आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 70 साल के हो गए। 17 सितंबर 1950 को जन्मे नरेंद्र मोदी को सोशल मीडिया में लोगों की शुभकामनाएं मिल रही हैं। वहीं पीएम के जन्मदिन पर सोशल मीडिया में ‘राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस’ ट्रेंड भी कर रहा है। इस हैशटैग के साथ सोशल मीडिया यूजर्स प्रधानमंत्री को ट्रोल कर रहे हैं। ट्रोल्स लिख रहे हैं कि पीएम की नीतियों के कारण देश में इतनी भयंकर बेरोजगारी और मंदी आ गई है।

एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने देश के बेरोजगारों जो पीएम के जन्मदिन को राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस के तौर पर मना रहे हैं उनके लिए खुला खत लिखा है। रवीश कुमार ने ये खत अपने फेसबुक पेज पर लिखा है। रवीश कुमार ने अपने खत में लिखा है कि आप बेरोज़गारों ने प्रधानमंत्री के जन्मदिन को अपनी बात कहने का मौक़ा चुना है। अच्छी बात है कि लगातार फेल होने के बाद भी आप नौजवान कोशिश कर रहे हैं। पढ़ें रवीश कुमार का पत्र:

मेरे प्यारे बेरोज़गार मित्रों,

छोटा पत्र लिख रहा हूं। मैं आपके आंदोलन से प्रभावित नहीं हूं।आपमें जनता होने का बौद्धिक संघर्ष शुरू नहीं हुआ है। आपकी राजनीतिक समझ चार ख़ानों तक ही सीमित है। इसलिए आप लोगों से कोई उम्मीद नहीं रखता। जो युवा मीडिया और मीम से भीड़ में बदले जा सकते हैं वे आगे भी बदले जाएंगे। आप मुझे सही साबित करेंगे। जनता बनने की लड़ाई सबसे मुश्किल लड़ाई होती है। आप जनता नहीं बन सके। अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं और वो भी छोटी लड़ाई। आप असफलता के लिए अभिशप्त हैं।

लेकिन बार-बार नए-नए तरीक़े से संघर्ष करने की कोशिश से मैं साढ़े तीन प्रतिशत प्रभावित हुआ हूं। मैं जातिवादी और सांप्रदायिक हो चुके नौजवानों से इतनी ही उम्मीद रखता हूं। प्यारे मुल्क के लोकतांत्रिक वातावरण को बर्बाद करने में आप सभी का भी योगदान रहा है। मैं नेता नहीं हूं जो आपका वोट चाहता हूँ। मुझे सांप्रदायिक हो चुके नौजवानों का हीरो नहीं बनना है। जो युवा व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी की मीम के गुलाम हैं मुझे उनसे उम्मीद नहीं है।

आप बेरोज़गारों ने प्रधानमंत्री के जन्मदिन को अपनी बात कहने का मौक़ा चुना है। अच्छी बात है कि लगातार फेल होने के बाद भी आप नौजवान कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह कोशिश यूपी या बिहार तक सीमित न रहे। बंगाल तक भी जाए और पंजाब तक भी। बिहार तक भी जाए और मध्य प्रदेश तक भी। रोज़गार के स्वरूप के व्यापक प्रश्नों को भी शामिल करें। अपनी परीक्षा, अपना रिज़ल्ट की भावना आपके आंदोलन को कहीं नहीं पहुँचने देगी। कालेजों की फ़ीस का भी हाल देख लें। कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की गुणवत्ता और उनकी नौकरी का हाल देख लें। ठेके पर पढ़ाने वाले शिक्षक आपका भविष्य नहीं बना सकते। अपनी लड़ाई का दायरा बड़ा करें। लड़ाई से मेरा मतलब आरती से है। दिल्ली पुलिस ने दंगों की चार्जशीट में लिखा है कि चक्काजाम लोकतांत्रिक नहीं है। क्या पता लड़ाई लिखने पर कोई धारा लग जाए। इसलिए आप आरती करें। अब वही करने को बचा है।

बेरोज़गार यह भी समझ लें कि उन्हें मीडिया में बाहर कर दिया है। इसलिए बग़ैर मीडिया कवरेज के शांतिपूर्ण और शालीन संघर्ष की कामना करें। स्वाभिमान पैदा करें कि बिना मीडिया के भी वर्षों संघर्ष करेंगे। मोमबत्ती जलाने के बाद न्यूज़ चैनल न खोलें कि वहाँ दिखाया जा रहा है या नहीं। न्यूज़ चैनलों ने जनता का ब्रेन वॉश कर दिया है। मानसिक रूप से बेरोज़गार कर दिया है। न्यूज़ चैनलों को बेरोज़गार कीजिए। देखना बंद करें। लोगों को समझाएँ।

आप मुख्यधारा के अख़बारों और चैनलों पर एक रुपया खर्च न करें। ख़ुद देखें कि आप क्यों पढ़ते हैं इन्हें।इनमें ख़बर नहीं होती है। होती है तो असर नहीं होता है क्योंकि दिन रात प्रोपेगैंडा छाप कर जनता को चेतना शून्य कर दिया है। इसलिए सिर्फ़ रोज़गार की लड़ाई न लड़ें। एक पाठक और दर्शक की भी लड़ाई लड़ें । कुछ वेबसाइट है जिन्हें सपोर्ट करें।

आपने ही प्रधानमंत्री को चुना है लेकिन मुझे बुरा लगा कि आपने उन्हें जन्मदिन की बधाई नहीं दी। छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता। अटल जी की पंक्ति है। उन्हें भी खुले मन से जन्मदिन की शुभकामनाएँ दीजिए। ट्विटर पर मैंने आपके सारे पोस्टर देखे, अगर एक पंक्ति शुभकामनाओं के लिख ही देंगे तो आपका आंदोलन छोटा नहीं होगा। उन पोस्टरों को देख कर लगा कि आपके आंदोलन में विचार की कमी है। बहुत बोरिंग है आपका आंदोलन। तभी लगा कि मुझे पत्र के ज़रिए आपसे संवाद करना चाहिए।

ख़ुद को बदलना ही पहला आंदोलन होता है।जो लिखा है उसे ध्यान से पढ़ें। आप सफल हों।