अशोक बंसल

26 साल के ताहिर को आगरा की गली-गली में इतिहास और पुरातन संस्कृति तलाशने में असीम आंनद आ रहा है। ताहिर आपने कुछ मित्रों के साथ इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को आमंत्रित करते हैं और निकल पड़ते हैं चहुं ओर बिखरी पुरानी इमारतों या मशहूर लोगों के रिहाइशी स्थलों को देखने-दिखाने। जो काम सरकार नहीं कर पा रही वह काम ताहिर कर रहे हैं। हेरिटेज वाक के नाम से किए जाने वाले इस काम को ताहिर सप्ताह में एक बार करते हैं। मजेदार बात है इस वाक में अब विदेशी पर्यटक भी शामिल होने लगे हैं।

आगरा के कला महल में मिर्जा गालिब का मकान है। यहां आजकल एक स्कूल चल रहा है, ताहिर इतिहास प्रेमियों को लेकर गालिब के मकान में गए तो वहां मौजूद लोगों को गालिब के शेर-शायरी याद आने लगी। लोग डूब गए गालिब के जमाने में। चारपाई पर बैठ जिसको जो याद था, सुनाया। आसपास के घरों की महिलाओं ने घर में जो पकाया था, ले आईं। सबने मिल बांट कर खाया। हेरिटेज वाक के बाद सभी नौजवान एक जगह बैठ कर अपनी-अपनी जानकारी एक-दूसरे के साथ साझा करने लगे। पुरानी यादों के सहारे अच्छा वक्त गुजरा और दिमागी कसरत भी हुई। ताहिर पहले से जो तैयारी करके आते हैं, उसमें खूब जानकारी होती है उनके दिमाग में। वे बिना पैसे के गाइड हैं। वे हेरिटेज वाक पर छोटी-छोटी डॉक्यूमेंटरी भी बना रहे हैं। आस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में यह काम सरकार करती है।

ताहिर का यह जुनून एक साल पुराना है। उन्हें अखबारबाजी, प्रसिद्धि-शोहरत से कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने दिल्ली के ह्यजामा मिलिया इस्लामियाह्ण से जनसंचार की डिग्री हासिल की है। वे चाहते तो दिल्ली के किसी समाचार चैनल में खप जाते। उनका कहना है कि आगरा की पुरानी गलियों में अतीत के सुनहरे पन्ने बिखरे पड़े हैं। हमें इस वाक के दौरान अनेक बातें बतौर कहानियों के मालूम पड़ती हैं। इन्हें अभी लिपिबद्ध नहीं किया गया है। यदि इन कहानियों को वैकल्पिक इतिहास (अल्टरनेटिव हिस्ट्री ) के रूप में लिखा जाए तो इतिहास समृद्ध होगा और शोधकर्ताओं को मदद मिलेगी। ताहिर ने पहले साइकिल पर दुनिया देखने का सपना देखा था, लेकिन उन्हें अब इस काम में मज़ा आ रहा है। प्रचार प्रसार से दूर, इतिहास के समंदर में तैरने का आनंद ही कुछ और है। वे चाहते हैं कि यह काम अन्य पुराने शहरों के नौजवान अपने शहरों में करें।