करीब तीन महीने से देशभर के किसान दिल्ली से सटी सीमाओं पर धरना दे रहे हैं। फ़िलहाल किसान संगठनों और सरकार के बीच बातचीत का दौर थम चूका है। सरकार ने किसान संगठनों को दोबारा से बैठक की कोई तारीख भी नहीं दी है। हालाँकि आज भले ही सरकार किसान संगठनों को ज्यादा तवज्जो ना दे रही हो लेकिन कभी ऐसा भी दौर था कि सरकार को किसान नेता ही तवज्जो नहीं दिया करते थे। इतना ही नहीं सरकार और उनके हुक्मरानों को खुद ही किसानों के धरनास्थल पर जाना होता था।
1987 में जब उत्तर प्रदेश में बिजली बिल के खिलाफ किसानों का आंदोलन चल रहा था, तब वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री थे। आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे महेंद्र सिंह टिकैत। आंदोलन से परेशान होकर वीर बहादुर सिंंह ने महेंद्र सिंह टिकैत से बात की। कहा कि वे सिसौली (टिकैत के गांव) में किसानों की पंचायत में आना चाहते हैं और किसानों के लिए कुछ घोषणा करना चाहते हैं। टिकैत ने आने की शर्त रखी- आपके साथ ना कांग्रेस का झंडा होगा और ना ही कोई राजनीतिक कार्यकर्ता या पुलिसवाला आएगा।
वीर बहादुर सिंह ने महेंद्र सिंह टिकैत की शर्त बूल करते हुए 11 अगस्त को सिसौली जाने की तारीख तय की। जब वीर बहादुर सिंह का हेलिकॉप्टर उतरा तो उन्होंने देखा उनके स्वागत तक के लिए कोई नहीं था। हेलीपैड से मंच तक पैदल ही जाना पड़ा। मंच पर पहुँचने के बाद जब टिकैत ने लोगों को संबोधित करना शुरू किया तो अपने भाषण में सीएम को जम कर खरी खोटी सुनाई। इतना ही नहीं जब वीर बहादुर सिंह ने मंच पर मौजूद लोगों से पीने के लिए पानी माँगा तो टिकैत के कार्यकर्ताओं ने उन्हें चूल्लू से पानी पिलाया। टिकैत के कार्यकर्ताओं के इस व्यवहार से वीर बहादुर सिंह नाराज हो गए और अपना अपमान समझ बैठे। इसके बाद वे बिना धरना को संबोधित किये हुए ही वापस लखनऊ लौट आये।
तत्कालीन सीएम मायावती को भी महेंद्र सिंह टिकैत ने पानी पिला दिया था। मायावती के लिए एक जातिसूचक शब्द बोलने के बाद उन्होंने अफसरों को आदेश दिया- टिकैत को गिरफ्तार करो। पर, सारी ताकत लगाकर भी प्रशासन टिकैत के समर्थकों की घेराबंदी तोड़ कर उन्हें गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं जुटा सका। अंत में एक ‘डील’ के तहत टिकैत से सरेंडर करवाया गया। (पूरी कहानी यहां पढें)
1988 में 25 अक्तूबर को महेंद्र सिंंह टिकैत को महेंद्र सिंंह टिकैत ने किसानों का बड़ा आंदोलन किया था। विजय चौक सेे इंडिया गेट तक किसानों ने कब्जा कर लिया था। ट्रैक्टर, बैलगाड़ियों के साथ-साथ बैठने-सोने के लिए खाट-पुआल तक बिछा दिए थे और हर ओर हुक्के की गड़गड़ाहट का शोर था। इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि (30 अक्तूबर) के लिए बोट क्लब पर जो मंच बन रहा था, उस पर भी किसान बैठ गए थे। लाठीचार्ज के बावजूद किसान नहीं हटे। तब चुपके से इंदिरा की पुण्यतिथि का कार्यक्रम बोट क्लब के बजाय लालकिला के पीछे वाले मैदान में आयोजित किया गया। अंत में 31 अक्तूबर को राजीव गांधी ने किसानों की सभी 35 मांगों पर फैसला करने का आश्वासन दिया और किसानों का आंदोलन खत्म हुआ था।