दिल्ली में सिख विरोधी दंगे के 30 साल बाद संबंधित मामलों की नए सिरे से जांच कराए जाने की संभावना है। सरकार की ओर से इस संबंध में नियुक्त एक समिति ने इसके लिए एक विशेष जांच दल (एसआइटी) गठित करने की सिफारिश की है। उधर, विपक्ष ने इसे चुनावी ‘हथकंडा’ बताते हुए इसकी आलोचना की है।
1984 के दंगे की फिर से जांच की संभावना पर गौर करने के लिए बीते साल 23 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) न्यायमूर्ति जीपी माथुर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था।
सूत्रों ने बताया कि समिति ने बीते सप्ताह गृहमंत्री राजनाथ सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें 31 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगे की नए सिरे से जांच कराने के लिए एसआइटी बनाने की सिफारिश की गई है।
तत्काल यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि न्यायमूर्ति माथुर समिति ने कितने सिख विरोधी दंगा मामलों को दोबारा खोलने की सिफारिश की है। 241 संबंधित मामलों में से केवल चार को फिर से खोला गया और सीबीआइ ने फिर से जांच की। दो मामलों में सीबीआइ ने आरोपपत्र दाखिल किया और एक मामले में एक पूर्व विधायक सहित पांच लोगों को दोषी ठहराया गया।
सूत्रों ने बताया कि दिल्ली में आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण इस संबंध में आदेश सात फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद आने की संभावना है। दिल्ली में आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण कोई घोषणा नहीं की जा सकती। इन दंगों में कुल 3,325 लोग मारे गए थे जिसमें से अकेले दिल्ली में 2733 लोगों की जानें गई थीं जबकि बाकी लोग उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में मारे गए थे।
उधर, विपक्षी दलों ने इस कदम की यह कहते हुए आलोचना की कि यह दिल्ली में मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास है क्योंकि चुनाव के लिए एक सप्ताह से कम समय बचा है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, ‘यह अनुचित है। न्याय को चुनावी लाभ नहीं बनाया जा सकता। यह चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मतदाताओं को लुभाने का हथकंडा है।’
उन्होंने इसके समय पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या प्रधानमंत्री और उनकी सरकार पिछले नौ महीने से सोई हुई थी और अब अचानक उसकी नींद खुली है जब दिल्ली में चुनाव के लिए मात्र एक सप्ताह का समय बचा है।’ उन्होंने कहा कि जब सिख विरोधी दंगों की नए सिरे से जांच का आदेश दिया जा सकता है तो, ऐसे ही गुजरात, मुजफ्फरनगर और दिल्ली के मंगोलपुरी दंगों के मामले में भी कदम उठाए जा सकते हैं।
आप नेता एचएस फुलका ने कहा कि इस बारे में जानकारी ‘लीक’ होना ‘चुनावी हथकंडा लगता है’ क्योंकि ऐसा चुनाव से पहले हुआ है। फुलका ने कहा, ‘किसी को भी नहीं पता कि वे कितने मामलों को फिर से खोलेंगे। कुछ भी सामने नहीं आया है। यह मजाक की तरह लगता है।’ सरकार ने पहले पीड़ितों को करीब पांच लाख के मुआवजे की घोषणा की थी लेकिन अभी तक मात्र 17 लोगों को यह मिला है। अब चुनाव से ठीक पहले उन्होंने यह लीक किया है।’
अकाली दल नेता और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रमुख मंजीत सिंह जीके ने इसका स्वागत किया और कहा कि एसआइटी का गठन जल्द से जल्द होना चाहिए। गृहमंत्री के पास एक प्रतिनिधिमंडल लेकर जाने वाले मंजीत सिंह ने कहा कि गृहमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया था कि न्याय किया जाएगा।
उन्होंने कहा, ‘अकाली दल लंबे समय से 1984 के दंगों में न्याय की मांग करता रहा है और अब हम प्रधानमंत्री के आभारी हैं जिन्होंने यह समिति गठित की है। मेरा मानना है कि अब सरकार को समय बर्बाद नहीं करना चाहिए और एसआइटी का गठन करना चाहिए ताकि इंसाफ मिल सके क्योंकि इसमें 30 साल की देरी हो चुकी है।’
भाजपा ने भी इससे पहले सभी सिख विरोधी दंगों की फिर से जांच कराने की मांग की थी।
नानावती आयोग ने पुलिस द्वारा बंद किए गए 241 मामलों में से केवल चार को ही फिर से खोलने की सिफारिश की थी लेकिन भाजपा चाहती थी कि अन्य सभी 237 मामलों की फिर से जांच हो।