शिखर चंद जैन
खुशी अक्सर हमारा दरवाजा खटखटाती है। यह कभी हमारे आंगन में खेलती है तो कभी पड़ोसी के घर में चहकती है। कभी यह उपवन में महकती है तो कभी हवाओं में बहकती है, लेकिन हम हैं कि अपने इर्दगिर्द मौजूद खुशी को अक्सर पहचान नहीं पाते। असल में हमने खुशी को सीमित परिभाषाओं, अपनी-अपनी उम्मीदों, अपने-अपने सपनों और दूसरों से तुलना जैसी सीमाओं में बांध रखा है। सच तो यह है कि खुशी सीमाओं में सिमटने वाला अहसास है ही नहीं। यह हवाओं की तरह उन्मुक्त, स्वच्छंद और स्वतंत्र होती है। यह निराकार है। हमें इसे पहचानना, महसूस करना और अपनाना है।
हम अपने आसपास की हर चीज को अपने हिसाब से बदलना चाहते हैं और असंतुष्ट रहते हैं, तो इसका मतलब कि खुशी हमसे कोसों दूर है। इसके उलट जो लोग चीजों, लोगों और परिस्थितियों को सहज भाव से ‘जैसा है, जहां है’ के रूप में स्वीकार कर लेते हैं, वे हरदम खुशमिजाज रहते हैं। हम खुशी के बारे में जिस तरह सोचते हैं, वह तरीका हमारी खुशी के वास्तविक कारणों को काम करके आंकता है और इसी वजह से उनका समुचित प्रभाव उत्पन्न ही नहीं हो पाता।
एक अध्ययन से पता चला कि दूसरों पर पैसे खर्च करने और उनके लिए कुछ करने से खुशी मिलती है। जाहिर है, हम किसी की मदद करें, उपहार दें या उस पर खर्च करें तो मन में बड़प्पन का भाव आता है और भीतर तक सुकून मिलता है। यूनिवर्सिटी आफ ज्यूरिख के वैज्ञानिकों ने पाया कि जो लोग दूसरों के प्रति नरमदिल होते हैं और तकलीफ में उनकी मदद करते हैं, वे तुलनात्मक रूप से खुश रहते हैं।
मदद करने या किसी से मदद का वादा करने से दिमाग में सकारात्मक संकेत जाते हैं, जो उसे खुश रखते हैं। किसी अनजान की तुलना में परिचित या मित्र की मदद करने से इस पुरस्कार का लेवल बढ़ जाता है। इसी प्रकार सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने से भी खुशी मिलती है।
इसमें कोई शक नहीं कि हम एक अच्छा जीवन जीना चाहते हैं, लेकिन यह अच्छा जीवन क्या है? जाहिर है, खुशहाल और सार्थक जीवन। खुशहाल जीवन से हम आनंद, आराम, सुविधा, सुरक्षा और मजे की उम्मीद रखते हैं। यह वह स्थिति है जब हम संतुष्टि महसूस करते हैं। वहीं एक सार्थक और अर्थपूर्ण जीवन में हम अपने जीवन को महत्त्वपूर्ण और उद्देश्यपरक महसूस करते हैं और अपने आप को एक ऐसा व्यक्ति मानते हैं जो अपने परिवार, देश, समाज और इस दुनिया की बेहतरी में अपनी भूमिका निभाने में सक्षम है। अपने मन की खिड़कियां खोल दी जाएं, भीतर की बासी हवा निकलने दिया जाए और ताजा हवा के झोंके से मन को ताजगी दिया जाए। खुद को खुलकर अभिव्यक्त करने से मन में खुशी के भाव आते हैं।
इसके बावजूद खुशी का विज्ञान और अहसास अत्यधिक व्यापक और लगभग अशेष अर्थ और परिभाषाओं वाला है। क्या इनके अलावा कोई तीसरे प्रकार का भी ऐसा अच्छा जीवन हो सकता है, जिसे खुशी या अर्थपूर्ण होने के अलावा किसी और तरह से परिभाषित किया जा सके? ऐसी अच्छी जिंदगी की परिभाषा मनोवैज्ञानिक रूप से समृद्ध जीवन की है।
ऐसी जिंदगी, जो उत्सुकता, रोमांच, नएपन, विविधता, घुमक्कड़ी और खुलेपन से भरी हो। यह हमारे नजरिए में परिवर्तन और अच्छी किताबें पढ़ने से भी मिलती है। मनोविज्ञान कहता है कि इसे हम आभार प्रकट करने, लोगों से बेहतर रिश्ते बनाने, व्यायाम करने और तनाव घटाने की कला से भी प्राप्त कर सकते हैं।
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने खुशी को तीन प्रमुख तत्त्वों द्वारा नियंत्रित बताया है। सकारात्मक भावनाओं की मौजूदगी, नकारात्मक भावनाओं से दूरी और जीवन के प्रति संतुष्टि। इनका कहना है कि खुशी आनुवंशिक नहीं होती, बल्कि दैनिक जीवन में हमारे अनुभवों द्वारा प्राप्त की जा सकती है। एक होती है ऊर्जात्मक खुशी, जिसे हम अपने उत्साही, रोमांचकारी और जोशीले स्वभाव से प्राप्त कर सकते हैं। जाहिर है, यह हमारे स्वभाव और हमारी आदतों पर निर्भर करती है।
खुशी के विज्ञान और इसके मनोविज्ञान को समझने में जुटे शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में एक और तरह की खुशी का पता लगाया है। यह शांत, संतुलित जीवनशैली, सद्भावना और अच्छे मनोभावों से प्राप्त होने वाली मानसिक शारीरिक अवस्था है। इसके लिए दूसरों के प्रति अच्छी भावना, ईर्ष्या से दूरी, लोगों के स्वभाव या कार्यशैली को सहज रूप से स्वीकारना, अपनी सेहत का खयाल रखना आदि जरूरी है।
हावर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक लोगों के साथ अच्छे रिश्ते रखने वाले लोग आमतौर पर खुशमिजाज और स्वस्थ रहते हैं। इन वैज्ञानिकों ने पाया कि पैसे या मशहूर होने से ज्यादा प्रगाढ़ संबंध लोगों के ताउम्र खुश रखते हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया कि अच्छा संबंध रखने से शारीरिक और मानसिक क्षमता में उम्र के साथ होने वाले ह्रास की गति धीमी हो जाती है।
जिन लोगों का संबंध पचास वर्ष की उम्र में अच्छा रहा, उनके तन और मन का स्वास्थ्य अस्सी वर्ष की उम्र में भी बेहतरीन रहा। यूनिवर्सिटी आफ इलिनायस के वैज्ञानिकों ने तीस साल तक 1,20,000 लोगों पर किए गए अध्ययन के बाद पाया कि आमदनी, शिक्षा, राजनीति और संबंधों में से सबसे ज्यादा खुशी लोगों ने अच्छे संबंधों से महसूस की।
इससे अलग खुशी वह भी है जो संस्कृति, पारिवारिक परंपराओं, रीति-रिवाज की जानकारी और उनके निर्वाह से हासिल की जा सकती है। परंपराओं से जुड़ने, इनमें संलग्न होने और इनका निर्वाह करने पर आत्मिक संतुष्टि का जो भाव उत्पन्न होता है, वह खुशी देने वाला होता है। जाहिर है, खुशी का कोई एक प्रकार या रूप नहीं होता। इसके कई स्वरूप होते हैं और हम इन्हें अपनी सूझबूझ, अध्ययन और आदतों में बदलाव से हासिल कर सकते हैं।