दीपिका शर्मा
जुनून को एक तरह का नशा माना जाता है। हालांकि जिस काम को पूरा करने की धुन हो, उसे लोग उसी तरह पूरा करते हैं, जिस तरह किसी नशे में डूबा व्यक्ति अपनी धुन में मगन रहता है। देखने वाले अपने महबूब की आंखों में भी नशा देख लेते हैं और उसमें डूबने की बात करते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि जुनून जितना पुराना हो, उतना ही गहराता जाए। मेहनत का नशा ऐसा हो सकता है, जो अपने जीवन को बेहतर बनाने के मकसद से छाया हो।
इस पर हमारा आज और कल दोनों निर्भर करता है। मेहनत करने का मतलब हर हाल में केवल यही नहीं है कि हम जिस काम में मेहनत कर रहे हैं, उसमें सफलता मिले ही। कई बार मेहनत के बाद भी हमें सफलता नहीं मिल पाती। मगर उस मेहनत से इंसान में निखार जरूर आती है। सबक जरूर मिलता है। हम जाने-अनजाने ही सही, एक ऐसी होड़ में शामिल होते हैं जो हमारी खुद से होती है।
दरअसल, जब हम मेहनत कर रहे होते हैं तो जब नाकाम भी होते हैं, तो कुछ सीखते जरूर हैं। बल्ब का आविष्कार करने वाले एडिसन को एक हजार बार से भी ज्यादा नाकामी का सामना करना पड़ा, तब जाकर वह एक बल्ब का आविष्कार कर पाए। अगर दो चार-बार की हार के बाद ही वे यह सोच लेते की यह काम उनके बस का नहीं, तो आज भी हम बल्ब की रोशनी की जगह दीये के आदी होते। उन्होंने यह कहा था कि मैं एक हजार बार फेल नहीं हुआ हूं, बल्कि मैंने जाना है कि इन तरीकों से किसी भी हाल में बल्ब नहीं बन सकता।
सफलता का मतलब सिर्फ यही नहीं कि हमको किसी से बेहतर बनना है, बल्कि उसका अर्थ है कि हमारे अंदर मेहनत का जुनून फीका नहीं पड़ना चाहिए। जो हम आज हैं, उससे बेहतर बनने की जरूरत है। कहते हैं कि जिस चीज को हम पाना चाहते हैं, उसे पाने के लिए पूरी शिद्दत से जुट जाने की जरूरत है।
एक न एक दिन हम उसे हासिल करके रहेंगे और अगर हमें तब भी कामयाबी न मिले तो किसी प्रकार का तनाव लेने के बजाय सहज रहना चाहिए। हो सकता है कि आगे बेहतर कुछ और हो। कई बार हम किसी चीज के पीछे दौड़ रहे होते हैं, लेकिन असल में हमारा भविष्य किसी और चीज में बेहतर बनता है। इसलिए खुद से वैसी उम्मीदें पालने की जरूरत नहीं है, जो पूरी न हों।
किसी को धन का नशा होता है। वह सारी जिंदगी बस धन की ढेरी इकट्ठा करने का नशा करता है। कोई पद के नशे में होता है। कुछ भी किया जाए, पर खुद को दबाव में जाने देना खुद को धीरे-धीरे खत्म करने जैसा है, क्योंकि यही दबाव है, जो हमें तनावग्रस्त बनता है और वहीं बढ़ता तनाव जीवन का सुख-चैन छीन लेता है।
जब यह हमारे जीवन में आता है तो धीमे-धीमे चढ़ने वाले जहर की तरह हमारे जीवन में घुलता जाता है और हम उम्र के किसी भी पड़ाव पर हों, यह तभी से जीवन के हर सुख को हमसे वंचित करता जाता है। किसी भी चीज में सफलता मिले या न मिले, लेकिन एक चीज हमेशा मिलेगी- तजुर्बा, जो सिर्फ हमारे लिए ही नहीं, बल्कि हमसे संबंधित कई लोगों को सही राह देने का काम करेगा। हार एक नई शुरुआत का पथ है। अगर हौसले बुलंद हैं तो यही निराशा उज्ज्वल जीवन का भविष्य बनेगी।
हमारे भीतर हमेशा आगे बढ़ते रहने की चाह रहती है। ठहराव की हमें आदत नहीं है। जिस तरह सड़कों पर वाहन में फंसने पर हमारा गुस्सा सातवें आसमान पर होता है और जाम खत्म होने पर जो खुशी का अनुभव होता है, वह बहुत अलग है। इसी तरह अगर हम किसी परेशानी से घिरे होते है या किसी बात को लेकर चिंतित रहते हैं तो हमारा मनोबल टूटने लगता है।
मगर ज्यों-ज्यों हम सफलता के करीब जाते हैं, हमें खुशी का अहसास होता है। अगर हमें सफलता की राह नापनी है तो यह नहीं सोचना होगा कि लोग क्या सोचेंगे। कहीं ऐसा न हो कि दूसरों की राय सुनते हुए हम अपने मन की आवाज को ही भूल जाएं। हां, एक नाकाम या असफल व्यक्ति की सलाह अवश्य सुननी चाहिए।
हो सकता है कि जो गलती उसने की, वही गलती हम दोहराने से बच जाएं। वहीं जीते हुए व्यक्ति का तजुर्बा अवश्य सुनना चाहिए, जिससे हमारे भीतर जीतने का जुनून और उसकी ललक बढ़े। कभी भी खुद को नहीं कोसना चाहिए, क्योंकि जिस दिन हम किसी वजह से खुद अपनी नजरों में गिरने लगते हैं, उसी दिन से हम मरने लगते हैं।
जीवन में प्रतियोगिता रखना अच्छी बात है, मगर उसे जिद नहीं बनने दिया जाए। यह किसी के जीवन को नीरस बना देगा। हर लड़ाई जीतने का जुनून पालने के बजाय यह सोचना जरूरी है कि कभी-कभी छोटी लड़ाई हारने के बाद ही सफलता मिलती है। बस यह ध्यान रखा जाए कि सफल होने पर गुमान में नहीं जाया जाए और विफलता को हावी न होने दिया जाए। तब जिंदगी शानदार बनेगी।