एकता कानूनगो बक्षी
जब भी हम किसी नए काम की शुरुआत करते हैं तो अक्सर हमें मिश्रित प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ता है। कुछ लोग हमारा उत्साहवर्धन करते हैं तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनकी नकारात्मक प्रतिक्रियाओं से काम के प्रति हमारा रुझान कम होने लगता है, हम हतोत्साहित होने लगते हैं। इससे हाथ में लिए काम के प्रति हमारी रुचि और समर्पण कम होता चला जाता है। गुणवत्ता भी प्रभावित होने लगती है।
पूरी लगन और निष्ठा से हम काम नहीं कर पाते। काम करने की उस खुशी और आनंद लेने से हम वंचित रह जाते हैं, जो हमें अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन करने में मदद करता है। इस तरह जो काम हमें परिभाषित करता है, हमारा जीवन बेहतर बनाता है, वही हमें बोझ लगने लगता है। नतीजतन, हम नीरस, उबाऊ जीवन जीने लगते हैं। हतोत्साहित कर देने वाली बातों में ढेर सारी निरर्थक बातें भी होती हैं।
जैसे कि काम में समर्पित व्यक्ति को बताना कि इस काम का कोई भविष्य नहीं है या फिर इस काम को करने से क्या मिल जाएगा! अन्य कार्यों में संलग्न दूसरे लोगों से तुलना करते हुए प्रयासों को कमतर महसूस कराना भी काम में जुटे व्यक्ति को निराशा की ओर ले जाने लगता है। दरअसल, ऐसे सवालों और फिजूल की टिप्पणियों से निराश होने के बजाय हमें दूसरों से निरर्थक बहस से बचकर ईमानदारी से अपने प्रयास जारी रखना चाहिए।
असल में काम के प्रति हमारा नजरिया ही निर्धारित करता है कि उसके द्वारा हम न सिर्फ अपने लिए, बल्कि अन्यों के लिए परिणामकारी संभावनाएं खोज सकते हैं। इसी दृष्टिकोण के जरिए नए आविष्कार होते हैं, नए रास्ते निकल आते हैं। सामान्य-सी चीज अपने भीतर कितना कुछ समेटे हुए होती है, यह तो बाद में ही पता चल पाता है।
हरेक नए काम की शुरुआत एक पहेली की तरह होती है, जिसका उस समय कोई अर्थ शायद स्पष्ट नहीं होता, पर जब हमारे सारे प्रयास जुड़ जाते हैं, तब अंत में वह पहेली सुलझ कर चमत्कृत कर देती है। हमारे छोटे-छोटे प्रयास चमकीले सितारों की तरह अंधेरे को हरते जाते हैं। संभावनाओं का नया आकाश उजियारे से भर उठता है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि कोई भी रचनात्मक गतिविधि कभी भी निरर्थक नहीं हो सकती। यहां तक कि मौन बैठ कर किसी और को काम करते देखना, उसे सीखने का प्रयास करना या फिर किसी अनुभवी व्यक्ति से संवाद करना, घर के छोटे-बड़े काम में मदद कराना या ऐसा कोई रचनात्मक काम करना, जिससे किसी तरह का कोई आर्थिक या प्रत्यक्ष लाभ न भी दिखता हो, वह भी हमें कुछ दे रहा होता है, हमारे जीवन और हमारी स्थिति को बेहतर बना रहा होता है।
किसी भी तरह का काम जब सही उद्देश्य और नजरिए के साथ किया जाता है, तब वह एक बड़ा बदलाव हमारे भीतर लाता है। हम पहले से अधिक परिपक्व और अनुभवी होते जाते हैं, जिसका लाभ हमें कभी न कभी अपने जीवन में जरूर मिलता है। यहां तक कि काम के दौरान की गई त्रुटियां भी हमें निपुण बना लेने का मौका और ताकत देती हैं।
इस बात को ठीक से समझने के लिए कचरा संग्रहण और निपटान जैसी मामूली प्रक्रिया को ही ले सकते हैं। उस जगह की कल्पना की सकती है, जहां हमारे क्षेत्र का पूरा कचरा एकत्रित किया जाता है और उसका प्रबंधन किया जाता है। जो चीजें या कूड़ा-कर्कट इतने बड़े क्षेत्र के लोगों के लिए निरर्थक था, वह कैसे नई संभावनाओं का साधन बन जाता है।
यहां पर गौर से देखने पर पता चलता है कि उसमें ऐसी बहुत-सी चीजें होती हैं जो अभी भी कई लोगों के लिए उपयोगी हो सकती हैं। उनके पास वह दृष्टि भी होती है कि उस कूड़े में से वह अपने काम की चीज ढूंढ़ निकालते हैं। जर्जर हो गई चीजों को भी वापस पुनर्चक्रण कर किसी अलग नए रूप में काम की वस्तु बना लिया जाता है। खाने की वस्तुओं पर कीड़े-मकोड़े जीव-जंतु तो अपना पेट भरते ही हैं, लेकिन इसी गीले कचरे से जैविक खाद बना ली जाती है।
निरर्थक और बेकार तो कुछ भी नहीं होता। दृष्टि बदलते ही थोड़ा-सा नवोन्मेष नए अर्थ खोज लेता है। कूड़े का ढेर किसी के लिए अनुपयोगी और दुर्गंध से भरा कोना हो सकता है, पर किसी और के लिए जीवन में सुख की व्यवस्था करने में एक छोटा-सा जरिया भी बन जाता है। साथ ही समाज को स्वस्थ और स्वच्छ बनाने के उपक्रम में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभाया जा रहा होता है।
असल में हमारी छोटी-बड़ी परेशानियों का समाधान हमारे द्वारा किए गए प्रयासों में ही निहित है। सही उद्देश्य के साथ बनी हुई हमारी सक्रियता हमारे जीवन को खूबसूरत आकार दे रही होती है। कुछ नहीं की जगह थोड़ा बहुत भी अपनी क्षमताओं से किया गया प्रयास हमें धीरे-धीरे मजबूत बना देता है। हर नया दिन जीवन को नया अर्थ देता है, बस हमें तैयार रहना चाहिए सीखने-समझने और भरपूर जीने के लिए पूरे उत्साह के साथ।