
प्रकृति के चाहे कितने ही रंग हों, कितने ही उत्सव हों, लेकिन फागुन जैसा कोई नहीं भिगोता है। इस फुहार…
प्रकृति में अल्हड़ फागुन जीवंत है, लेकिन बदली परंपराओं और हमारी सोच में वह बूढ़ा हो चला है। फागुन में…
कालिदास ने ऋतुसंहार में कहा है- वसंते द्विगुने काम:, अर्थात वसंत के समय काम का प्रभाव दोगुना बढ़ जाता है।…
मैं नवजीवन की हलचल हूं, मैं कलियों जैसा चंचल हूं, मैं रंग-बिरंगे बादल सा, मैं हूं धरती के आंचल सा,…