विद्वान और दार्शनिक कहते हैं कि सच्ची खुशी पाने के लिए व्यक्ति का खुद के साथ होना जरूरी है। किसी भी बाह्य आलंबन द्वारा प्राप्त प्रसन्नता अस्थायी होती है, क्योंकि जैसे ही वे कारण दूर होने लगते हैं, प्रसन्नता उदासी या अवसाद में बदलने लगती है। यह सत्य भी है, लेकिन अपने आप में प्रसन्न रहने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है ‘स्वतंत्रता’, जो आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक, तीनों रूपों में प्राप्त हो। खुद को खुश रखने के प्रयास में अगर किसी को इन तीनों रूपों में स्वतंत्रता न प्राप्त हो तो व्यक्ति के मस्तिष्क पर कहीं न कहीं दबाव बना रहता है, जो उसके खुश रहने में बाधक बनता है। फिर वास्तव में खुश होने की प्रक्रिया में बाधा आती है। यानी खुशी बाधित होती है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। प्रत्येक समाज के अपने पारंपरिक मापदंड और अपेक्षाएं होती हैं, जो व्यक्ति के स्वतंत्र विचारों और कार्यों पर दबाव डालती हैं।

खुशी और उम्मीदों का करना चाहिए सम्मान

आमतौर पर लोगों की सोच एक तरह से पहले से निश्चित परिपाटी के अनुकूल तय होती है और चलती है। अगर व्यक्ति के कार्य और विचार उसके विपरीत हो रहे हों, भले ही उनके जरिए समाज का कोई अहित नहीं हो रहा हो, तब भी उनका परंपरा के अनुरूप न होना ही लोगों को खटकने लगता है और वे उसका विरोध करने लगते हैं या फिर व्यक्ति पर परिपाटी और परंपरा के अनुरूप होने के लिए वक्त-बेवक्त समझाइश, दबाव डाला जाने लगता है। अलग-अलग प्रकार से ताने दिए जाने लगते हैं, जिससे व्यक्ति पर मानसिक दबाव बनता है। इस तरह के हालात में भी मनुष्य को अपनी आंतरिक प्रसन्नता बनाए रखने में कठिनाई होती है। अगर दबाव बनाने वाले लोग परिवार के सदस्य हों, तब स्थिति और भी कठिन हो जाती है, क्योंकि व्यक्ति को उनकी खुशी और उम्मीदों का भी सम्मान करना पड़ता है, ताकि उनके संबंध मधुर बने रहें। संबंधों में मधुरता कायम रखने के लिए न जाने कितने लोगों को क्या-क्या छोड़ना पड़ता है।

आंतरिक प्रसन्नता के लिए उपेक्षा नहीं करनी चाहिए

हालांकि अपनी आंतरिक प्रसन्नता के लिए व्यक्ति का अपने प्रियजनों की उपेक्षा कर देना उसका स्वार्थ कहलाएगा, स्वतंत्रता नहीं, लेकिन इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि ये कारण बाधा तो बनते ही हैं। साथ ही व्यक्ति अगर आर्थिक रूप से परनिर्भर है, तब भी वह इसे प्रसन्नता की राह में बाधक पाएगा। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर व्यक्ति अपने किसी भी निर्णय के लिए निवेश करने वाली वित्तीय आवश्यकता खुद से ही पूर्ण कर सकता है। जब व्यक्ति को आर्थिक समस्याओं की चिंता नहीं होती, तो वह मानसिक रूप से अधिक शांत और संतुष्ट रहता है, जिससे उसका संपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।

वास्तव में स्वतंत्रता व्यक्ति को अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार अपने समय और ऊर्जा का प्रबंधन करने की अनुमति देती है, जिससे उसका तनाव कम होता है, लेकिन उसे इन तीनों प्रकार में से किसी भी एक प्रकार की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं होती तो उसके मन में आत्म-संदेह की स्थिति उत्पन्न होने लगती है। जब व्यक्ति का स्वयं पर ही विश्वास नहीं रख पाता, तो वह आत्मसम्मान की कमी महसूस करने लगता है और यह नकारात्मक सोच और विचारधारा भी आत्म प्रसन्नता को अवरुद्ध करने लगती है। अपनी प्रसन्नता को बनाए रखने लिए स्वतंत्रता प्राप्त करना निरंतर प्रयासों द्वारा ही संभव है, जिसे व्यक्तिगत, आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक आधार पर क्रियान्वित किया जा सकता है।

स्वतंत्र रूप से सोचने और निर्णय लेने में सक्षम बनने के लिए आवश्यक है कि सीखने की प्रक्रिया को कभी बंद न होने दिया जाए। व्यक्ति सदा सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाए और नकारात्मक विचारों से दूर रहे और साथ ही साथ चिंतन के माध्यम से समय-समय पर आत्म-साक्षात्कार करते हुए आत्म-सुधार पर ध्यान दे। सिर्फ अपने नहीं, बल्कि दूसरों के भी अधिकार हैं। इस सच को समझते हुए दूसरों के अधिकारों का भी सम्मान करने की जरूरत है। समाजिक रूप से विभिन्न समुदायों और समूहों के साथ जुड़कर और स्वतंत्र रूप से अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भाग लेने से व्यक्ति की सामाजिक स्वतंत्रता को बढ़ावा मिलता है। स्वतंत्रता के अलग-अलग आयामों के बारे में अपनी समझ स्पष्ट होती है। अपनी स्वतंत्रता के समांतर दूसरों की स्वतंत्रता का सम्मान करने की परिपक्वता हासिल होती है।

परिवार समाज की इकाई है और आपसी मेलजोल के साथ जब व्यक्ति के खुले और ईमानदार संवाद होंगे, विचार-विमर्श होंगे, एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान होगा तो निश्चित ही आपसी समझ और सहयोग भी बढ़ेगा। व्यक्ति का अपने समय का सही प्रबंधन भी परिवार और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बना कर आंतरिक प्रसन्नता को बनाए रखने में सहायता करेगा। ध्यान और योग करना भी मानसिक शांति और स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है।

स्वतंत्रता के दायरे बढ़ाने के लिए यह भी आवश्यक है कि अपनी प्राथमिकताओं को समझा जाए और अपने लक्ष्यों को निर्धारित कर उनको पूर्ण करने के लिए नियमित प्रयास किए जाएं। दूसरे व्यक्तियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की आवश्यकताओं के विषय में समझाने से बेहतर है कि खुद ही इस दिशा में प्रयास करते रहा जाए, ताकि उनके द्वारा अपने आप ही स्वतंत्रता की स्थितियां निर्मित हो जाएं और हम आत्मिक रूप से प्रसन्न रहकर अपने आसपास के परिवेश को भी सकारात्मक ऊर्जा से भर सकें।