मनुष्य का जीवन अनवरत चलने वाली एक यात्रा है। यह यात्रा सुख-दुख, हानि-लाभ, सफलता-असफलता, मिलन-विछोह से भरी हुई है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं, जब वह बहुत खुश होता है और ऐसे भी क्षण आते हैं, जब वह टूट जाता है, निराश हो जाता है। लेकिन मनुष्य की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि वह दुखद क्षणों को अपने साथ ढोता रहता है। बीते हुए दिनों की कटु यादें, असफलताएं, अपमान, टूटे हुए रिश्ते और अधूरे सपने उसके मन में एक भारी बोझ की तरह जमा हो जाते हैं। यह बोझ धीरे-धीरे इतना भारी हो जाता है कि उसकी वर्तमान खुशी, उसकी मानसिक शांति और उसका आत्मिक संतुलन नष्ट हो जाता है। मनुष्य यह भूल जाता है कि जीवन की प्रकृति कभी स्थिर नहीं होती, यह निरंतर बहती रहती है। मगर जब वह अतीत के बोझ को ढोता रहता है, तो जीवन का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है और वह अपने भीतर के सच्चे आनंद से दूर हो जाता है।

मनुष्य का मन बोझ तले और गहराई में धंसता चला जाता है

यह बोझ मनुष्य को हर पल कचोटता है। जैसे कोई व्यक्ति एक भारी पत्थर को अपने सिर पर रखे हुए चलता रहे, ठीक वैसे ही मनुष्य अपने मन में पुरानी स्मृतियों और असफलताओं का बोझ लिए चलता है। वह भले ही अपने दैनिक जीवन में व्यस्त हो, लेकिन उसके भीतर एक गहरा दुख, एक गहरा खालीपन बना रहता है। यह खालीपन उसे भीतर ही भीतर तोड़ता है और उसकी ऊर्जा, आत्मविश्वास और जीवंतता को खत्म कर देता है। मनुष्य के मन में बार-बार यह खयाल आता है कि काश उसने यह गलती न की होती, काश वह उस क्षण में अलग निर्णय लेता, काश वह व्यक्ति उसे छोड़कर न गया होता। इन सब विचारों का कोई अंत नहीं होता और मनुष्य का मन उस बोझ के तले और गहराई में धंसता चला जाता है।

इस बोझ का सबसे बड़ा प्रभाव यह होता है कि मनुष्य का वर्तमान पूरी तरह प्रभावित हो जाता है। वह चाहे कितना भी खुश रहने की कोशिश करे, उसके भीतर अतीत के दुख उसे बार-बार अपनी ओर खींच लेते हैं। वह किसी नए रिश्ते में पूरी तरह समर्पित नहीं हो पाता, अपने करियर में पूरी तरह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता और स्वयं के प्रति एक गहरी असंतुष्टि महसूस करने लगता है। यह स्थिति तब और विकट हो जाती है जब वह अपनी असफलताओं को अपनी पहचान मान लेता है। जैसे-जैसे यह बोझ बढ़ता है, मनुष्य के भीतर का आनंद, प्रेम, उत्साह और जीवंतता समाप्त होने लगती है। वह केवल एक शरीर की तरह चलता-फिरता दिखाई देता है, लेकिन भीतर से पूरी तरह खोखला महसूस करता है।

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अगर हम अपने विचारों में हमेशा अतीत के दुखों, गलतियों और असफलताओं को स्थान देते रहेंगे, तो हमारा पूरा व्यक्तित्व उसी रूप में ढल जाएगा। लेकिन अगर हम अपने विचारों को हल्का, सकारात्मक और मुक्त रखेंगे, तो जीवन भी उतना ही सरल और आनंदमय हो जाएगा। सवाल यह है कि मनुष्य इस बोझ से मुक्त कैसे हो? क्या यह संभव है कि हम अपने बीते हुए कल को भुलाकर वर्तमान में पूरी तरह जिएं? क्या यह संभव है कि हम अपने मन को इतना हल्का करें कि जीवन का प्रत्येक क्षण हमें नएपन का अनुभव कराए? हां, यह बिल्कुल संभव है, लेकिन इसके लिए मनुष्य को स्वयं के भीतर एक बड़ा परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।

सबसे पहला कदम यह है कि मनुष्य को यह स्वीकार करना होगा कि अतीत को बदला नहीं जा सकता। जो कुछ भी हुआ, अच्छा या बुरा, वह अब इतिहास बन चुका है। उसे बार-बार याद करने से न तो वे क्षण लौटकर आएंगे और न ही वे अनुभव बदल जाएंगे। जब मनुष्य यह स्वीकार कर लेता है कि अतीत अब उसका हिस्सा नहीं है, तो वह स्वत: हल्का महसूस करने लगता है। दूसरा महत्त्वपूर्ण कदम है क्षमा करना। बहुत बार हम अपने जीवन की किसी गलती को लेकर स्वयं को दोषी मानते रहते हैं, लेकिन हमें यह समझना होगा कि हम सभी मनुष्य हैं और गलतियां मनुष्य होने का एक हिस्सा हैं। जब हम अपनी गलतियों को स्वीकार कर लेते हैं और दूसरों के प्रति क्षमा भाव रखते हैं, तो हमारे मन का बोझ स्वत: हल्का हो जाता है।

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तीसरा और सबसे महत्त्वपूर्ण कदम है वर्तमान में जीना। यह समझना होगा कि जीवन केवल वर्तमान में है। न अतीत में और न भविष्य में। अगर हम पूरी तरह वर्तमान क्षण में डूब जाएं, तो जीवन का वास्तविक आनंद हमें महसूस होगा। जब मनुष्य वर्तमान क्षण को पूरी तरह जिएगा, तो उसका मन अतीत के बोझ से मुक्त हो जाएगा। यह वैसा ही है जैसे कोई व्यक्ति भारी बोझ को उतारकर हल्केपन का अनुभव करता है। जब हम अपने विचारों के बोझ को उतार फेंकते हैं, तो जीवन का हर क्षण हमारे लिए एक नया अनुभव बन जाता है।

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जीवन के इस गहरे सच को समझने के बाद यह भी समझने की जरूरत है कि समय-समय पर अपने मन को साफ किया जाए। जैसे हम अपने घर की सफाई करते हैं, पुराने सामान को निकालकर नया स्थान बनाते हैं, ठीक वैसे ही हमें अपने मन से पुरानी यादों, असफलताओं और नकारात्मकता को निकालना होगा। जीवन का बोझ केवल तब तक भारी रहता है, जब तक हम उसे अपने साथ ढोते रहते हैं। जिस दिन हम यह समझ जाते हैं कि अतीत केवल एक स्मृति है और उसे हमारे वर्तमान पर अधिकार नहीं होना चाहिए, उसी दिन से जीवन का बोझ हल्का हो जाता है।