कभी-कभी जिंदगी एक अजीब शय लगती है। जब वक्त अच्छा चल रहा हो, आनंद अपने आसपास महसूस होता हो, तब सब कुछ आसान और सहूलियत से भरा लगता है। वैसी चीज से दिल ऊबता हुआ लगता है, जो शायद कभी काफी मुश्किलों को पार कर हासिल की गई होगी। कितनी ही कोशिशों और मिन्नतों से हासिल की गई चीजों और उपलब्धियों तक से हमारा दिल आखिर भर जाता है, मानो कोई मायने ही न हो उसके। वे सभी चीजें और कई बार लोग भी इनमें शामिल हो जाते हैं, जिन्हें हासिल करने के लिए कभी दिन-रात एक कर दिया गया होगा, जी-तोड़ मेहनत की गई होगी, कितना भरोसा दिया गया होगा। मगर यह समझना मुश्किल है कि क्यों और कैसे वही फितरत हावी हो जाती है, जिसमें सिर्फ हासिल करने की भूख होती है। वैसे समय में मन छटपटाता है दूसरों को एक होड़ में शामिल देखकर इस ईर्ष्या से कि दूसरों की तरह सब कुछ पाने से वंचित न रह जाएं।

जिंदगी का फलसफा इस सिद्धांत पर चलता है कि ‘सब कुछ चाहिए’। जिस तरह किसी बच्चे को या तो सब कुछ चाहिए या फिर कुछ भी नहीं। भले ही वह किसी भी शर्त पर मिले। मगर जीवन बहुत जटिल है। कई बार सिर्फ एक झटका लगता है, एक ढलान आती है या सिर्फ एक टक्कर लगती है और फिर जिंदगी पूरी बदल-सी जाती है। बल्कि जिंदगी के पूरे मायने ही बदल जाते हैं। जिन चीजों की हमने कभी कद्र तक न की हो, वही जिंदगी की सबसे अहम चीज नजर आने लगती है।

खुद में ही उलझे लोग अमीर होकर भी खाली रह जाते हैं, समझ लीजिए अमीरी की क्या है असली परिभाषा?

जिन लोगों की हमने कभी उपेक्षा की थी, उन्हें दुत्कारा था, बाद में कभी उनकी फिक्र हमें लगी रहती है। हम जिसे लेकर फिक्रमंद होते हैं, उसे कभी खरोंच भी लग जाए, तो दिल रो पड़ता है। मगर वक्त बदलता है और उसी के प्रति हमारे भीतर कोई भावना नहीं बचती। अब तूफानों में भी टस से मस भर होने की गुजांइश रह नहीं जाती है। यहां तक कि कोई रियायत भी नहीं दी जाती है।

जो जीवन सहज चल रहा होता है, उसे जीने के लिए कभी खुद को अलग से मजबूत बनाना पड़ता है। जो कभी सपने में भी नहीं सोचा गया हो, या जो बेमानी बन चुके हों, उन चीजों से भी लगाव और मोहब्बत महसूस हो सकती है। कहीं पर बेपरवाह घूमते हुए सुकून-सा महसूस होता है। जबकि कभी भागते से फिर रहे होते थे, जैसे हर पल हर दम पूरी जिंदगी। छोटे बच्चों की हंसी में भी दिल भर-सा जाता है, जैसे कभी महसूस नहीं किया हो किसी को हंसते या मुस्कुराते हुए। एक दौर में फूलों के सभी रंग नए से लगते हैं, जैसे अभी ही पहली बार इनमें रंग भरा गया हो।

न सही उम्र मंजूर, न असली रूप; खूबसूरत दिखने की होड़ में बीमार हो रही पीढ़ी…; क्यों छिपाते हैं हम अपना असली चेहरा?

बारिश की बूंदें भी एक नया-सा अहसास दिलाती हैं। एक नई ताजगी महसूस होती है। कभी किसी की सराही हुई एक बात भी इतना सुकून दे जाती है जो कभी भर-भर कर की गई तारीफों से भी हासिल नहीं होता हो। कभी किसी अपने के साथ बैठ कर पी हुई एक कप चाय से इतनी तसल्ली मिल जाती है जो कभी शोरगुल या संगीत से भरी महफिलों में भी न मिली हो। जाने या अनजाने चेहरों को देखकर उन्हें पढ़ने का मन करता है, जैसे बिना सुने ही सब जान लेने की कला मिल गई हो। जबकि पूरी बहस होने पर भी किसी की कोई बात समझ नहीं आती थी।

इंसान की फितरत ही इस कदर उसे एक ऐसे अंधकार में डुबो देती है, जहां के पार उसे कुछ नजर नहीं आता- न अच्छा, न बुरा, न अपने, न पराए। सब बेमानी और बेमतलब-सा लगता है। कई बार यह मन करने लगता है कि अच्छा हो, किसी दिन हर कोई सोचे कि क्या खोया क्या पाया इस जग में। सच यह है कि अपनों की तलाश में हम कई बार अपनों को खो देते है। जिसे बेतहाशा चाहते हैं, उसे कभी अपना अहसास नहीं जता पाते, कभी अपने मन की बात उसे नहीं कह पाते।

हर बार कुछ और क्यों? जब ‘इतना ही काफी है’ में मिलती है सच्ची शांति; हर क्षण खुश रहना सीखना होगा

कभी न कभी इस बारे में सबको सोचना पड़ेगा, अपनी उस सोच पर लगाम लगानी होगी, जो बेहताशा भाग रही है एक अंतहीन दौड़ में, जिसमें समय रहते इंसान थोड़ा भी जाग जाए, तो बाद के पछतावे से थोड़ी मुक्ति मिल सकती है। भलाई इसी में है कि समय रहते होश में आ जाया जाए, वरना कई बार पछतावा करने का भी समय नहीं रहता है। लोग जिनको दुख देते हैं, बस इतना करें कि कभी खुद पर उसी को आजमा कर देखें, तो कुछ सीख मिल सकती है। जिन्हें गलत बोला जाता है, अगर कभी खुद अपने आप पर उन शब्दों को महसूस करके देख लिया जाए, तो उसके असर का अंदाजा लगाया जा सकता है।

जिंदगी में प्यार का मतलब सिर्फ किसी को ऐशो-आराम देना भर ही नहीं है, उसे तहेदिल से अपनाना असली प्रेम होता है। अफसोस यह है कि आमतौर पर इसका अहसास किसी के जाने के बाद तब होता है, जब उसकी याद दिन-रात कचोटने लगती है। समय रहते किसी के जीते-जागते, होशोहवास में उसे अहसास कराना कि तुम कितने अहम हो, यह जरूरी है। दुख सबको साझा नहीं किया जा सकता और न हर दुख सबको बताया जा सकता है, लेकिन सचमुच किए गए प्रेम को अभिव्यक्त किया जा सकता है। अगर हर कोई अपने अंदर झांके तो किरदार भले बदल जाते हैं, पर कहानी आमतौर पर एक-सी रहती है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि अपने किरदार को इतना मजबूत बनाया जाए कि पर्दा गिरने के बाद भी तालियों की गड़गड़ाहट कम न हो।