पैंतालीस साल की सुनीता मेहरा को कमर दर्द के कारण अस्पताल जाना पड़ा। डॉक्टर ने उन्हें दवाओं के साथ सुबह और शाम की सैर करने की सलाह दी। डॉक्टर ने सुनीता से कहा कि कितनी भी दवा खा लीजिए, लेकिन जब तक शारीरिक गतिविधि और व्यायाम नहीं करेंगी तब तक आपका शरीर स्वस्थ नहीं रहेगा। सुनीता ने कहा कि वो घर के सारे काम करती है झाड़ू-पोछा से लेकर कपड़े व बर्तन तक, फिर अलग से सैर और कसरत की क्या जरूरत।
डॉक्टर ने सुनीता को समझाया कि आधुनिक घरों के घरेलू काम ज्यादातर एक ही स्थिति में रह कर करने होते हैं तो उससे शरीर में जकड़न बढ़ ही जाती है। घर के काम कसरत और सैर का विकल्प नहीं हो सकते हैं। शरीर को स्वस्थ रहने के लिए चलना बहुत जरूरी है।
सुबह की सैर
सुनीता अब रोजाना सुबह की सैर के लिए अपने घर के नजदीकी पार्क में जाती है। पार्क जाने के बाद उसे अहसास होने लगा है कि घर के काम तो इसका विकल्प हो ही नहीं सकते हैं। पेड़ों के बीच सुबह की ठंडी हवा सुनीता के मन को ताजगी से भर देती है। लेकिन सुनीता को यह देख कर कोफ्त होती है कि पार्क में ज्यादातर उम्रदराज महिलाएं ही आती हैं। पचास से कम उम्र की बहुत कम महिलाएं यहां आती हैं।
सबसे बातचीत के बाद सुनीता ने यही पाया कि इन महिलाओं ने भी अपनी सेहत पर बहुत देर से ध्यान देना शुरू किया है। डॉक्टर की चेतावनी के बाद ही ये सुबह की सैर के लिए निकली हैं। अभी भी मोहल्ले की कम उम्र की लड़कियां और नई बहू की पहचान वाली औरतें सेहत के नाम पर आंखें मूंदे हुए हैं।
घर का काम नहीं पर्याप्त
आम मध्यमवर्गीय घरों में लड़कियों और महिलाओं के बीच यही समझ बनाई जाती है कि घर के काम से बड़ी कोई कसरत नहीं है। गर्भवती महिलाओं को भी पोछा लगाने से लेकर घर के अन्य काम करने की सलाह दी जाती है। मेडिकल दिक्कतों के कारण जिन महिलाओं को डॉक्टर पूरी गर्भावस्था अवधि के दौरान बिस्तर पर आराम की सलाह देते हैं उन्हें भी यह ताना सुनने को मिल जाता है कि हमने तो अपनी गर्भावस्था में अस्पताल जाने के पहले तक इतनी रोटियां बनाई थी तो इतने कपड़े धोए थे।
ये ताना देने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि पहले शिशु और मातृ मृत्यु दर बहुत ज्यादा होती थी। लेकिन आज चिकित्सा विज्ञान में उन्नति के कारण मुश्किल गर्भावस्था को भी डॉक्टर संभाल लेते हैं। उचित मेडिकल देख-रेख के कारण जच्चा और बच्चा दोनों की सेहत संभाल ली जाती है। इसलिए आज के समय की पुराने समय से पारंपरिक तुलना सही नहीं है। गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों को डॉक्टर की सलाह पर अमल करना चाहिए न कि काम करते रहने के घरेलू नुस्खे अपना कर अपने और गर्भस्थ शिशु को नुकसान में डाल दिया।
इन दिनों सड़क से लेकर पार्क और जिम तक में आपको सेहत की फिक्र करते हर उम्र के पुरुष दिख जाएंगे। कोई बैटमिंटन खेलता हुआ दिख जाएगा तो कोई जॉगिंग करते हुए। अगर घर के काम से सेहत बनती तो शायद पुरुषों ने ही घर के काम पर कब्जा कर लिया होता और महिलाओं को इससे दूर रखा होता। इसलिए महिलाओं को भी सेहत के मामले में पुरुषों की नकल कर लेनी चाहिए।
समय-समय पर जरूरी जांच
आम तौर पर महिलाएं जब तक बहुत दिक्कत नहीं हो जाए तब तक सेहत पर खर्च करने को फिजूलखर्ची ही मान बैठती हैं। रक्तचाप से लेकर मधुमेह तक की जांच डॉक्टर के खतरे के निशान को मापने के बाद ही करवाती हैं। अगर रक्तचाप और मधुमेह की स्थिति के बारे में शुरुआती दौर में ही पता चल जाता है तो बहुत सी बीमारियों को समय रहते काबू किया जा सकता है। इसलिए तीस साल की उम्र के बाद महिलाओं को अपनी सेहत पर खास ध्यान देना चाहिए। ज्यादातर घरों में प्रसव या अन्य स्त्री-रोग से जुड़े मामलों को छोड़ स्त्रियों की अन्य बीमारी पर तवज्जो ही नहीं दी जाती है।
साफ है कि महिलाओं को अपने रक्तचाप से लेकर मधुमेह और अन्य तरह की जांच समय-समय पर कराते रहनी चाहिए। घर के काम पर निर्भर न रह कर अपनी मुकम्मल सेहत पर ध्यान देना चाहिए। अपने दैनिक जीवन में कसरत से लेकर सैर तक को समय रहते शामिल कर लेना चाहिए।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)