प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को अपने जन्मदिन के मौके पर नामीबिया से भारत पहुंचे चीतों को कूनो नेशनल पार्क में रिलीज किया। अब इस मामले को लेकर राजनीति शुरू ही गई है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया मनमोहन सिंह की सरकार में शुरू हुई थी लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस के किसी नेता का नाम लेना भी उचित नहीं समझा है।

क्या बोले जयराम रमेश?

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी एक तस्वीर शेयर करते हुए सरकार को आड़े हाथों लिया है। जयराम रमेश ने ट्वीट किया, “पीएम शासन में निरंतरता को शायद ही कभी स्वीकार करते हैं। चीता प्रोजेक्ट के लिए 25.04.2010 को केपटाउन की मेरी यात्रा का ज़िक्र तक न होना इसका ताज़ा उदाहरण है। आज पीएम ने बेवजह का तमाशा खड़ा किया। ये राष्ट्रीय मुद्दों को दबाने और भारत जोड़ो यात्रा से ध्यान भटकाने का प्रयास है।

पीएम मोदी पर कसा तंज

एक अन्य ट्वीट में जयराम रमेश ने लिखा कि 2009-11 के दौरान जब बाघों को पहली बार पन्ना और सरिस्का में स्थानांतरित किया गया, तब कई लोग आशंकाएं व्यक्त कर रहे थे। वे गलत साबित हुए। चीता प्रोजेक्ट पर भी उसी तरह की भविष्यवाणीयां की जा रही हैं। इसमें शामिल प्रोफेशनल्स बहुत अच्छे हैं। मैं इस प्रोजेक्ट के लिए शुभकामनाएं देता हूं!

कुछ अन्य लोगों की प्रतिक्रियाएं

सौरभ राय ने लिखा कि “चीता” भी कांग्रेस की देन, भाजपा सरकार ने कुछ किया है? हिन्दू-मुसलमान छोड़कर! कांग्रेस ने भी ट्वीट कर कहा है कि ‘प्रोजेक्ट चीता’ का प्रस्ताव 2008-09 में तैयार हुआ। मनमोहन सिंह जी की सरकार ने इसे स्वीकृति दी। अप्रैल 2010 में तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश जी अफ्रीका के चीता आउट रीच सेंटर गए। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट पर रोक लगाई, 2020 में रोक हटी। अब चीते आएंगे।

राष्ट्रमंच ट्विटर हैंडल से लिखा गया कि भारत के न्यूज़ चैनलों पर चीता का इतना कवरेज होगा कि रविवार सुबह तक पूरा देश चीता विशेषज्ञ हो चुका होगा पर आपको ये नहीं बताया जाएगा कि 2008-09 में कांग्रेस सरकार ने प्रोजेक्ट चीता का प्रस्ताव तैयार किया था। साहब ये भी कॉपी कर ले गए। रणविजय सिंह ने लिखा कि तो ‘प्रोजेक्ट चीता’ मनमोहन सरकार की देन है, मुझे लगा था मोदी जी ने कुछ किया होगा, यहां भी कुछ नहीं किया।

चीतों को नेशनल पार्क में छोड़ने के बाद पीएम मोदी ने कहा, ‘मैं हमारे मित्र देश नामीबिया और वहां की सरकार का भी धन्यवाद करता हूं जिनके सहयोग से दशकों बाद चीते भारत की धरती पर वापस लौटे हैं। मुझे विश्वास है कि ये चीते ना केवल प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का बोध कराएंगे, बल्कि हमारे मानवीय मूल्यों और परंपराओं से भी अवगत कराएंगे।’