ईमानदारी प्रदर्शन का विषय नहीं है और न ही इसके एवज में कोई आकांक्षा रखनी चाहिए। यह नितांत ‘स्वांत सुखाय और परहिताय’ का विषय है। यह सच है कि आज जब भ्रष्टाचार का बोलबाला देखा जा रहा है, ऐसे में ईमानदारी के पथ पर चलने का संयम रखना किसी तपस्या से कम नहीं। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि ईमानदारी की राह पर चलते हुए जो आत्म संतुष्टि मिलती और जो आत्मिक संतोष होता है, वह भ्रष्टाचार से प्राप्त धन से कभी नहीं हो सकता। ईमानदारी मन-मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करती है। यह शीतलता एक ईमानदार व्यक्ति के स्वभाव और व्यवहार में भी दिखता है। ईमानदारी को जीवन में आत्मसात करने के लिए जरूरी है कि इसके लिए मन को पूरी तरह तैयार किया जाए। यह किसी साधना से कम नहीं।

संयम बरतने की बात करते हुए आमतौर पर इच्छाओं को दबाने या संयम रखने के लिए कहा जाता है। अक्सर किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कहते सुना जाता है कि उसके लिए बहुत मन मारने की जरूरत है। संयम बरतने को ही लोग मन मारना कहते हैं। लेकिन मन को मारना उचित नहीं। इसका मतलब है कि मन को वश में करने का सामर्थ्य नहीं है। इसलिए मन को वश में करने में असफल होने पर मन को मार दिया। यह किसी निरंकुश व्यक्ति को मुठभेड़ में मारने जैसा है। ‘मारना’ किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। समाधान है रास्ते पर लाना। मन को भी मारने की नहीं, नियंत्रित करने की जरूरत है। यह अचानक नहीं हो सकता। पर अभ्यास करने से हो जाता है।

एक ईमानदार व्यक्ति के लिए अपने मन पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है। आसपास के लोग या दफ्तर के सहकर्मी भ्रष्टाचार के पैसे से जब शानो-शौकत से रहेंगे, महंगे कपड़े पहनेंगे, उनके पास महंगी गाड़ियां होंगी, उनके बच्चे बड़े नाम वाले स्कूलों में पढ़ेंगे, तब इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में ही मन को नियंत्रित करने की कठिन परीक्षा होगी। अगर आपका मन डोल गया, इसका मतलब है कि ईमानदारी को आपने पूरी तरह से आत्मसात नहीं किया, अभी मन को और तपाने की जरूरत है। मतलब, ईमानदारी के पथ पर चलने के लिए मन को अभी और तैयार करने की आवश्यकता है। मन को नियंत्रित कर लेने के बाद ईमानदारी की राह आसान हो जाती है। फिर आदमी जीवन की चमक-दमक से दूर हो जाता है। सादगी और सच्चाई ही जीवन का ध्येय बन जाता है। जीवन का अपना उसूल होता है। जब जीवन में सच्चाई, सादगी और उसूल हो, तो इससे बेहतर जिंदगी और क्या हो सकती है! उसूलों के बिना जिंदगी दिशाहीन होती है। सादे जीवन में ही उच्च विचार पनपते हैं। ईमानदारी की राह पर चलते हुए मन को एकाग्र और संयमित करना भी जरूरी है। अपने आसपास के लोगों की जीवनशैली और उनकी तरक्की की तह में झांकने से मन भटक सकता है। इसलिए अपने साध्य को प्राप्त करने के लिए ही अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

ईमानदारी को किसी तय सांचे में नहीं ढाला जा सकता। इसका कोई निश्चित रूप-स्वरूप भी नहीं है। हर व्यक्ति के लिए ईमानदारी के अलग-अलग मायने हैं। एक विद्यार्थी के लिए अध्ययन ही उसका सबसे बड़ा धर्म है। अगर वह पूरे मनोयोग से अध्ययन करता है और नकल किए बिना परीक्षा में उत्तीर्ण होता है, तो उस विद्यार्थी को ईमानदार कहने में कोई संशय नहीं होना चाहिए। उसी तरह किसी दफ्तर के बाबू या अधिकारी, पुलिसकर्मी, चिकित्सक या किसी पद पर आसीन कोई भी व्यक्ति अपने दायित्वों का सही ढंग से निर्वहन कर रहा है, तो वह भी ईमानदार कहा जाएगा।

चाहे कोई किसान हो, सरहद पर तैनात जवान या खेल के मैदान में अपने प्रदर्शन से देश को पदक दिलानेवाला खिलाड़ी, जो अपने दायित्वों को समझते हुए पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा है, तो वह निश्चित तौर पर ईमानदार है। इसके ठीक विपरीत कोई कर्मचारी अपने कार्य में लापरवाही बरतता है, नियत समय पर कार्यालय नहीं आता या निर्धारित समय से पहले कार्यकाल से घर चला जाता है, तो वह कतई ईमानदार नहीं कहा जा सकता। तात्पर्य यह है कि ईमानदारी का संबंध सिर्फ पैसे के लेन-देन या रिश्वतखोरी से नहीं है, बल्कि व्यक्ति को कार्यालय से लेकर घर और अपने पारिवारिक संबंधों में भी ईमानदार रहने की जरूरत है। जीवन के हर रंग में ईमानदारी की दरकार होती है। इसके बिना जीवन बनावटी और काले लोहे पर दिखावे के लिए चढ़ी सुनहरी चमकदार परत की तरह हो जाता है, जिसका रंग कभी भी उतर सकता है और सच्चाई सामने आ सकती है।

ईमानदारी की राह पर चलने का एक अचूक नुस्खा है कि अपने मन को नियंत्रित कर उतना की व्यय करें, जितनी आय हो। ऐसा कर पाने पर ईमानदारी की राह आसान हो जाती है। लेकिन अमीर बनने और दिखावे की स्पर्धा में कुछ लोग ठीक इसके विपरीत चलते हैं। वे पहले अपने चंचल और अनियंत्रित मन को तृप्त करने के लिए कर्ज लेकर ऐशो-आराम के सारे संसाधन जुटा लेते हैं, फिर कर्ज को चुकाने के लिए हाथ-पैर मारते हैं। ऐसे में दबाव में आकर वह अनुचित रास्ता भी अपना लेता है।

अक्सर देखा जाता है कि इस स्थिति में लोग धन के लिए आपराधिक और अनैतिक धंधा शुरू कर देते हैं, जो भविष्य में उनकी बर्बादी का कारण बन जाता है। ईमानदारी जीवनशैली भी है। इस जीवनशैली को अपनाकर लोग आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकते हैं और अपने परिवार, समाज और देश के लिए मिसाल बन सकते हैं।