चेतावनी के संकेत स्पष्ट थे। विपक्षी दलों को यह आभास था कि क्या होने वाला है, लेकिन लगता है कि सलाहकारों ने अपने नेताओं को रोक रखा है। तमिलनाडु के अलावा, युद्ध के लिए तैयार सैनिकों को तुरंत युद्ध के मैदान में कहीं नहीं उतारा गया है। पश्चिम बंगाल में ‘इंडिया’ गठबंधन अब भी जन्म नहीं ले सका है; बिहार में, नीतीश कुमार की चिरपरिचित कलाबाजी ने तैयारियों को पटरी से उतारने की कोशिश की, लेकिन वे विफल रहे। महाराष्ट्र में, सहयोगी दल सीटों के बंटवारे को लेकर बहस कर रहे हैं, जबकि भाजपा विपक्षी खेमे के नेताओं की खरीद-फरोख्त में व्यस्त है।
उत्तर प्रदेश में, सपा और कांग्रेस एकजुट हैं, लेकिन अभी तक जंग में उतरे नहीं हैं। दिल्ली और झारखंड में, हालांकि सेनाएं तैयार हैं, मगर उनके सेनापति सलाखों के पीछे हैं। केवल तमिलनाडु में ऐसा है कि ‘इंडिया’ और विरोधी दलों के बीच लड़ाई शुरू है। और विरोधी दल सचमुच ‘शुरुआत अच्छी हो तो आधा काम पूरा हो जाता है’ वाली कहावत याद दिलाने लगे हैं।
उनतीस में से सात राज्यों की स्थिति यह है कि कर्नाटक, तेलंगाना, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे प्रमुख युद्धक्षेत्रों में, कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है। इसके विपरीत, ओड़ीशा और आंध्र प्रदेश किसी पूर्व-लिखित नाटक के मंच की तरह लगते हैं, वास्तविक युद्ध के मैदान की तरह नहीं।
शस्त्रागार
भाजपा ने अपने सारे हथियार झोंक दिए हैं। सबसे ऊपर असंवैधानिक चुनावी बांड (ईबी) के जरिए इकट्ठा किए गए धन का विशाल भंडार है। चुनावी बांड की सच्चाई- जिसे मैंने वैध रिश्वतखोरी कहा था- अब सबको मालूम है। ऐसे कई मामले हैं जहां तलाशी/ गिरफ्तारी हुई, बांड खरीदे और दान किए गए, बांड भुनाए गए और मामलों को दफ्न कर दिया या दानदाताओं पर अहसान किया गया (लाइसेंस, अनुबंध के जरिए)। तारीखें कहानी बयान करती हैं। एक सरल सीधी रेखा बिंदुओं को जोड़ती है। समाचार पत्रों, टीवी और ‘बिलबोर्डों’ में विज्ञापनों के माध्यम से विशाल आयुध सामग्री झोंक दी गई है। भाजपा असमान खेल मैदान पर खेल रही है।
अगला, ‘आपरेशन लोटस’ है, जो भाजपा की एक और जानी-पहचानी कवायद है: दलबदल को प्रोत्साहित करना और दलबदलुओं को टिकट देना। मुझे बताया गया कि भाजपा चार सौ से कुछ अधिक उम्मीदवारों को नामांकित करेगी। पचास तक उम्मीदवार दलबदलू होंगे।
राज्य सरकारों को अस्थिर करना
शस्त्रागार में एक घातक हथियार है ‘गिरफ्तारी और नजरबंदी’। निशाने पर दो मुख्यमंत्री, एक उपमुख्यमंत्री, कई राज्यमंत्री, मुख्यमंत्रियों और अन्य नेताओं के परिवार के सदस्य और विपक्षी राजनीतिक दलों के नेता हैं। फिलहाल, संसद के दोनों सदनों में भाजपा के 383 सांसद, 1481 विधायक और 163 एमएलसी हैं। इनमें पूर्व गैर-भाजपा नेता भी शामिल हैं, जो विशाल ‘लांड्री मशीन’ में धुल कर शुद्ध और बेदाग हो गए है। मुझे नहीं पता कि 2027 व्यक्तियों में से किसी के खिलाफ कोई जांच चल रही है या नहीं; अगर कोई चल रही है, तो यह दुर्लभ अपवाद और हैरानी की बात हो सकती है।
राज्य सरकारों के कामकाज में अड़ंगा डालने के लिए राज्यपालों का इस्तेमाल किया जा रहा है। तमिलनाडु के राज्यपाल ने राज्य सरकार द्वारा तैयार किया गया भाषण विधानसभा में पढ़ने से इनकार कर दिया; एक अवसर पर वे विधानसभा की कार्यवाही का बहिर्गमन कर गए। उन्होंने मुख्यमंत्री की ‘सहायता और सलाह’ के बावजूद किसी व्यक्ति को मंत्री पद की शपथ दिलाने से इनकार कर दिया।
केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के राज्यपालों की मुख्यमंत्रियों के साथ बार-बार नोकझोंक होती रहती है। तेलंगाना की राज्यपाल (पुदुचेरी की सह उपराज्यपाल) व्यावहारिक रूप से कई महीनों तक तमिलनाडु में रहीं और जिस दिन लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हुई, उन्होंने बिना देर किए अपने पद से इस्तीफा दे दिया और भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का इरादा जता दिया! राज्यपाल विधेयकों पर सहमति देने से इनकार करते या उन्हें अनिश्चित काल के लिए रोकते रहे हैं। भाजपा शासित राज्यों में ऐसे असंवैधानिक कृत्य नहीं होते।
संविधान के साथ विश्वासघात
दूसरा हथियार है, राज्य सरकारों को अस्थिर करना। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के मंत्रियों और मुख्यमंत्री के आदेशों की अवहेलना करने के चलते पंगु हो गई है। केरल और पश्चिम बंगाल जैसी राज्य सरकारों की किसी न किसी बहाने धनराशि रोकी जाती रही है। किसी न किसी शर्त के उल्लंघन का हवाला देकर गैर-भाजपा राज्य सरकारों की उधार सीमा में कटौती की गई है। अनिर्दिष्ट आधारों पर तमिलनाडु को आपदा राहत सहायता देने से इनकार कर दिया गया।
केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य के पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति में यूपीएससी अहम भूमिका निभाए। राज्य के राज्यपाल और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने राज्य वित्तपोषित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति के राज्य सरकार के अधिकार पर अंकुश लगा दिया है। नतीजतन, केंद्र सरकार के प्रति निष्ठा रखने वाले सत्ता केंद्र राज्यों में उभरे और राज्य सरकारों के अधिकारों को चुनौती दे रहे हैं। राज्य की स्वायत्तता का लगातार क्षरण हो रहा है।
आरएसएस-भाजपा एक एजंडे के तहत काम कर रहे हैं। आरएसएस के नेताओं का सोचना है कि वे काफी लंबे समय तक इंतजार कर चुके हैं और लोकसभा चुनाव में जीत उनके एजंडे को पूरा करने के लिए एक ‘प्रस्थान बिंदु’ साबित होगा। उनके एजंडे में शामिल हैं: एक राष्ट्र एक चुनाव, समान नागरिक संहिता (यूसीसी), नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन, कृषि कानून और पूजा स्थल अधिनियम को निरस्त करना। भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में कुछ और खुलासे हो सकते हैं। यह अंतिम प्रहार होगा।