यशवंत गोरे
इस सवाल का मुकम्मल जवाब पता नहीं कब से खोजा जा रहा है कि वास्तव में खुश होने का क्या अर्थ है और वहां तक पहुंचने के लिए लोग क्या कर रहे हैं! क्या खुशी की कोई एक परिभाषा हो सकती है? सामान्य तौर पर जिंदगी में खुश होने के लिए कुछ बुनियादी भौतिक जरूरतें पूरी होनी चाहिए। अच्छी सेहत, आकांक्षाओं और असलियत के बीच तालमेल, परिवार, दोस्ती और समुदाय के साथ समरस और सुदृढ़ रिश्ते, एक ठोस और अच्छे उद्देश्य से लैस जीवन और सार्थक काम, करुणा और दूसरों की मदद करना।
व्यक्ति खुश है तो उसका परिवार और ज्यादा खुश होगा। इसी क्रम में परिवार खुश है तो आस-पड़ोस में भी खुशी मौजूद होगी और इस प्रकार राष्ट्र और ज्यादा खुश होगा। रात की अच्छी नींद, खुशगवार और हवादार मौसम में टहलना और उन लोगों के साथ होना, जिन्हें हम प्यार करते हैं।
यह सब खुशी के लिए जरूरी है। कुदरत को उसके दिए रूप में देखना और ज्यादा खुशी से भर देता है। जिंदगी के अहसास में रस है। उसका तत्त्व जो है, वह जीवन का हिस्सा है। भौतिक खुशियां कितनी भी जुटा ली जाएं, उससे अपनी चिंता और डर खत्म नहीं हो सकते हैं, पर भीतरी आनंद जैसी स्थिति बनी रह सकती है। खुशी के लिए सबसे जरूरी है मन की शांति, जिसे खरीदा नहीं जा सकता। हमें मन की शांति अपने अंदर पैदा करनी होती है।
खुशी के साथ खुद हमें ही तारतम्य स्थापित करना होता है। यह कोई शारीरिक या मनोवैज्ञानिक क्रिया नहीं है। हम नहीं जानते हैं तो खुशी हमारे लिए विचार भर है। और जानते हैं तो खुद हम ही खुशी हैं और इंसान की सबसे कुदरती अवस्था यही है और तब जाहिर होती है, जब हम इसे अंदर से महसूस करते हैं।
जब हम अपने आप से… अपने स्वभाव से दूर जाते हैं, तब हम कहीं न कहीं नाखुश होते हैं। यह नाखुशी कई परतों में छिपी हो सकती है, कई रूप में हो सकती है और कई बार इसकी पहचान कर पाना हमारे लिए ही मुश्किल हो सकता है। विडंबना है कि खुद ही खुशी का स्रोत होते हुए भी हम दूसरी जगह पर खुशी खोजते रहते हैं। ठीक उस मछली की तरह, जो समुद्र में पानी खोजने लगे। हालांकि मछली के मामले ऐसा होता नहीं है, मगर प्रतीकों के सहारे समझने लिए समुद्र में पानी खोजने को रखा जा सकता है।
हमें उन कारणों को भी जानना चाहिए जो हमारी खुशी को प्रभावित करते हैं। पहला है स्वास्थ्य, दूसरा पर्यावरण, तीसरा रुपए-पैसे और चौथा है महत्त्वाकांक्षा। मान लिया जाए कि हमारे पास पहली तीन चीजें हैं, लेकिन हम अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी हैं तो यह हमारे अस्तित्व में खलबली मचाएगी। इच्छा का मतलब है भविष्य में इच्छाएं पूरी करने के जरिए खुशी पाने का जतन करना।
शांत और आनंदित होना जीवन का लक्ष्य नहीं, बल्कि यह तो बुनियादी जरूरत है। ऐसे चिकित्सीय और वैज्ञानिक आंकड़े उपलब्ध हैं, जो बताते हैं कि जब भी हम भीतर से आनंदित होते हैं, तब हमारा शरीर और मस्तिष्क अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं। हमारी सोच, भावनाएं और अन्य तौर-तरीके खुशी पर असर डालते हैं।
इसके अलावा, उतनी ही अहम बाहरी वजहें भी होती हैं। मसलन, काम या पढ़ाई का दबाव, अन्याय, खराब रिश्ते या हमारे आसपास होने वाली दूसरी घटनाएं। अध्ययनों से पता चलता है कि अगर हमने चौबीस घंटे बिना किसी चिड़चिड़ाहट, उत्तेजना, क्रोध या चिंता के बिना बिताए हैं और हम केवल आनंद से भरे हों तो बुद्धि के उपयोग की हमारी क्षमता सौ फीसद तक बढ़ सकती है।
जिंदगी को अपनी तरह से जीना चाहिए। जिंदगी वक्त के साथ जो कुछ देती है उसका बेहतर से बेहतर इस्तेमाल लचीलेपन की खूबी को बढ़ाता है। अपनी जरूरतें यथासंभव कम करना चाहिए। खुशी एक मनोभाव है। ऐसी मनोदशा जिसे विकसित करने का प्रयास हम सबको करना चाहिए। कोरोना जैसी महामारी ने हमें सिखाया की खुशी कोई लक्ष्य नहीं हो सकती।
यह एक सतत् प्रक्रिया है, मन की एक अवस्था है, जिसके लिए हमें हर दिन प्रयास करने की आवश्यकता होती है। जीवन में जो कुछ भी हमारे पास है, उसकी सराहना करनी होती है। उसे महत्त्व देना, जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं। दयालु और उदार होने का अर्थ केवल दान करना नहीं होता, बल्कि दया और उदारता वह भावना है जो बिना किसी अपेक्षा के काम करते जाने और देने के भाव के साथ आती है।
खुशी आत्मबोध की दिशा में एक सतत् यात्रा है। यह अपना जीवन जीने का सच्चा अर्थ है और मूल्य पाने की तलाश है। इस यात्रा में कोई समझौता नहीं है, क्योंकि खुद अपनी शर्तों पर जीवन जीना खुशी का सच्चा सार है। यह उन चीजों को करने से मिलती है जिन्हें आप उचित समझते हैं या नैतिक उद्यम नहीं बल्कि अपनी जिंदगी को दूसरों के लिए सार्थक बनाने की अनवरत प्रक्रिया है।