केंद्रीय मंत्री परिषद में हुए फेरबदल में मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया को उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई। सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया ने भी सियासी करियर जनसंघ से शुरू किया था और बाद में वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजयराजे सिंधिया पहले कांग्रेस का हिस्सा थी लेकिन बाद में उन्होंने जनसंघ पार्टी ज्वाइन कर ली थी। वह जनसंघ पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया की दोनों बुआ यशोधरा राजे सिंधिया और वसुंधरा सिंधिया राजनीति से दूर नही है।
मध्य प्रदेश की ही नहीं बल्कि देश की सियासत में सिंधिया राजपरिवार का हमेशा से ही रसूख रहा है। आजादी के समय और आजादी के बाद सिंधिया परिवार का दबदबा रहा है। ज्योतिरादित्य की दादी और ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया ने अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी। 1957 में वह गुना से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंची थी लेकिन वह केवल 10 वर्षों तक ही कांग्रेस में रही। उसकी बाद वह जनसंघ में चली गई। विजयराजे की वजह से ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ ने अपनी मजबूत पकड़ बनाई। 1971 में जब इंदिरा गांधी की लहर पूरे देश में थी उस समय भी जनसंघ पार्टी ने यहां से 3 सीट जीती थी।
माधवराव सिंधिया 26 साल की उम्र में ही वह संसद में पहुंच गए थे, लेकिन जल्द ही उन्होंने जनसंघ को अलविदा कहते हुए कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। 1980 में वह कांग्रेस के टिकट पर गुना से सांसद बने और उसके बाद उन्हें केंद्रीय नेतृत्व में शामिल करते हुए मंत्री बनाया गया था। उसके बाद वह देश की सियासत में एक कद्दावर नेता बन गए। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता को भी उड्डयन मंत्रालय का जिम्मा दिया गया था। 2001 में एक विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया था।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता ने तो कांग्रेस का दामन थामा था लेकिन उनकी दोनों बहनें वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे ने अपनी मां का अनुसरण करते हुए बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की। वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी है और भाजपा के कद्दावर नेता है। यशोधरा राजे सिंधिया मध्य प्रदेश की राजनीति में खासा मायने रखती हैं। यशोधरा राजे सिंधिया 1977 में अमेरिका चली गई थी और 1994 में भारत लौटने के बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा।
पिता माधवराज सिंधिया के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सियासत में अपने कदम रखें। जिसके बाद गुना संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में वह जीतकर संसद पहुंच गए। 2002 में जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ वह लगातार 2019 तक चलता रहा। लेकिन 2019 की मोदी लहर में उनके ही करीबी कृष्ण पाल सिंह यादव ने उनको जबरदस्त टक्कर दी। इस चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया को हार का सामना करना पड़ा।
इसके कुछ दिन बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को अलविदा कहते हुए भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। भाजपा ने उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया और अब वह केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा है।