मीना बुद्धिराजा

जमीन पर रहकर आकाश जैसी मुक्ति और ऊंचाई की आकांक्षा मनुष्य के अस्तित्व की नियति है। लेकिन इसकी प्राप्ति के लिए उसकी पहचान और व्यक्तित्व, जो यथार्थ के धरातल से ही बंधा हुआ है, उस सीमित अवधारणा से आगे जाना होगा। जीवन में अपनी उच्चतम संभावनाओं को पा लेना ही आकाश के प्रति प्रेम है।

मनुष्य का हृदय आकाश को पुकारता है, क्योंकि उड़ान उसका स्वभाव है और बंधनों को तोड़कर चेतना के उत्थान की ओर बढ़ना उसकी चुनौती है। आत्म-संभावनाओं के नए क्षितिज का आकर्षण ही वह केंद्रीय शक्ति है जो समस्त मानवीय अस्मिता को संचालित करती है। यह असंभव है कि प्रकृति का यह नियम जीवन की गहराइयों में भी अपने को किसी न किसी रूप में अभिव्यक्त न करता हो। अगर सामर्थ्य और क्षमताओं को सही तरह से पहचान कर उसका इस्तेमाल करें, तभी सीमित और तलहटी के बंधनों के दायरे से बाहर निकला जा सकता है।

अपने उत्कर्ष पर पहुंचे बिना हम जीवन के सर्वश्रेष्ठ और मूल्यवान अर्थ को नहीं प्राप्त कर सकते। जीवन को सीखना पड़ता है और उसकी चेतना का विस्तार और विकास भी इसके साथ होता है।

जीवन में ऊंचाई की संभावनाओं तक पहुंचने के लिए सिर्फ परिस्थितियों के अनुसार बदलाव ही पर्याप्त नहीं, बल्कि सीमित सोच और बंधनों से मुक्त होकर उनका उल्लंघन करना भी जरूरी है। इसलिए अपनी दिशा और उद्देश्य का चुनाव भी किसी ऊंचे, नए और सार्थक विकल्प के लिए होना चाहिए और अपने आंतरिक निर्णय को स्वीकार करने की स्वतंत्रता और कठिनता से संघर्ष करने का साहस भी इसके लिए प्रेरित कर सकते हैं।

एक पूर्ण जीवन बहुत-सी सतही, निर्रथक चीजों के स्वार्थ को छोड़ कर उच्चतम आकांक्षाओं के उद्देश्य और मूल्यवान उपलब्धि के लिए प्रयास करता है, जो उसे जीवन की वास्तविकता के नए रास्ते के विकल्पों पर बहुत-सी पूर्व मान्यताओं और बंधनों के विरुद्ध अपने विवेक और चेतना के अनुसार एक नई मंजिल तक पहुंचने के लिए प्रेरित करता है। इस संबंध में चे ग्वेरा का कथन है- ‘अगर आपकी राह में कोई रोड़ा नहीं है, कोई संघर्ष नहीं है तो वह राह शायद कहीं नहीं जाएगी।’

अस्तित्व की मांग और चुनौती को स्वीकार करना और मानवीय मुक्ति के लिए ऊंची और सुंदर वजहों को अपनाना चाहिए, चाहे उसके लिए छोटी चीजों और संकीर्ण सोच का त्याग करना पड़े। इसलिए सदा ऊंचे विकल्प का सम्मान करना चाहिए और व्यर्थ की बाहरी सफलताओं के दबाव के पीछे भागने की अपेक्षा यह जानना-समझना अधिक प्रासंगिक है कि अपने जीवन की केंद्रीय जरूरत क्या है।

इस मौलिक दृष्टि के लिए संघर्ष करना ही अपनी सार्थकता, नई अर्थवत्ता, संभावनाओं के लिए विशिष्ट उपलब्धि हो सकता है। कुछ कार्य किसी भी परिस्थिति में नहीं करना और कुछ कार्य हर मुश्किल चुनौती और परिस्थितियों के बीच भी करना अस्तित्व का उत्कर्ष और उसकी मुक्ति की प्राप्ति है। इस मुक्ति की चुनौती को स्वीकार करना और उसकी घोषणा ही सभी निचले स्तर के व्यर्थ दबावों और समाज की मानसिक गुलामी से स्वतंत्र होने की यात्रा है। यह आकाश की उच्चता की गरिमा को स्पर्श करके उसके स्तर के समान मुक्त और विस्तृत होना है और जिसे इतनी कालातीत पराकाष्ठा तक जाना हो, उसे समय और परिवेश की सीमित वस्तुगत सोच के प्रति उपेक्षा का भाव रखना ही होगा।

हमारे जीवन का केंद्र अधिकतर गलत होता है, जिसमें हम सिर्फ सतही सफलताओं की प्रतिस्पर्धा और भीड़ के अनुसरण का पालन किसी न किसी रूप में सभी आयामों में करते हैं। इस जीवन शैली में बहुत-सी मूर्खतापूर्ण चीजों के न मिलने के मलाल को दूर करके अपनी चेतना और पहचान को सार्थक उद्देश्य के लिए केंद्रित करके हम आत्म का विस्तार और उसका उत्थान कर सकते हैं और नई संभावनाओं को खोज सकते हैं।

जीवन को किसी एक जगह पर स्थिर नहीं कर देना चाहिए। किसी परिवर्तन और आंतरिक बदलाव के लिए खुद को यह आजादी हमेशा उपलब्ध रहनी चाहिए। अपने को बेहतर होने की, ऊंचे अर्थ को पाने की अनुमति हमेशा देनी चाहिए और जो बंधन, आवरण बेड़ियों की तरह स्थायी हो जाएं, उन्हें पहन नहीं लेना चाहिए, क्योंकि मानवीय अस्तित्व जड़ नहीं चेतन है। प्रतिपल यह चुनाव हमें ही करना है कि अंधकार और अज्ञान में रहने का अभ्यस्त होते हुए भी प्रकाश को चुनने के लिए स्वयं ही जागृत होना पड़ेगा।

सबका रास्ता एक जैसा नहीं हो सकता। इसलिए कुछ बड़ा और ऊंचा पाने के लिए छोटी चीजों को छोड़ देना ही जीवन के प्रति एक उदार और व्यापक दृष्टिकोण का विकास करता है। मुश्किल काम को अंजाम देने की कोशिश करना और सच का सामना करने के लिए जोखिम को आजमाने, घबराने, अवसर को चूकने से आकाश की उच्चता को छूने की कल्पना असंभव है। अनिश्चितता के साथ जीने का सामर्थ्य और साहस, अपने अस्तित्व को अतीत, पुराने और संकीर्ण ढर्रों, निर्रथक दबावों और समय की सीमा में आबद्ध न करते हुए जीवन की नई मुक्त अवधारणा का बोध विकसित करना ही अपने उच्चतम स्तर को पाने का विकल्प हो सकता है।