केंद्र सरकार ने महीनों तक नए लेबर कोड पर काम करने के बाद आखिरकार जारी कर दिया है। इस नए कोड का मकसद नियोक्ता और कर्मचारी के बीच के संबंध को फिर से पुर्नानिर्धरित कर उसमें सुधार करना है। सरकार ने लेबर कोड में कई अहम बदलाव किए हैं जो कर्मचारी की सैलरी, पीएफ कॉन्ट्रिब्यूशन और काम के घंटों को लेकर हैं। नए लेबर कोड में कार्यस्थल का माहौल, लेबर वेलफेयर, स्वास्थ्य और सुरक्षा पर खास ध्यान दिया गया है।
काम के घंटें और वीकली ऑफ: नए लेबर कानून के तहत वीकली ऑफ की संख्या में बड़ा बदलाव हो सकता है। नए लेबर कोड के लागू होने के बाद वीकली ऑफ की संख्या दो से घटाकर तीन करने की सरकार कंपनियों को इजाजत दे सकती है। हालांकि सप्ताह के दौरान कर्मचारियों के काम के कुल घंटों में कोई भी बदलाव किए नहीं जाएंगे, जिसके कारण एक दिन में काम के घंटों की संख्या 8 से बढ़कर 12 घंटें हो सकती है यह राज्य सरकार की ओर से लागू किए गए नियमों पर भी निर्भर करेगा।
पीएफ कंट्रीब्यूशन और सैलरी: टेक होम सैलरी और कर्मचारियों और नियोक्ता के पीएफ कंट्रीब्यूशन के अनुपात में भी बड़ा बदलाव हो सकता है । नए कोड के प्रावधान के अनुसार कर्मचारी का बेसिक सैलरी ग्रॉस सैलरी का 50 प्रतिशत होना चाहिए। इसका मतलब यह होगा कि कर्मचारी और नियोक्ता के पीएफ योगदान में वृद्धि होगी, कुछ कर्मचारियों के लिए टेक होम सैलरी कम हो जाएगा, खासकर निजी फर्मों में काम करने वालों के लिए।नए ड्राफ्ट नियमों के प्रावधानों के तहत रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली रकम के साथ-साथ ग्रेच्युटी की रकम में भी इजाफा होगा।
वार्षिक छुट्टियां: नए श्रम कानूनों के तहत केंद्र सरकार भी एक कंपनी में अपने कार्यकाल के दौरान एक कर्मचारी को मिलने वाली छुट्टी को युक्तिसंगत बनाना चाहती है। अगले वर्ष के लिए छुट्टी को आगे ले जाने और छुट्टियों के नकदीकरण की नीति को भी युक्तिसंगत बनाया जा रहा है। सरकार वर्क फ्रॉम होम स्ट्रक्चर को भी मान्यता दे रही है, जो कि कोविड-19 के दौरान सर्विस इंडस्ट्री में काफी प्रचलित हो गया था।
नए लेबर कोड में नए कर्मचारी को अवकाश के लिए कार्यदिवस की सीमा को बढ़ाकर 180 से 240 किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि आपको नई जॉब में ज्वाइन करने के 240 दिनों बाद ही छुट्टी मिलेगी।