रितुप्रिया शर्मा
सदियों पहले कबीर ने कहा था कि ‘ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय’। ये सुनने में भी अच्छा है और समझने में तो इसके विस्तार का कोई अंत ही नहीं है। यह अवधारणा हम सभी भली-भांति जानते हैं कि हर एक विवाद या समस्या के समाधान की कोशिशों में अगर प्रेम की भावना आ जाए तो विवाद अपने आप ही समाप्त हो जाता है। हम जिस समाज में रहते हैं, मनुष्य ने इस प्रेम के कई रूप बनाए हैं, उन्हें ग्रहण किया है। वह चाहे स्त्री-पुरुष का प्रेम हो, मां-बच्चे, बहन-भाई या फिर मित्रवत प्रेम आदि। ये सभी अपने-अपने प्रेम से बंधे हुए हैं। प्रेम की अनगिनत परिभाषाएं हैं और रूमानी लेखकों और कवियों ने तो इसको आसमान की ऊंचाई तक भी पहुंचाया है।
चाहे मनोवैज्ञानिक इसे किसी भी रूप में समझे, लेकिन यह एक अद्भुत मानवीय संवेदना है। कितना ही निर्लिप्त मनुष्य क्यों न हो, प्रेम कभी न कभी अपने किसी रूप में उसे अपने-आप में लपेट ही लेता है। विडंबना यह है कि जिस तेजी के साथ हमारा समाज आगे बढ़ने के दावे करता रहा है, उतनी ही तेजी से संवेदनात्मक डोर कमजोर होती गई है। आज हालत यह है कि चारों ओर भरी-भरी दुनिया में मनुष्य के बीच विशुद्ध प्रेम मिलना मुश्किल दिखने लगा है।
प्रेम अब निश्छल नहीं रहा, मतलब की बात बन गया है
यह जगजाहिर है कि भौतिकता का यह दौर हमें लीलता जा रहा है। इसने न केवल हमारी भावनाओं को काबू में कर लिया है, बल्कि हमारी आत्मा भी सूख चुकी लगती है। कभी भावनाओं से भीगा हुआ मन, जीवन का नमकीन स्वाद, जो कभी हमारे अंतर्मन को लपेटे हुए था, उसे इस चकाचौंध ने अपने में समाहित कर लिया है। प्रेम अब निश्छल नहीं रहा, मतलब की बात बन गया है। हम एक दूसरे को क्या दे सकते हैं, यह भी नफा-नुकसान के गणित पर आधारित होने लगा है। इसी सीमा में एक दूसरे के साथ जुड़ाव को प्रेम कहा जाता है। वरना एक दूसरे से अलग होने में देर नहीं लगती। हमने किसी के लिए क्या किया है, इस मापदंड के आधार पर ही प्रेम की वापसी संभव है। कुछ घटनाओं के आधार पर ऐसी भी व्याख्याएं सामने आने लगी हैं कि प्रेम अब पैसे और शारीरिक-आकर्षण से जुड़ गया है।
प्रेम की वैसी कुछ वास्तविक कहानियों ने अपना महत्त्व खो दिया है, जिन्हें लेकर हम कई बार अचानक काल्पनिक हो जाते हैं। आज हालत यह है कि निजी आग्रहों से संचालित कुछ लोगों की नजर में प्यार एक बेमानी चीज है। इसका कारण उनकी जड़ सोच या कुछ उदाहरणों के आधार पर बनी उनकी धारणा हो सकती है, लेकिन यही आखिरी सच नहीं भी हो सकती है। आज के डिजिटल युग में पुरुषों और महिलाओं को एक दूसरे से संवाद स्थापित करने और मिलने-जुलने की सुविधा विकसित करने वाले मंच यानी ‘डेटिंग वेबसाइट’ ने इसको अलग ही स्वरूप दे दिया है।
जीवन की गहराइयों में छिपी होती है उत्साह और खुशी, उत्सव की तरह जीनी चाहिए जिंदगी
ऐसे कृत्रिम और सुनियोजित तरीके से विकसित होने वाले संबंधों के दौर में वे लोग भाग्यशाली ही हैं, जिन्हें आज भी भरपूर और विशुद्ध प्रेम मिल रहा है। विडंबना यह भी है कि जो इस तरह के पवित्र भाव के साथ किसी को प्रेम अर्पित करते हैं, उसके जवाब में कुछ लोग उनकी भावनाओं की कद्र नहीं करते। ऐसी ही स्थितियों में ऐसे सवाल उठते हैं कि अगर ईमानदार भावनाओं को भी जरूरत भर सम्मान नहीं मिले तो प्रेम कहां अपना घर बनाए!
बहुत तेज भागती दुनिया में आज रिश्तों का भी स्वरूप बदल रहा है और अब काम पड़ने पर ही लोग एक दूसरे से मिलते हैं। पहले की तरह का लगाव अब खत्म होता जा रहा है कि कोई काम नहीं था… बस आपसे मिलने का मन किया और यों ही मिलने आ गए। आज तो प्रेम के सारे खेल में धन का भाव केंद्रित हो गया है। किसी को लगता है कि कोई व्यक्ति उसे भरपूर सुख और सुविधा दे सकता है या नहीं, तो कोई यह सोचता है कि धन-दौलत और शानो-शौकत के साथ उसका विवाह हो, न कि किसी अच्छे जीवनसाथी से।
हर रिश्ते में स्वाभाविक हैं मतभेद, सहनशीलता और धैर्य के साथ सुलझाने में ही होती है समझदारी
अगर किसी के मन में इस तरह के विचार भरे हों, तो उनके साथ कोई प्रेम कैसे कर सकता है? अगर वैश्विक संदर्भ में इस मसले पर विचार करें तो विश्व की सारी समस्याएं इसी प्रेमविहीन भौतिकतावादी युग की देन हैं। देशों की अपनी लड़ाइयां है और मानवता के प्रति जो श्रद्धा और प्रेम होना चाहिए, वह अदृश्य होता जा रहा है। हम सभी गांधी, नेल्सन मंडेला और मदर टेरेसा जैसी विभूतियों के मानवतापूर्ण कार्यों से परिचित हैं, लेकिन उनका व्यवहार में प्रयोग नहीं करना चाहते। इसका मूल कारण है कि सभी लोग और देश धन और ताकत की होड़ में हैं।
एआइ यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लेकर बाजारवादी अर्थव्यवस्था तक, सभी लोग हर क्षेत्र में अपने आप को आगे बढ़ाना चाहते हैं। अब इंसान लोगों के बजाय रोबोट से बात करना पसंद करने लगे हैं। इसका सिरा कहां तक जाएगा? क्या रोबोट से बात करना पसंद करने वाला इंसान भी एक दिन गुम हो जाएगा?
एक मूलभूत तथ्य हमें समझना होगा कि भावना का संबंध सिर्फ इंसानों से है। तरक्की करना बहुत ही अच्छी बात है, लेकिन हर चीज को विज्ञान, तकनीकी, पैसा, बाजार और शक्ति से जोड़ देना गलत ही नहीं है, बल्कि मानवता के अंत की शुरुआत है। अगर हमें अपनी मानवीय संवेदनाएं और अपने सभ्य होने की प्रक्रिया की अहमियत को बचाना है तो न केवल व्यक्तिगत स्तर पर, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रेम के तत्त्व को बढ़ावा देना होगा।
प्रेम ही हमें सामाजिक रूप से मजबूत बनाएगा और वैश्विक शांति के रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर करेगा। प्रेम का कोई मोल नहीं है। इसका अस्तित्व कायम रखकर ही हम जीवन की पहेली को सुलझा सकते हैं और अपने आप को सुकून के रास्ते पर ले जा सकते हैं।