केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के गुर्जर मुस्लिम समुदाय के गुलाम अली को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। गृह मंत्रालय द्वारा 10 सितंबर की रात जारी अधिसूचना जारी कर गुलाम अली को राज्यसभा भेजे जाने की जानकारी दी गई। जैसे ही गुलाम अली का नाम सामने आया तो कुछ लोग गुलाम अली को गुलाम नबी आजाद समझ बैठे और उनका नाम लेकर तंज कसने लगे। 

गुलाम अली और गुलाम नबी आजाद में भ्रमित हुए लोग

सोशल मीडिया पर कई लोगों ने गुलाम अली को गुलाम नबी आजाद समझकर ट्वीट किया और उन पर तंज कसने लगे। पत्रकार पंकज झा ने ट्वीट किया कि कई लोगों ने कश्मीर से राज्य सभा के उम्मीदवार गुलाम अली को गुलाम नबी आज़ाद समझ लिया। बिहार में एक प्रचलित कहावत है हड़बड़ी में ब्याह और कनपटी में सिंदूर।

जल्दबाजी में नेता और पत्रकारों हो गये ट्रोल

पत्रकार रोहिणी सिंह ने भी एक ट्वीट किया लेकिन उन्होंने ने भी गुलाम अली को गुलाम नबी आजाद समझकर लिखा कि जाहिर है, नाटक और नखरे इसके लिए थे। क्लासिक लुटियन में जो एक दिन के लिए भी दिल्ली के दिल में एक बंगले के बिना नहीं रह सकते। हालांकि रोहिणी सिंह का यह ट्वीट डिलीट हो गया लेकिन लोग उन्हें ट्रोल करने लगे। कांग्रेस नेता अजय माकन का भी ऐसा ही एक ट्वीट का स्क्रीनशॉट वायरल हो रहा है।

ऐसे हुई खिंचाई

भाजपा महिला मोर्चा की नेता नेतू देवास ने लिखा कि दुनिया सुधर जाएगी मगर ये 2 BHK वाले नहीं सुधरेंगे। गुलाम अली को गुलाम नबी आजाद समझ लिया। निशांत आजाद ने लिखा कि गुलाम अली और गुलाम नबी में अंतर नहीं समझ आता है और लिखना इनको हर मुद्दे पर है। अरे ठीक है अपने मालिक को खुश करना है लेकिन उस चक्कर में छीछालेदर थोड़ी कराना है। हम फर्स्ट, हम फर्स्ट के चक्कर में मत पड़ो। भाजपा नेता तजिंदर पाल सिंह बग्गा ने लिखा कि इसी लिए बड़े बुजुर्ग कहते हैं अच्छी संगत में रहा करो , देख लिया राहुल जी की संगत का असर।

पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने लिखा कि नीरा राडिया के जरिये संस्थानों में नौकरी मिलती रही। राजनीतिक दलों का प्रचार करके जाने क्या-क्या? इसीलिए गुलाम नबी और गुलाम अली का अंतर समझ नहीं आता। शिवानंद द्विवेदी ने लिखा कि अक्सर फ्लैट, बंगला और घरों की हसीन दुनिया में खोए हुए लोग गुलाम “अली” और गुलाम “नबी” में फर्क तक नहीं कर पाते है। वसीम आर खान ने लिखा कि जब राजा को यह नहीं पता की आटा किलो में या लीटर में बिकता है तो प्रजा को गुलाम अली या गुलाम नबी में क्या फर्क मालूम पड़ेगा?

बता दें कि गुलाम नबी आजाद ने हाल ही कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उनके भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं तेज थी। हालांकि उन्होंने इससे साफ़ इंकार कर दिया था। ऐसे में जब गुलाम अली को राज्यसभा भेजे जाने की अधिसूचना जारी हुई तो लोग कन्फ्यूज हो गए और गुलाम अली की जगह, गुलाम नबी आजाद समझ बैठे और फिर ट्रोलिंग का शिकार हो गए।