प्रत्यूष शर्मा
जब हमारा सामना ऐसे लोगों से होता है जो हमसे अधिक सफल हैं, तो हम कैसे प्रतिक्रिया करते हैं? अक्सर हम दो रास्ते चुनते हैं- प्रशंसा और ईर्ष्या। प्रशंसा को एक महान भावना के रूप में देखा जाता है। इसके विपरीत ईर्ष्या को स्वाभाविक रूप से बुरा माना जाता है। हम ईर्ष्या के युग में रहते हैं। अलग-अलग लोग अलग-अलग चीजों से ईर्ष्या करते हैं। करिअर से, बच्चों से या भोजन से ईर्ष्या।
कई बार लगता है कि हर चीज के प्रति कहीं न कहीं ईर्ष्या है। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में अरस्तू ने दूसरे के अच्छे भाग्य को देखकर होने वाले दर्द को ‘उन लोगों के पास वह है, जो हमारे पास होना चाहिए’ के रूप में परिभाषित किया था। मगर सोशल मीडिया के आगमन के साथ ईर्ष्या को चरम पर ले जाया जा रहा है। हम पर लगातार बनावटी जीवन की बमबारी हो रही है और इसका हम पर ऐसा प्रभाव पड़ता है जैसा हमने पहले कभी अनुभव नहीं किया। यह प्रभाव सुखद नहीं है।
उन लोगों को ज्यादा ईर्ष्या होती है, जो ‘वह जीवनशैली हासिल नहीं कर सकते, जो वे चाहते हैं, लेकिन जो वे दूसरों के पास देखते हैं’। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और स्नैपचैट जैसे मंचों का हमारा उपयोग इस बेहद परेशान करने वाले मनोवैज्ञानिक मतभेद को और बढ़ा रहा है। सोशल मीडिया ने हर किसी को तुलना के लिए सुलभ बना दिया है। पुराने समय में लोग अपने पड़ोसियों से ईर्ष्या करते थे, लेकिन अब हम दुनिया भर के सभी लोगों से अपनी तुलना कर सकते हैं। लोग रूप-रंग, करिअर और जीवन जीने के ढंग को लेकर ईर्ष्या की भावना रखते हैं, क्योंकि सोशल मीडिया पर कोई न कोई हमेशा हमसे बेहतर कर रहा है।
हम उन जिंदगियों को देखते हैं, जिन्हें हमने ही आनलाइन आभासी रूप से बनाया है, जिसमें हम केवल अपना सर्वश्रेष्ठ दिखाते हैं। ईर्ष्या किसी और के पास जो कुछ है, उसे नष्ट करना चाह रही है। यह मौन है, विनाशकारी है और शुद्ध द्वेष है। ईर्ष्या में हम किसी चीज को न केवल इसे अपने लिए चाहते हैं, बल्कि यह भी चाहते हैं कि दूसरे लोगों के पास यह न हो। यह एक गहन मुद्दा है, जहां हम किसी अन्य व्यक्ति की तरक्की से बहुत दुखी होते हैं- चाहे वह उसका रूप हो या फिर समाज में उसकी स्थिति हो। कोई भी आयु समूह या सामाजिक वर्ग ईर्ष्या से अछूता नहीं है।
दूसरे नजरिए से देखें तो हमारे जीवन में ईर्ष्या का भाव सकारात्मक भी हो सकता है। भूख हमें बताती है कि हमें खाना चाहिए, ईर्ष्या की भावना, अगर हम इसे सही तरीके से रचनात्मक रूप से जान लें, तो यही ईर्ष्या हमें दिखा सकती है कि हमारे जीवन में क्या कमी है, जो वास्तव में हमारे लिए मायने रखती है। जिंदगी में अगर हम किसी दूसरे व्यक्ति की सफलता को स्वीकार नहीं करते हैं, तो वह ईर्ष्या बनती है और अगर स्वीकार कर लें, तो वही हमें सफलता के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा बन जाती है।
दीपक वे जलाते हैं, जिनके पास सपने और कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है। आसपास कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कुंठा से ग्रसित होते हैं और किसी की तरक्की पर ईर्ष्या से जल-भुन जाते हैं और छोटी सोच से घिरे रहते हैं। खुद मेहनत करने से घबराते हैं और किसी को अपने क्षेत्र में सफल होता देखकर कोयले की तरह जल कर राख हो जाते हैं, पर पैर में पड़ी आलस की बेड़ियों से खुद जकड़े रहते हैं। ऐसे लोग हर रोशनी देने वाले जलते हुए दीपक को बुझा देना चाहते हैं।
ईर्ष्या और कुंठा वालों से कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए। आग लगाने वालों से दीपक की ज्योति बचाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। जब हम देखते हैं कि हम दूसरों से पीछे रह जाते हैं, तो जो दर्द हम महसूस करते हैं वह अक्सर हमें खुद को आगे बढ़ाने या दूसरों को गिराने के लिए प्रेरित करता है। अध्ययनों में यह पाया गया है कि अन्य लोगों से ईर्ष्या करने से मस्तिष्क का कार्टेक्स उत्तेजित होता है, जो शारीरिक और मानसिक दर्द दोनों से जुड़ा होता है।
कुछ हद तक ईर्ष्या स्वाभाविक है और इससे छुटकारा पाना शायद कुछ प्रबुद्ध लोगों को छोड़कर सभी के लिए मुश्किल होगा। पंद्रहवीं शताब्दी में कोसिमो डे मेडिसी का दृष्टिकोण व्यावहारिक था। उन्होंने ईर्ष्या की तुलना एक विषैले और प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले खर-पतवार से ईर्ष्या की तुलना की।
उन्होंने बताया कि हमारा काम इसे मिटाने का प्रयास करना नहीं है, क्योंकि ऐसा करना निरर्थक होगा। इसके बजाय उन्होंने यह सिखाया कि बस, इस खर-पतवार को पानी मत दो। सोशल मीडिया ईर्ष्या बढ़ाता है, क्योंकि यह आपको आपसे अधिक भाग्यशाली लोगों का जीवन दिखाता है। सोशल मीडिया के इस दौर में किसी के लिए भी अपने सौभाग्य को जनता के सामने प्रदर्शित करना पहले से कहीं अधिक आसान हो गया है और हम इस आभासी दुनिया के मित्रों की तुलना अपने वास्तविक जीवन से करते हैं।
अगर हम अपने प्रति ईमानदार हैं तो जिससे हम ईर्ष्या करते हैं, वह एक मार्गदर्शक प्रकाश प्रदान कर सकता है। ईर्ष्या हमारे मूल्यों और इच्छाओं को प्रकट कर सकती है और वहां तक पहुंचने के लिए र्इंधन और प्रेरणा प्रदान करती है।