देश में एक बार फिर हड़तालों का नया दौर शुरू होने वाला है। बैंक कर्मचारियों के एक दिवसीय हड़ताल के साथ ही, अतिथि शिक्षकों, चिकित्सकों, कोषागार कर्मियों, मनरेगा कर्मियों, सफाई कर्मचारी की हड़ताल की चेतावनी दी जा चुकी है। आने वाले दिनों में देश में हड़तालों का एक लंबा सिलसिला शुरू होने जा रहा है। सरकारी विभागों के विभिन्न कर्मचारी संगठनों द्वारा अपने लंबित मांगे मनवाने के लिए हड़ताल पर जाने की खबरें लगातार आ रही है। इसमें बैंक, बीमा, रेल विभाग, राज्यों के परिवहन कर्मी, लेखपाल और सफाई कर्मचारियों के संगठन प्रमुख है। इन प्रस्तावित हड़तालों के मद्देनजर नई सरकार के सामने हड़ताल के रोग का स्थाई निदान ढूंढ़ना एक बड़ी कठिन चुनौती है। इसका एक मतलब यह भी कि सतातंत्र अपने कर्मचारियों की इच्छाओं और जरूरतों का ख्याल नहीं रख पा रहा है।

दरअसल, जब भी सेवा क्षेत्र से जुड़े संस्थानों द्वारा हड़ताल की जाती है तो उसका सबसे बुरा असर आम लोगों के जनजीवन पर पड़ता है। इसकी वजह से उनका दैनंदिन जीवन छिन्न भिन्न हो जाता है। नतीजतन, उससे प्रभावित होने वाले आम लोगों को इस वजह से खासी दिक्कतों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अलबत्ता, आने वाले दिनों में नासूर बनने जा रहे हड़ताल के इस रोग आम आदमी फिर चपेट में आ सकता है।

इस समय देश की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र ही अहम भूमिका निभा रहा है। ऐसे में अगर हड़ताल होती है तो व्यापारिक और आर्थिक तौर पर समूची व्यवस्था का पंगु होना लाजिमी है। आज देश का हर आदमी फिर भले ही वह कोई व्यापारी हो, मजदूर हो, किसान हो, या फिर कोई बड़ा उद्योगपति, कही न कहीं सेवा क्षेत्र से अवश्य जुड़ा है। ऐसे में हड़तालों कि वजह से उसका कारोबार प्रभावित होना तय है।

हमारे देश में अपनी मांगों को मनवाने के लिए हड़ताल करने का एक लंबा इतिहास रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद श्रम संगठनों द्वारा अपनी मांगें मनवाने और अधिकार पाने के लिए हड़ताल का उपयोग एक अचूक हथियार के रूप में किया गया। शुरुआती दौर में यह हथियार अधिंकांश अवसरों पर काफी कारगर भी साबित हुआ। लेकिन कालांतर में इसके अत्यधिक इस्तेमाल के चलते यह अपनी धार खो बैठा है। इसके बावजूद हमारे देश में हड़ताल का होना एक आम बात है। हड़ताल का फैलाव इस कदर हुआ है कि आम लोगों को आए दिन देश में कहीं न कहीं हड़ताल की समस्या से रूबरू होना पड़ता है। आए दिन कभी सरकारी एअर लाइंस के पायलट हड़ताल पर चले जाते हैं तो कभी हड़ताली कर्मचारियों कि वजह से रेल सेवाएं बाधित हो जाती तो कभी शिक्षक हड़ताल पर चले जाते है तो कभी बैंक, बीमा, दूरसंचार जैसे महत्त्वपूर्ण संस्थान के कर्मचारी हड़ताल पर चले जाते है।

रही सही कसर राजनीतिक दल बंद या रैली कर पूरी कर देते है। सिर्फ कर्मचारियों को ही दोष देना ठीक नहीं है। इसमें सरकारों का अड़ियल रवैया भी काफी हद जिम्मेदार है। प्रष्ठिानों की कर्मचारी नीतियों और हठधर्मिता की वजह से कई बार हड़तालें लंबे समय तक चलती रहने का इतिहास रहा है। यह बात सर्वमान्य है कि किसी भी देश कि प्रगति इस बात पर निर्भर करती है कि उसके द्वारा स्थापित तंत्र बिना किसी अवरोध या रुकावट के लगातार कार्यशील रहें। अगर इस तंत्र में किसी भी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न होता है तो निश्चित रूप से उस देश कि प्रगति में रुकावट आती है।

गौरतलब है कि देश में अक्सर होने वाली इन हड़तालों को केंद्र और राज्य सरकारें भी समय-समय प्रतिबंधित घोषित करती रही है। या फिर उन पर आवश्यक सेवा कानून अधिनियम के तहत कार्रवाई करने की चेतावनी देती रही हैं। हड़तालों से उत्पन्न होने वाली आम समस्याओं और राष्ट्रीय नुकसान के मद्देनजर देश की सर्वोच्च अदालत भी हड़ताल को गैरकानूनी घोषित कर चुकी है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इतने जतन करने के बावजूद हड़तालों को रोकने या कम करने के अपेक्षाकृत परिणाम आज भी हासिल नहीं हो सके हैं। हड़ताल रोकने के लिए लंबे दौर की वार्ताएं, सरकारी धौंस डपट , मध्यस्थता के प्रयास जैसे तमाम उपाय यथार्थ के धरातल तक आते-आते निष्प्रभावी हो जाते है। कई बार तो आवश्यक सेवाओं की हड़ताल के मद्देनजर एस्मा कानून लागू करने के आदेश भी कारगर नहीं हो पाते। जिसका खामियाजा आम आदमी को ही भुगतान पड़ता है।

हड़ताल को न होने देना सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ सरकार की भी जिम्मेदारी है। मसलन, हड़ताली कर्मचारियों की मांगों को राजनीतिक चश्मे से देखने की आदत से बचा जाना चाहिए। कर्मचारियों और सरकार के बीच उत्पन होने वाली समस्याओं को बातचीत के सहारे सुलझाने के प्रयास निरंतर चलते रहने चाहिए। सरकारी विभागों में एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाना चाहिए, जो समय-समय पर आवश्यक संशोधन करने के लिए सरकार और कर्मचारियों के बीच एक पुल का काम करें। हड़ताल को रोकने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि संवाद के रास्ते हमेशा खुले रखे जाएं। अब समय आ गया है इस प्रकार से होने वाली हड़तालों के कारणो को समय रहते स्थाई निदान ढूंढ़ लिया जाए।