टेक्नोलॉजी ने जिंदगी जीने के हमारे तरीके को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। इंटरनेट, स्मार्टफोन और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी आने के साथ ही बहुत सारी ऐसी चीजें जिनकी कल्पना करना भी पहले मुश्किल था, वो अचानक से ना केवल आसान हो गई बल्कि कब हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गईं, हमें पता भी नहीं चला। घर बैठे बिल पे करना, ग्रॉसरी ऑर्डर करना हो या कैब बुक करना सारे काम बस एक ऐप के जरिए आसानी से हो जाते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि टेक्नोलॉजी और सुविधाओं के आने से सबकुछ बहुत आसान हो गया। वो कहते हैं ना कि हर चीज की कुछ ना कुछ कीमत चुकानी ही पड़ती है। पहले इंटरनेट सस्ता हुआ और फिर हमें इसकी आदत पड़ गई। और अब हम इसके लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं। इसी तरह 5 मिनट में ग्रॉसरी का सामान घर तो पहुंच रहा है लेकिन ऊंचे दामों और कई सारे अतिरिक्त चार्ज के साथ। कुछ ऐसा ही कैब एग्रिगेटर्स के साथ भी है। आज हम बात करेंगे कि कैसे 2 मिनट और 5 मिनट में टैक्सी मिलने की पीछे ग्राहकों का पैसा लूटा जा रहा है।

Ola, Uber हो या Rapido ये कैब प्रोवाइडर्स अपने हिसाब से टैक्सी के चार्ज तय करते हैं। कई बार ऐसा होता है कि आमतौर पर एक निश्चित दूरी (5-6 किलोमीटर) की दूरी के लिए 100 रुपये में बुक होने वाली कैब अचानक से 200 रुपये में बुक होती है। लेकिन ‘कम कीमत, तुरंत उपलब्धता’ की नीति पर चलने वाले ये टैक्सी ऐप्स ग्राहक की मजबूरी को जानते हैं और प्राइस सर्ज के नाम पर दोगुने-तीन गुना तक दाम वसूल लेते हैं। क्या वाकई ये ऐप्स, लोकल ऑटो व टैक्सी की तुलना में महंगे हैं? और डिस्काउंट व ऑफर, छिपे हुए चार्ज के नाम पर ग्राहकों से ज्यादा पैसा चार्ज कर रहे हैं। चलिए इस एक्सप्लेनेशन में इस ‘कैब के कैशलेस कट्स’ की तह तक चलते हैं।

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पीक-आवर सर्ज: 2 गुना बेस फेयर

पिछले साल तक Ola-Uber-rapio पीक आवर्स के समय सिर्फ 1.5 गुना तक चार्ज कर सकते थे, लेकिन नये Motor Vehicles Aggregator Guidelines (MVAG 2025) के तहत अब वे 2 गुना तक चार्ज कर सकते हैं, यानी प्लेटफॉर्म को अनुमति है पीक आवर्स (Peak Hours) में बेस फेयर दोगुना लेने की।

केन्द्र सरकार ने कुछ समय पहले ही पीक आवर्स सर्ज प्राइस को वैध कर दिया है। गैर-पीक समय में भी कम से कम 50% बेस फेयर चार्ज कर सकते हैं।

नतीजा: पीक समय में वही 100 रुपये की बेस राइड अब 200 रुपये तक पहुंच जाती है। वहीं ऑफ-पीक में भी 50 रुपये से नीचे जाना मुश्किल है।

एयरपोर्ट चार्ज: मनमानी वसूली

दिल्ली के IGI एयरपोर्ट से राइड लेते ही कैब का प्राइस बढ़ जाता है। एयरपोर्ट के लिए एक नई पिक-अप फीस लागू है:

245 रुपये + 18% GST, जो कि लगभग 289 रुपये बनता है।

खास बात है कि यह रकम Ola-Uber को नहीं बल्कि एयरपोर्ट ऑपरेटर (DIAL) को जाती है। और इसके एवज में यात्रियों को कोई अतिरिक्त सुविधा नहीं दी जाती।

नतीजा: कभी-कभी तो पूरी राइड का आधा हिस्सा इसी पिक-अप चार्ज में निकल जाता है।

छिपी हुई फीस + ट्रांसपेरेंसी की कमी

Financial Express की रिपोर्ट के मुताबिक, कई बार पीक-टाइम चार्ज, सर्विस फीस, ‘कन्वीनियंस फीस’ जैसी अतिरिक्त रकम उस फाइनल बिल में शामिल हो जाती है, जो आप ऐप पर बुकिंग के बाद ही देखते हैं। वे पहले से स्पष्ट नहीं की जाती।

इस तरह की छिपी हुई फीस यात्रियों का भरोसा तोड़ देती है और उन्हें यह लगने लगता है कि ऐप्स ‘चोरी’ कर रहे हैं क्योंकि आखिरी में ज्यादा रकम ले जाते हैं और वो भी बिना बताये।

फी मॉडल: कमीशन या फ्लैट फीस?

Ola का जीरो-कमीशन मॉडल (अब फ्लैट-फीस रूप में)

Ola ने हाल ही में पूरे भारत में एक जीरो-कमीशन मॉडल लागू किया है। यानी चालकों को कमीशन नहीं देना पड़ेगा, वे किराए की पूरी रकम रखेंगे।

लेकिन, इस पर एक डेली फ्लैट-फीस लागू है, जो 67 रुपये प्रतिदिन है। ड्राइवर चाहे 1 राइड करें या 10, इसे देना ही पड़ता है।

इससे एक्टिव और ट्रैफिक वाले इलाकों में काम करने वाले चालकों को फायदा हो सकता है। लेकिन नए या कम ट्रैफिक वाले इलाकों में काम करने वालों को आर्थिक जोखिम हो सकता है।

Uber का सब्सक्रिप्शन तरीका (कमीशन छोड़ कर फी)

Uber भी भारत में कमीशन छोड़कर मेंबरशिप-आधारित मॉडल पर काम कर रहा है। फ्रंट-लाइन ड्राइवरों को कमीशन नहीं देना, बल्कि इन्होंने एक फिक्स्ड सब्सक्रिप्शन चार्ज लेना शुरू कर दिया है, जो ड्राइवरों के लिए अनिश्चितता पैदा करता है।

नतीजा: आपको ऐसा लग सकता है कि जीरो-कमीशन मॉडल पर काम किया जा रहा है। पर असल में निश्चित और कई बार छिपे हुए तरीके से फीस वसूली जाती है।

डिफरेंशियल प्राइसिंग: iPhone-ऐंड्रॉयड में कैब प्राइस

MediaNama की रिपोर्ट के अनुसार, Ola और Uber पर कुछ केसों में iPhone यूजर्स को Android की तुलना में ज्यादा चार्ज कर दिया गया। जिस पर Consumer Protection Authority ने दोनों प्लेटफॉर्म को नोटिस भेजा है।

हमने खुद यह अनुभव किया है कि एक ही डेस्टिनेशन के लिए ऐंड्रॉयड यूजर्स को कम जबकि आईफोन यूजर्स को कैब के रेट ज्यादा दिखते हैं।

नतीजा: यूजर के इस्तेमाल किए गए डिवाइस के आधार पर भी कीमतें बदल सकती हैं। जो पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करती हैं।

नियम और जवाबदेही की कमी

महाराष्ट्र में सरकार ने “Cool Cabs” (मेटर्ड टैक्सियां) जैसा फेयर कंट्रोल Ola-Uber पर लागू करने की पेशकश की थी, लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया। चार्जेस पर स्टेट-लेवल नियंत्रण नहीं है।

नतीजा: भारत में ऐप-कैब्स अभी तक पूर्णतः तय मापदंडों से बाहर हैं।

क्या वाकई कैब प्लेटफॉर्म ‘चोरी’ कर रहे हैं?
ये ‘चोरी’ नहीं बल्कि एक संरचित मॉडल है। जो पारदर्शिता की कमी और नियम-पालन के अभाव के चलते यात्रियों व चालकों के लिए बोझ बन जाती है। इसीलिए, ‘कैब बुक करते ही लूट हो गई’ जैसा अनुभव होता है और ऐसा लगता है कि मजबूरी में ये प्लेटफॉर्म ग्राहकों से ‘चोरी’ कर रहे हैं।

आप क्या कर सकते हैं?

ऐप में फेयर ब्रेकडाउन देखिए, पुरानी राइड्स से तुलना कीजिए।

एयरपोर्ट से बुक करने से पहले राइड का एक्स्ट्रा चार्ज पता करिए।

एक्स्ट्रा फीस पर सोशल मीडिया या Consumer Protection Authority को रिपोर्ट करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

सवाल: Ola और Uber की कैब राइड इतनी महंगी क्यों होती है?
जवाब: Ola और Uber में सर्ज प्राइसिंग, एयरपोर्ट पिकअप फीस और छिपे हुए चार्जेस शामिल होते हैं। साथ ही सरकार के नए नियमों के तहत पीक आवर में कंपनियां बेस फेयर का 2 गुना तक चार्ज कर सकती हैं।

सवाल: क्या Ola–Uber एयरपोर्ट से अलग से फीस लेते हैं?
जवाब: हां, जैसे दिल्ली IGI एयरपोर्ट पर Ola–Uber राइड में लगभग 245 रुपये + 18% GST यानी करीब 289 रुपये का अतिरिक्त पिकअप चार्ज जुड़ता है। यह रकम एयरपोर्ट ऑपरेटर को जाती है।

सवाल: Ola का Zero Commission मॉडल क्या है?
जवाब: Ola ने ड्राइवरों के लिए जीरो कमीशन मॉडल शुरू किया है। इसमें ड्राइवर पूरा किराया रखते हैं, लेकिन उन्हें रोजाना एक निश्चित फ्लैट फीस (करीब 67 रुपये) चुकानी पड़ती है।

सवाल: क्या Ola और Uber अलग-अलग डिवाइस पर अलग किराया दिखाते हैं?
जवाब: कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार iPhone यूजर्स को Android यूजर्स की तुलना में अधिक किराया दिखाया गया है। इस मुद्दे पर उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ने नोटिस भी भेजा है।

सवाल: कैब राइड का खर्च कम करने के लिए क्या किया जा सकता है?
जवाब: ऑफ-पीक टाइम पर बुकिंग करें, एयरपोर्ट से बाहर जाकर कैब लें, लोकल टैक्सी या ऑटो से तुलना करें और हमेशा बिल का ब्रेकडाउन ध्यान से चेक करें।