मानव मन की प्रवृत्ति ऐसी है कि वह सुख में उल्लास मनाता है और दुख में शोक। मगर एक आश्चर्यजनक सत्य यह भी है कि दोनों ही अवस्थाओं में ऊर्जा का क्षरण होता है। चाहे हम आनंद में डूबें या दुख में विलाप करें, हमारी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक ऊर्जा का ह्रास होता ही है। इसके साथ-साथ समय का क्षरण और शरीर का धीरे-धीरे क्षय होना भी अटल सत्य है। फिर भी, मानव अक्सर उन चीजों पर शोक मनाता है, जिन पर उसका कोई नियंत्रण नहीं। उदाहरण के लिए, हमने वर्षों के परिश्रम से एक भव्य महल खड़ा किया। उसमें अपनी आशाएं, स्वप्न और श्रम का निवेश किया।
लेकिन एक दिन एक अप्रत्याशित भूकम्प ने उस महल को क्षणभर में धूल में मिला दिया। क्या हम उस भूकम्प को रोक सकते थे? क्या हम प्रकृति की इस अनियंत्रित शक्ति को नियंत्रित कर सकते थे? नहीं, क्योंकि नियति पर हमारा वश नहीं। इतिहास इसका साक्षी है कि बड़े-बड़े सम्राट, विद्वान और योद्धा भी नियति के सामने नतमस्तक हुए हैं। बस एक चीज ही ऐसी है, जिसे हम नियंत्रित कर सकते हैं। वह है शोक मनाने की अवधि।
असफलता पर शोक मनाने से बेहतर है नई राह तलाशना
शोक मनाना स्वाभाविक है। जब हमारी मेहनत बेकार जाती है, जब हमारे स्वप्न चूर-चूर होते हैं, तब मन का दुखी होना मानव स्वभाव का हिस्सा है। लेकिन यह शोक कितने समय तक हमें जकड़े रखता है, यह हमारे हाथ में है। जो लोग असफलता पर कम समय तक शोक मनाते हैं, वे अपने जीवन में सफलता की नई संभावनाओं को जल्दी तलाश लेते हैं। असफलता को स्वीकार करना और उससे सबक लेकर आगे बढ़ना ही जीवन का सार है। शोक की लंबी अवधि न केवल हमारी ऊर्जा को नष्ट करती है, बल्कि हमारे समय और अवसरों को भी छीन लेती है।
जीवन में ऊर्जा का संरक्षण उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना किसी युद्ध में शक्ति का संचय। अगर हम अपनी ऊर्जा को उन चीजों पर व्यय करते हैं, जिन्हें हम बदल नहीं सकते, तो हम अपने भविष्य को कमजोर करते हैं। इसके विपरीत, अगर हम अपनी ऊर्जा को रचनात्मक कार्यों, नए लक्ष्यों और सकारात्मक दिशा में लगाते हैं, तो हम न केवल अपने जीवन को समृद्ध करते हैं, बल्कि नियति के सामने भी साहस के साथ खड़े हो सकते हैं। शोक की अवधि को कम करने का अर्थ है अपने मन को अनुशासित करना, अपनी भावनाओं को संतुलित करना और जीवन के प्रति एक लचीला दृष्टिकोण अपनाना।
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असफलता के बाद उठ खड़े होने की कला ही मनुष्य को महान बनाती है। जो लोग शोक-अवधि को संक्षिप्त रखते हैं, वे जीवन के नए द्वार खोलते हैं। उनके पास समय होता है, ऊर्जा होती है और सबसे महत्त्वपूर्ण, उनके पास वह साहस होता है जो नियति के चाबुक को चुनौती देता है।
जीवन एक अनवरत प्रवाह है, जिसमें कुछ चीजें हमारे नियंत्रण से परे हैं। हम पृथ्वी के घूमने, सूर्य के उदय-अस्त, या ऋतुओं के चक्र, शीत, ग्रीष्म, वर्षा को नियंत्रित नहीं कर सकते। लेकिन इनके बीच हम अपने जीवन को संतुलित और सार्थक बना सकते हैं। हम यह तय कर सकते हैं कि कब जागना है, कब सोना है, कब परिश्रम करना है, और अपनी ऊर्जा को कैसे संयोजित करना है।
जापान के मेहनती लोगों से लेनी चाहिए प्रेरणा
मानव मन की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि वह अक्सर अपनी ऊर्जा उन चीजों पर व्यय करता है, जिन पर उसका वश नहीं। जापान के मेहनती लोगों ने इस सत्य को अपने साहस और सृजनशीलता से सिद्ध किया है कि शोक मनाने में समय नष्ट करना व्यर्थ है। 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु बम हमलों ने इन शहरों को खंडहर में बदल दिया। हिरोशिमा में लगभग 1,40,000 और नागासाकी में 74,000 लोग मारे गए। बचे हुए लोग, जिन्हें हिबाकुशा (परमाणु बम से बचे लोग) कहा जाता है, ने शारीरिक घावों, मानसिक आघात और सामाजिक भेदभाव का सामना किया। फिर भी, उन्होंने शोक में डूबने के बजाय पुनर्निर्माण और सृजन को चुना।
हिबाकुशा ने अपनी ऊर्जा को न केवल अपने जीवन को पुन: सृजन में लगाया, बल्कि विश्व शांति के लिए भी समर्पित किया। उदाहरण के लिए, सुमितिरू तानिगुची, जो नागासाकी हमले के समय सोलह वर्ष के थे, गंभीर जलन के बावजूद जीवित रहे और बाद में परमाणु हथियारों के उन्मूलन के लिए अभियान चलाया। इसी तरह, हिरोशिमा की जीवित बची सेत्सुको थुरलो ने अपनी कहानी को विश्व मंच पर साझा कर शांति की वकालत की। इन लोगों ने न केवल अपने शहरों का पुनर्निर्माण किया, बल्कि जापान को एक आर्थिक और सांस्कृतिक शक्ति के रूप में फिर से सृजन और निर्माण में योगदान दिया। इन्होंने शोक में समय बर्बाद करने की अपेक्षा सृजन में समय लगाया।
जीवन का समग्र स्वरूप हमेशा रहस्यमय रहेगा। हम यह नहीं जान सकते कि भविष्य में क्या होगा, लेकिन प्रत्येक दिन का रेखा-चित्र हम स्वयं खींच सकते हैं। हर सुबह एक नया अवसर लाती है- एक ऐसी समय-सारिणी बनाने का मौका, जिसमें हम अपनी ऊर्जा और क्षमता का सर्वोत्तम उपयोग कर सकें। हिबाकुशा की तरह हमें भी अपनी ऊर्जा को सृजन में लगाना चाहिए। जब हम किसी दिन अपनी शक्ति का पूर्ण उपयोग करते हैं, तो वह दिन हमें गहरी संतुष्टि देता है, भले ही उसके परिणाम तत्काल दिखाई न दें। सफल व्यक्ति शोक के बजाय सृजन को प्राथमिकता देते हैं।