकेलेपन या परिवार समाज में बनने लगता है। परवरिश और माहौल अच्छा है तो वह अच्छे स्वभाव वाला व्यक्ति बनेगा। खराब या दबावपूर्ण माहौल में परवरिश हो रही है तो खराब स्वभाव के निर्माण की संभावना ज्यादा रहती है, लेकिन कभी-कभी यह भी देखने में भी आता है कि ऐसे माहौल में रहने वाला कोई व्यक्ति अच्छे स्वभाव को लेकर भी समाज में उभर आता है। कभी जीवन के मध्य में भी स्वभाव बदलते देखा गया है। सामाजिक रूप से नकारात्मक स्वभाव वाले भी उत्तम व्यवहार लेकर सामने आ जाते हैं। लेकिन यह बहुत कम होता है। जैसा वातावरण, अनुकूलन वैसा स्वभाव और व्यवहार। चुनाव में वोट पाने की होड़ के मर्यादित-अमर्यादित तरीकों ने लोगों के स्वभाव और व्यवहार की दिशा बदल दी है।

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जो व्यक्ति केवल अच्छी बातों को दिखाता है, उसके पीछे अपना हितलाभ ज्यादा छिपा है। यहीं स्वभाव का दोहरापन उजागर होता है। जहां तक सामाजिक मूल्यों की बात है तो स्वभाव में सामाजिक मूल्य सापेक्ष और विरोधात्मक, दोनों निर्धारित कर दिए जाते हैं। सापेक्ष से अपेक्षा है कि वह शांतचित्त, सहयोगी, धैर्य पूर्वक समझकर प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाला व्यक्ति हो, सहज, आत्मीय, उत्साहवर्धक, संवेदी परिस्थिति के अनुसार अनुकूल-प्रतिक्रिया या व्यवहार करने वाला व्यक्ति हो। ऐसे लोगों को सकारात्मक स्वभाववाला व्यक्ति भी कहा जाता है।

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जिसके व्यवहार में हमेशा जरा-सी बात को लेकर गुस्सा या उग्रता आ जाती हो, वह झगड़े पर उतारू हो जाता हो, तो परीक्षित या व्यवहारी जन उसे उग्र, क्रोधी, नकारात्मक स्वभाव वाला, हर समय असंतुष्ट रहने वाला, कुछ भी बोल देने वाले स्वभाव से चिह्नित कर देते हैं। लेकिन अच्छे या बुरे स्वभाव का निर्धारण एक बार में नहीं हो जाता। जरूरत है संबंधित व्यक्ति के बारे में निष्पक्ष रूप से सोचा जाए। हालांकि कुछ लोगों का स्वभाव एक से अधिक बार साथ रहने पर भी पता नहीं चल पाता। ऐसे लोग अपने को एकदम अभिव्यक्त करने वाले नहीं होते। कुछ लोग बनावटी स्वभाव वाले होते हैं। जैसा उनके व्यवहार में दिखाई देता है, वे वैसे होते नहीं हैं। अपने हित के लिए सामाजिक एकता से खिलवाड़ करते रहना उनका स्वभाव बन जाता है। तब आम आदमी यह समझ नहीं पाता कि ऐसे व्यक्ति का स्वभाव कैसा है, सामाजिक और राष्ट्रीय मूल्यों के हित में है या नहीं।

घर हो, परिवार हो, समाज हो या राष्ट्र। जहां अहं के कारण अपने आपको श्रेष्ठ समझने वाले अहंकार की भावना से युक्त ओछे व्यवहार, धोखा, झूठ, असंगत स्वभाव से उपजे व्यवहार करने वाले लोग होते हैं, वहां हर समय घर-परिवार, समाज, राष्ट्र-संसार में असंतोष और परस्पर भय ही उपजा रहता है। कब कौन बिना कारण कोई किसको नुकसान पहुंचा दे। इसलिए हर जगह अच्छे स्वभाव का निर्माण और निर्धारण जरूरी है। यह हर मनुष्य का दायित्व है।