पल्लवी सक्सेना

इसमें कोई दोराय नहीं कि सत्य का मार्ग कठिन होता है। इसके समांतर जीवन के कुछ सत्य ऐसे भी हैं, जिन्हें चाहकर भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता। जैसे मृत्यु एक अटल सत्य है, जिसका घटित होना निश्चित है। जिसका भी जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी होगी। जैसे दिन के साथ रात निश्चित है। हर रात के बाद सुबह निश्चित है, ठीक वैसे ही हर एक के जीवन में उम्र का बढ़ना और उसके साथ साथ रूप-रंग में सामान्य परिवर्तन आना भी हमारे भौतिक शरीर से जुड़ी एक सामान्य और प्राकृतिक प्रक्रिया है।

विचित्र है कि कुछ लोग इस साधारण-सी प्रक्रिया को स्वीकार नहीं करना चाहते। प्रकृति के सच के बरक्स सभी हमेशा युवा ही क्यों दिखना चाहते है? जबकि हर एक उम्र की अपनी एक अलग सुंदरता होती है। जिस तरह उम्र के हर एक पड़ाव का अपना एक अलग उद्देश्य होता है।

युवक-युवतियों में हमेशा युवा दिखने की लालसा बढ़ी है

सच यह है कि आज के समय में सौंदर्य या रूप-यौवन से अधिक लोगों को स्वस्थ रहने की ओर ध्यान देने की अधिक जरूरत है। आजकल मानव शरीर को मिलने वाला बहुत कम ही पदार्थ शुद्ध बचा है। जल, वायु, भोजन- सभी में मिलावट है। मगर अफसोस की बात यह है कि आजकल के युवक-युवतियों ने स्वास्थ्य से कहीं अधिक महत्त्व सामाजिक धारणा के मुताबिक अच्छा दिखने और सदैव युवा दिखने को बना लिया है।

अभिनेत्री शेफाली जरीवाला भी एंटी एजिंग ट्रीटमेंट करा रही थीं

फिर चाहे ऐसा दिखने के लिए उन्हें किसी भी हद तक जाकर कुछ भी क्यों न करना पड़े। मोटा होना है या जल्द से जल्द पतला होना है, उनके लिए कृत्रिम दवाइयां और इंजेक्शन का प्रयोग करना कोई नई बात नहीं रह गई है। कितने ही लोगों ने अपना खानपान पूरी तरह बदलकर और इन दवाओं का सहारा लेकर अपनी सेहत के साथ ऐसा खिलवाड़ किया कि वे खूबसूरत कम और बीमार अधिक दिखने लगे हैं।

कोई भी इस बात को स्वीकार नहीं करता कि उसके शरीर में आए परिवर्तनों का मुख्य कारण सही खान-पान और कसरत नहीं, बल्कि वे कृत्रिम दवाइयां हैं, जिनसे होने वाले दुष्प्रभाव उन्हें न जाने कितनी जानलेवा बीमारियां दान में दे जाती हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता। फिर एक दिन खबर आती है कि हृदयघात या कैंसर के कारण किसी का निधन हो गया।

कई ऐसे भी है जो खूबसूरत और अपनी उम्र से कम का दिखने के फेर में गलत खानपान के कारण हृदयघात का शिकार होकर जीवन से चले गए। हाल ही में एक अभिनेत्री शेफाली जरीवाला की हृदयघात से मात्र 42 वर्ष की आयु में ही निधन की खबर आई। खबरों के मुताबिक, वे छह साल से उम्र-रोधी उपचार ले रही थी।

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सवाल है कि क्यों लगना है हमें हमारी उम्र से कम। क्यों हम अपनी असली उम्र को स्वीकार नहीं कर पाते? क्यों हमारे भीतर इतना आत्मविश्वास नहीं है कि हम जैसे भी हैं, बहुत अच्छे है, बहुत खूबसूरत हैं? क्यों हमें हमेशा ऐसा लगता है कि अगर हम खूबसूरत दिखाई नहीं देंगे तो कोई हमसे प्यार नहीं करेगा? जबकि खूबसूरती से प्यार का कोई संबंध नहीं, क्योंकि प्यार तो बस इंसान के गुणों और उसके व्यवहार के कारण हो जाता है।

कुल मिलाकर कोई भी अपनी वास्तविक स्थिति को स्वीकारना नहीं चाहता। सभी अपने वास्तविक स्वरूप से असंतुष्ट और डरे हुए हैं। जो देखने में अच्छे नहीं हैं, उन्हें भी यह डर है कि उन्हें कोई स्वीकार नहीं करेगा और जो देखने में बहुत अच्छे हैं, उन्हें अपनी सुंदरता बनाए रखने का डर है। इसलिए वे कुछ भी करके अपनी सुंदरता को बनाए रखना चाहते हैं।

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समस्या यह है कि कोई इस प्रश्न का उत्तर ही नहीं खोजना चाहता कि क्या केवल पारंपरिक दृष्टि के मुताबिक अच्छा और सुंदर दिखना ही हमारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। क्या हमने सिर्फ इसलिए इस धरती पर मानव रूप में जन्म लिया है कि हम केवल समाज के दृष्टिकोण से अच्छे दिख सकें? जीवन में कितना कुछ है महसूस करने, सीखने, पाने, प्रेरणा लेने के लिए। कहने का अर्थ है कि किताबें, लोगों की आत्मकथा, जीवनियां उनके अनुभव जो परिचय कराते हैं, हमारा वास्तविक जीवन और उससे जुड़ी गतिविधियों से हमारा दूर-दूर तक कोई लेना देना ही नहीं है।

अफसोस कि जहां एक ओर पढ़-लिखकर नए-नए प्रयोगों और आविष्कारों को करते हुए कुछ कर गुजरने का जज्बा रखने वाली युवा पीढ़ी अपने तन-मन-धन से प्रयासरत है। वहीं इसी युवा पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा केवल रूप-रंग और सौंदर्य को कृत्रिम सौंदर्य प्रसाधनों, उत्पादों, दवाओं के सहारे कायम रखने, बढ़ाने और संभालने में उलझा हुआ है।