जीवन झंझावातों में उलझा हुआ एक क्रम है। बेबसी, बेकसी, विवशता, घुटन, संत्रास- ये सभी इसके पड़ाव हैं। कई बार कुछ लोग ऐसे मिल जाते हैं, जिनसे मिलकर हमें ऊर्जा मिलती है। हमारे जीवन का अंदाज ही बदल जाता है। हम जो भी काम करते हैं, उसमें सफलता मिलती है। पर यह समय अधिक दिनों तक नहीं रहता। कुछ समय बाद फिर वही निराशा का दौर शुरू हो जाता है। इस दौरान हमें ऐसे ही लोग मिलते हैं, जो जीवन से निराश हैं। ऐसे लोग अपने आसपास एक नकारात्मक भाव लिए होते हैं, जिसमें रहकर वे अपनी सांसों का हिसाब-किताब करते रहते हैं। वास्तव में जीवन ऐसा है ही नहीं। वह तो बिल्कुल एक छोटे-से बच्चे की निर्मल मुस्कान की तरह होता है, लेकिन हम ही उसमें एक भयानक अट्टहास के दर्शन करते हैं। मुश्किल यह है कि इस जीवन को एक बच्चे के निर्मल मुस्कान की तरह देखने, बरतने में हमें देर हो जाती है और जब उसकी हकीकत का अहसास होता है तब उसे रोक पाना हमारे लिए मुश्किल हो चुका होता है।
इंसान जब निराशा के गर्त में होता है, तो आमतौर पर एक ही वाक्य दोहराता है कि मैं काफी अकेला हूं। तीन-चार शब्दों का यह वाक्य सचमुच निराशा की ही उपज है। इस वाक्य को दोहराने वाले कभी आगे बढ़ ही नहीं सकते, क्योंकि यह सोचना आगे का रास्ता खोजने से बाधित करता है। इसके उलट, यही वाक्य उन्हें लगातार निराशा के अंधकार में ले जाता है। इस तरह का व्यक्ति भीड़ में उस लाचार व्यक्ति की तरह है, जो जिंदगी की राहों में धीमे और भारी कदमों से सबसे पीछे चल रहा होता है। सबसे पीछे चल रहा वह व्यक्ति न जाने कब गायब हो जाए, कहा नहीं जा सकता। यह जीवन का वह पल है, जिसमें व्यक्ति कुछ भी अच्छा करने लायक नहीं होता। हालांकि परिस्थितियां ऐसी हो सकती हैं कि उनकी वजह से ऐसे व्यक्ति के सामने कोई लाचारी खड़ी हुई हो सकती है।
‘काफी अकेला हूं’- यह वाक्य भले ही किसी व्यक्ति के जीवन में कोई उत्साह नहीं भर पाता हो, पर इसी में थोड़ा-सा बदलाव कर जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। ‘काफी अकेला हूं’ वाले इस वाक्य में शब्दों का क्रम बदल दिया जाए, तो यह हमें सकारात्मक परिणाम देगा। उदाहरण के लिए, अगर ‘काफी अकेला हूं’ को इस तरह लिखा जाए- ‘अकेला काफी हूं’ और इसके बाद देखा जाए तब समझ में आता है कि इस वाक्य ने हमें कहां से कहां पहुंचा दिया! निराशा के अंधकार से निकाल कर हमें ऊर्जा की उजास देते हुए ऐसे संसार में पहुंचा दिया, जहां चुनौतियां तो हैं, पर उन चुनौतियों का सामना करने के लिए हमारे पास ऊर्जा का अजस्र स्रोत भी है। सिर्फ इतना कायम रहे तो व्यक्ति बड़ी से मुश्किल चुनौतियों से आसानी से निपट सकता है।
जिस तरह से निराशा के भाव में डूबे इस वाक्य में थोड़ा-सा परिवर्तन कर हमने जीवन के अंधेरे को दूर कर दिया, ठीक वैसे ही हमें अपने जीवन में छोटे-छोटे परिवर्तन करें तो उसे जीने लायक बनाया जा सकता है। जीवन का क्रम सही हो, तो फिर उसे सुधरने में देर नहीं लगती। क्रम जब व्यतिक्रम में बदल जाता है, मुसीबतें वहीं से शुरू होती हैं। जो हर बात पर नकारात्मक भाव रखते हैं, जीवन में मुसीबतें उनका सदैव स्वागत के लिए तैयार रहती हैं। हमारा सकारात्मक रवैया कई बार जीवन को बहुत ही आसान बना देता है। सकारात्मक भाव में जीने से कई उपाय सूझते हैं, नए विचार सामने आते हैं। यह स्थिति नए विचारों के साथ नए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। हमें केवल जीने का क्रम ही तो बदलना है। जिन नकारात्मक बातों पर केंद्रित रहते हुए अपनी उपेक्षा करने को लेकर हम सहज हो गए होते हैं, उसी सोचने और उसके मुताबिक कुछ करने की शुरुआत करनी है।
इस क्रम में सबसे पहला काम यह कर सकते हैं कि सोने के क्रम को बदला जाए। देर रात सोने के बजाय जल्दी सोने और सुबह जल्दी जागने का संकल्प लिया जाए और उस पर अमल किया जाए तो सिर्फ इतने से ही बहुत कुछ बदलता दिख सकता है। केवल एक सप्ताह तक ऐसा ही किया जाए तो जीवन सुहाना लगने लगता है। सुबह जल्दी जागने के बाद हमारे पास पूरे सोलह घंटे होते हैं। वह भी स्फूर्तिदायक सोलह घंटे। इन घंटों में हम बहुत-कुछ ऐसा कर सकते हैं, जिसके लिए अब तक हम केवल सोचते ही थे. क्योंकि तब हमारे पास समय की कमी थी। अब हमारे पास दिन में पूरे सोलह घंटे होंगे। तब सोचने के लिए वक्त तो है ही, काम करने के लिए भी हमारे पास काफी वक्त होता है। इन परिस्थितियों में हमारे पास ‘काफी अकेला हूं’ के लिए स्थान नहीं होता। यहां होता है ‘अकेला काफी हूं…!’
दरअसल, तीन शब्दों के इस वाक्य में जिंदगी का पूरा फलसफा छिपा है। जितने भी कामयाब लोग हुए हैं, वे सभी यही सोचते हैं कि ‘अकेला काफी हूं…’, क्योंकि ऐसे लोग अपने गर्दिश के दिनों में सभी अपनों को अच्छी तरह से परख चुके होते हैं। इन्हें केवल अपने आप पर ही भरोसा होता है। बिना किसी के सहारे वे भले ही धीमे कदमों से आगे बढ़ते हैं, पर अपनी मंजिल पर पहुंचकर ही दम लेते हैं। बस अपनी नकारात्मक सोच को बदल दिया जाए, फिर यह साफ दिखेगा कि खुशियों की मंजिल हमारा इंतजार कर रही है।