ऐसे ही एक बार वह जंगल में शिकार के लिए गया तो फकीर को भी साथ ले गया। वहां दोनों रास्ता भटक गए। दिन ढलने को आया। भूख बहुत तेज लग आई थी। वे दोनों एक पेड़ के नीचे रुके। पेड़ पर एक ही फल लगा हुआ था। राजा ने उसे तोड़ा और छह टुकड़े कर दिए। वह कुछ भी खाने से पहले फकीर को दिया करता था। इस बार भी उसने वैसा ही किया। पहला टुकड़ा उसने फकीर को दिया। फकीर ने खाया और वाह वाह कर उठा कि क्या अद्भुत फल है। बहुत स्वादिष्ट।
राजा खुश हुआ कि चलो, फकीर को उसका दिया फल पसंद आया। उसने दूसरा टुकड़ा भी फकीर को दिया। फकीर तारीफ करते हुए दूसरा टुकड़ा भी खा गया और कहा कि उसे एक टुकड़ा और चाहिए। राजा ने उसे दे दिया। तीसरा टुकड़ा खाने के बाद फकीर ने फल की तारीफ करते हुए चौथा टुकड़ा भी उससे मांगा। अब राजा को थोड़ा अटपटा लगा कि भूख उसे भी लगी है, मगर फकीर को उसकी भूख की जैसे चिंता ही नहीं।
मगर उसने चौथा टुकड़ा भी दे दिया। फकीर ने उसे भी खा लिया और तारीफ करते हुए पांचवां टुकड़ा मांगा। अब राजा को थोड़ा क्रोध आने लगा। मगर पांचवां टुकड़ा भी दे दिया। वह टुकड़ा खाने के बाद फिर तारीफ करते हुए फकीर ने आखिरी टुकड़ा उससे मांगा। राजा ने कहा तो कुछ नहीं पर संकोच में हाथ रोके रखा। उसके मन में आया कि फकीर को मेरी भूख की कोई चिंता ही नहीं, जबकि मैं इसका इतना खयाल रखता हूं।
फकीर ने इस बार झपट कर फल का वह आखिरी टुकड़ा छीन लिया। राजा को क्रोध आया और उसने फकीर को डपटते हुए कहा, रुक जाओ। भूख मुझे भी लगी है। यह टुकड़ा मैं खाऊंगा। फकीर के हाथ से वह टुकड़ा छीन लिया। मगर जैसे ही मुंह में डाला फल इतना कड़वा था कि उसने सारा फल उगल दिया। फकीर की तरफ आश्चर्य से देखने लगा।
फकीर ने कहा, तुम्हारे हाथों से आज तक इतने स्वादिष्ट फल खाए हैं, प्रेम से दिए इस एक कड़वे फल की शिकायत क्या करता। राजा के मन में उस फकीर के प्रति प्रेम और बढ़ गया। ऐसी कृतज्ञता से हम भर उठें, तो सुख भला कहां दूर रह पाएगा हमसे।