एकता कानूनगो बक्षी

हमारे सामने सीखने-समझने के लिए हमेशा कुछ न कुछ मौजूद होता है। जिन तथ्यों की जानकारी हमें आज है, भविष्य में उससे जुड़े ऐसे पक्षों के बारे में सुनेंगे, जिनका आज हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। अनभिज्ञता के साथ पूर्णता प्राप्त करने की यही आकांक्षा जीवन को इतना रोचक और गतिमान बना देती है।

जिज्ञासाओं की एक असीम राह सफल जीवन के लक्ष्य और ज्ञान के प्रति सदैव उत्सुक बनाए रखती है। ज्ञान जहां हमें वैचारिक रूप से मजबूत बनाता है, वहीं इससे उपजा दंभ हमें शून्यता की ओर अग्रसर कर देता है। ज्ञान को जब हम अपने जीवन में आत्मसात करते हैं, उसका उद्देश्य व्यापक रखते हैं, तब हम सम्मानीय हो जाते हैं। यही ज्ञान जब सिर चढ़कर अहंकार में बदलने लगे तो हमें थोड़ा सचेत हो जाना चाहिए।

विद्वान शब्द सुनते ही व्यक्ति की एक अलग ही छवि मन में अंकित होने लगती है। किसी ताल या तलैया में ज्ञान का शांत जल ठहरा हुआ हो, जिज्ञासा की कंकरी डालते ही उसमें विचारों की लहरें सौंदर्य पैदा करने लगती हैं। जैसे कोई गहन चिंतन-मनन के साथ धैर्यपूर्वक अपनी बात रख रहा हो।

विद्वान केवल विषय विशेष में सीमित न होकर जीवन के ऐसे पुस्तकालय की तरह होता है, जिसकी विविधतापूर्ण क्षमता से हम चकित हो जाते हैं, जिसके भीतर पूर्वाग्रह, मान, अभिमान से परे विनम्रता और लगातार सीखने, समझने और सुनने का धैर्य मौजूद होता है।

ज्ञानी व्यक्ति के साथ केवल एकतरफा संवाद नहीं होता, वहां सुनने और समझने का धैर्य मौजूद होने से सार्थक बातचीत का अवसर उपलब्ध होता है। किसी सुलझे हुए व्यक्ति से मिलकर हम खुद को भी अलग दृष्टिकोण से देखने लगते हैं। निराशा और कमियों से परे हमारे भीतर की क्षमता और संभावनाएं भी नजर आने लगती है।

जिसकी उपस्थिति और आचरण से परेशानियों के बादल छटने लगें, शिथिल मन मजबूत होने लगे, वह सम्मान के योग्य निश्चित ही है। वही सच्चा विद्वान, ज्ञानी या महापुरुष कहलाने योग्य है। ऐसे व्यक्ति विनम्रतापूर्वक अक्सर आग्रह करते हुए नजर आते हैं कि उनके साथ किसी तरह का विशेष व्यवहार न किया जाए। अपनी गलती को स्वीकार करना और अपने कहे और किए हुए कामों को बिना हिचक संशोधित कर लेना। यह भी विद्वान व्यक्ति के कई गुणों में से एक गुण होता है।

हमारे समय में ऐसी कई महान विभूतियां रही हैं, जो लगातार अपनी किताबों, विचारों के जरिए हमसे आग्रह करते हुए नजर आती हैं कि उनका लिखे, किए पर आंख बंद करके विश्वास न करें। उसे परखें, समझें और सही लगे तभी आत्मसात करें। ऐसी व्यापक और खुली सोच के जरिए स्वस्थ और नए विचारों को गति मिलती है। संकीर्ण विचारों को विचार-विमर्श के जरिए समाप्त किया जा सकता है।

इससे हमारा समाज परिष्कृत होता चला जाता है। सच्चा विद्वान ऐसी उपजाऊ जमीन तैयार करता है, जिसमें गुणवान लोगों के पल्लवित होने की असीमित संभावनाएं निहित होती हैं। हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जब हमारे पास ज्ञान प्राप्त करने और उसका प्रसार करने के कई जरिया मौजूद हैं। यह सच है कि हम लगातार सीख रहे हैं, विशेषज्ञ बन रहे हैं और बेबाक, धाराप्रवाह अपने आप को अभिव्यक्त कर रहें हैं।

अपने ज्ञान को दूसरों की मदद के लिए प्रस्तुत करना तर्कसंगत है, पर अगर हम यह केवल खुद को महत्त्वपूर्ण साबित करने के लिए कर रहे हैं और उस घमंड में खुद को डुबो रहे हैं तो बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। हर नया ज्ञान और विशेषज्ञता की एक समाप्ति तिथि अवश्य होती है, जिसके बाद कोई न कोई नया तथ्य और महत्त्वपूर्ण विषय उसे प्रतिस्थापित कर देता है। ज्ञान निरंतर अपने को अद्यतन करता रहता है। यही विकास क्रम है।

तात्कालिक तौर पर हमें यह समझना होगा कि उपलब्ध ज्ञान या किसी बात को याद कर लेने या उसे सीख लेने से बेहतर होगा कि हम यह जानें कि सीखे हुए का किस तरह और किस उद्देश्य से उपयोग कर रहे हैं। यह भी समझना जरूरी है कि जब हम अपने आप को सर्वज्ञाता मानने लगते हैं, हम अपने ही विकास का रास्ता बंद कर रहे होते हैं।

इसे एक तरह से आत्मघात ही कहा जाएगा। संभव है कि आत्मप्रशंसा में लिप्त ज्ञानियों की हरकतों ने ही मूर्ख शब्द को प्रचलित किया होगा। विद्वान की विवेकशीलता किसी की अनभिज्ञता को मूर्खता नहीं कह सकती। सब कुछ जान लेने का भ्रम पाल लेना जरूर एक तरह की भूल कही जा सकती है।

हर चीज जान और सीख लेना किसी भी व्यक्ति के सामर्थ्य में कभी नहीं रहा। ‘यह मुझे नहीं आता’ यह एक स्वाभाविक वाक्य है। इसमें किसी तरह की हीनभावना या शर्म गैरजरूरी है। ज्ञानी दिखने की होड़ में बिना विचारे की गई प्रतिक्रिया से बेहतर है किसी भी विषय को थोड़ा समय देकर ठीक तरह से उसका अध्ययन कर अपनी बात रखना, जो हमारी विवेकशीलता दर्शाता है। दूसरों द्वारा अनजाने में हुई छोटी-बड़ी त्रुटियों का मखौल बनाना भी एक छोटी समझ है। गलतियां होना, सीखने-समझने की प्रवृत्ति और असफलता का होना दरअसल, जीवंतता का प्रमाण है। यह हमारी सफलता व प्रगति भी सुनिश्चित करता है।

दुनिया में ऐसी कई चीजें हैं जो हमारी समझ और दृष्टि से अभी भी ओझल हैं। बीता कल जी चुके, इसका मतलब यह नहीं है कि आज को हम पूरी तरह जानते हैं। आज बिल्कुल नया है, जो हमें बदल देने की क्षमता रखता है। ज्ञानी बनकर वाहवाही बटोरने की जगह हमारी कोशिश होनी चाहिए कि सच्चे विद्वान व्यक्ति की तरह विनम्रता खुद में ला सकें। सर्वज्ञाता बनकर खुद को महत्त्वपूर्ण मान लेने की जगह उत्सुक मुसाफिर की तरह इस दुनिया मे रहें।