
जीवन में विनम्रता व्यक्ति के संपूर्ण पक्षों को प्रभावित करती हैं तथा उसे सही अर्थ में पूर्ण मानव बनाती है।
जीवन को जानने-समझने-समझाने के प्रयास अनंतकाल से चले आ रहे हैं।
हमारे जीवन में पूर्वनिर्धारित योजना के अनुसार, पहले से सोचे गए तरीकों के हिसाब से शायद ही कुछ होता हो।
जीवन में जब अपनी पहचान नहीं रह जाती, तो उसकी कमी पूरा करने के लिए उपभोगवादी व्यवस्था अनेक नकली विकल्प…
कई ऐसी संख्या है, जिसे समाज में अशुभ माना जाता है। इसी में एक संख्या तेरह भी है।
अब ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की परिभाषा और वैश्विक गांव की भाषा का मूल आधार बदलने जा रहा है।
राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में किसी भी अभिमत पर हर एक की अपनी एक विशिष्ट अवधारणा होती है।
पिछले दिनों एक ऐसी दिलचस्प खबर आई थी, जिस पर सहसा विश्वास नहीं हुआ था।
अपनी स्मृतियों के कोष को टटोलते-संभालते रहना कई बार जरूरी होता है।
यह शायद सही ही कहा गया है कि बचपन को तोहफा नहीं, प्रोत्साहन देना चाहिए।
महात्मा बुद्ध का जीवन दर्शन और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं।