तकनीक के विकास के साथ जैसे-जैसे इंसान ने तालमेल बिठाया है, वैसे-वैसे कई स्तर पर इसे ही आधुनिकता का पैमाना बना लिया गया है। मगर इस क्रम में यह याद रखना जरूरी नहीं समझा गया कि जिन तकनीकों के सहारे इंसान खुद को आधुनिक घोषित करने चला है, उसमें उसकी इंसानी संवेदना कहां और कितनी बच सकेगी। आज हालत यह है कि हर हाथ में मौजूद स्मार्टफोन या मोबाइल के छोटे से पर्दे ने लोगों को इस कदर गुम कर दिया है कि उसमें इंसानी संवेदनाओं की जगह लगातार सिमटती जा रही है।

इसमें कोई दोराय नहीं कि विज्ञान और तकनीकी की दुनिया ने मनुष्य के जीवन को आसान बनाया है। मगर क्या तकनीक पर निर्भरता इस स्तर तक हो सकती है या होनी चाहिए कि उसके सम्मोहन में मनुष्य अपना विवेक या सोचने-समझने की शक्ति खो दे और उसे किसी अपने की हत्या तक कर डालने में कोई हिचक न हो?

गौरतलब है कि हाल के दिनों में ओड़ीशा और मध्य प्रदेश में दो अलग-अलग घटनाओं में दो युवकों ने लगातार स्मार्टफोन देखते रहने से मना किए जाने पर अपने परिवार के ही सदस्यों पर जानलेवा हमला किया। ओड़ीशा के जगतसिंहपुर जिले में इक्कीस साल के एक कालेज छात्र ने भारी पत्थर से कुचल कर अपने मां-पिता और बहन की हत्या कर दी। हमले की वजह यह थी कि उसके मां-पिता और बहन ने छात्र को हमेशा ही मोबाइल पर ‘आनलाइन गेम’ खेलते रहने से मना किया था।

इसी तरह, मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले से भी ऐसी ही दहला देने वाली खबर आई। एक किशोर को उसके माता-पिता पिता ने हर वक्त में मोबाइल में डूबे रहने से मना किया। इसके बाद किशोर ने लोहे की छड़ से माता-पिता पर हमला कर दिया। इसमें उसके पिता की जान किसी तरह बच सकी, लेकिन मां की जान चली गई।

राजस्थान के जयपुर में तेरह साल की एक बच्ची को उसके माता-पिता ने मोबाइल देखने से मना किया और इससे गुस्साई उस बच्ची ने पहले अपने हाथ की नस काट ली, तो उसके अभिभावकों ने इलाज करा कर उसे बचा लिया। मगर अगले ही दिन उसने नदी में कूद कर जान दे दी।

निर्भरता की हद

इन तीन घटनाओं ने हर संवेदनशील व्यक्ति को यह सोचने पर मजबूर किया है कि मनुष्य के जीवन में तकनीक का दखल किस हद तक हो, इसका दायरा कहां तक हो, इस पर निर्भरता की सीमा क्या हो। कई बार यह यकीन कर पाना मुश्किल हो जाता है कि जिस विज्ञान और तकनीक ने मनुष्य के जीवन और विचार के फलक को असीम विस्तार दिया, उसमें किसी खास तकनीकी ने उसकी मनोग्रंथियों के स्वरूप को संवेदनशून्य होने के स्तर तक विकृत कर दिया है।

सवाल है कि जो तकनीक जनजीवन को सुविधाजनक और आसान बनाने के लिए आम उपयोग में दाखिल हुआ, वह आज मनुष्य को मनुष्य से छीन लेने के एक कारगर औजार के तौर पर क्यों और कैसे काम करने लगा है? आखिर क्या कारण है कि स्मार्टफोन या मोबाइल के छोटे-से पर्दे, यानी स्क्रीन में अपनी दिलचस्पी की कोई चीज देखते-देखते ऐसी मन:स्थिति में गुम हो जाता है कि उसे देश-दुनिया का भान नहीं रहता और वह कुछ पल के लिए भी खुद को उससे अलग कर पाने में असमर्थ हो जाता है।

जरूरत से आगे

हालांकि आज की पीढ़ी के युवा इस बात को शायद अतीत की किसी गैर-महत्त्व की बात की तरह याद करते होंगे या फिर कुछ को यह पता भी नहीं होगा कि जिस स्मार्टफोन के चार-पांच इंच के पर्दे में उनकी दुनिया सिमट गई है, वह उस मोबाइल की अगली सीढ़ी है, जिससे अलग-अलग दो जगहों पर मौजूद लोग सिर्फ बात कर पाते थे या फिर सिर्फ एक दूसरे को संदेश भेज सकते थे। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास की विस्तृत दुनिया की बातों के समांतर उसी मोबाइल की शक्ल आज स्मार्टफोन के इस रूप में है, जिसकी छोटी स्क्रीन ने बच्चों से लेकर बड़ों तक की आंखों को अपने भीतर कैद कर लिया है और उनके सोचने-समझने की प्रक्रिया तक को बुरी तरह सीमित, केंद्रित और कई अर्थों में बाधित कर दिया है। वरना क्या कारण है कि कोई व्यक्ति बिना किसी वजह या मकसद के भी हर वक्त मोबाइल के पर्दे में गुम रहता है, जरूरत न होने पर भी फोन उठा कर उसके स्क्रीन पर अंगुलियां फिराने लगता है? उससे दूर होने के खयाल भर से किसी बच्चे या किशोर या युवा के भीतर अगर आक्रामकता उभर आती है या वह जानलेवा हद तक हिंसक हो जाता है, तो इसकी क्या वजह है?

लत का हासिल

दरअसल, मोबाइल में कोई भी चीज देखते रहना या गेम खेलना महज मनोरंजन नहीं रह गया लगता है। ऐसा लगता है कि इसे लगातार देखते रहने के क्रम में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क के भीतर ऐसे बदलाव होते हैं कि उसके लिए खुद को मोबाइल के पर्दे से दूर करना एक मुश्किल काम हो जाता है। यह बदलाव मनोविज्ञान या सोचने-समझने के ढांचे तक के स्तर पर भी होता है, जिसके नतीजे में व्यक्ति पहले तो अपने स्तर पर इस बात का अहसास नहीं कर पाता कि मोबाइल में गुम रहने की वजह से उसे फायदा कितना हो रहा है और इसके मुकाबले उसके कितने जरूरी काम बाकी रह जा रहे हैं, कितना वक्त जाया हो रहा है। जब मोबाइल देखने की वजह से उपजी बाधा के क्रम में किसी काम में कोई बड़ा नुकसान हो जाता है, तब जाकर सिर्फ उस काम के न हो पाने का अफसोस होता है। इसके बावजूद अगर स्मार्टफोन का सम्मोहन नहीं छूट पाता है, तो निश्चित रूप से यह कोई जटिल संरचना है, जिसकी जकड़बंदी विवेक पर हावी हो जाती है।

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तेज रफ्तार दुनिया में खुद के पीछे छूट जाने के डर से पीड़ित व्यक्ति बहुत आसानी से मोबाइल की लत में डूबता चला जाता है। इस बात पर मनोवैज्ञानिक और अन्य स्तर पर गंभीर अध्ययन की जरूरत है कि मोबाइल में लगातार अपनी रुचि की चीजें देखते रहने, आनलाइन गेम खेलने की स्थिति किन वजहों से लत में तब्दील हो जाती है और उसे छोड़ने या उसमें गुम रहने से मना करने पर किसी युवा या बच्चे के भीतर हिंसा या आक्रामकता पैदा होने की क्या वजह है। मोबाइल के पर्दे में ऐसा कौन-सा सम्मोहन है कि वह किसी के समूचे व्यक्तित्व को अपने अदृश्य जंजीरों में इस कदर कैद कर लेता है कि उसे बाकी दुनिया की कोई फिक्र नहीं रह जाती?

जाल की जड़

दरअसल, जब किसी किशोर या युवा के भीतर इस मन:स्थिति की बुनियाद पड़ रही होती है तब हम इस बात को लेकर बेफिक्र होते हैं या फिर उसे गंभीरता से नहीं लेते। इसकी भी वजह शायद यह है कि ज्यादातर लोग कमोबेश एक ही गतिविधि में लीन रहते हैं, इसलिए उन्हें दूसरों से कोई शिकायत नहीं होती। ऐसे दृश्य आम हैं, जिनमें किसी घर में मेहमान आए हों या फिर घर के ही सदस्य किसी कमरे की बैठक में आसपास बैठे हों, मगर आपस में बात करने के बजाय लगभग सभी अपने-अपने स्मार्टफोन में रील देखने या सोशल मीडिया के किसी मंच पर एक पंक्ति लिखने, उस पर आई टिप्पणियां या पसंदगी का चटका गिनने में मशगूल होते हैं। कई लोगों की हालत यह है कि उन्हें कोई जरूरी काम निपटाने, पढ़ाई करने, किसी से मिलने, बात करने के बजाय मोबाइल में दस-बीस सेकंड के वीडियो देखना और उससे भी आगे इस तरह के रील बनाना ज्यादा जरूरी काम लगने लगा है।

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कुछ घरों में यह भी देखा जा सकता है कि बच्चा अपने अभिभावकों या पड़ोस के बच्चों के साथ प्रत्यक्ष गतिविधियों वाला कोई खेल खेलना चाहता है, मगर उसे न तो बच्चों का साथ मिलता है, न ही उसके अभिभावकों का। जबकि ठीक उसी समय ऐसे बच्चे अपने आसपास ज्यादातर लोगों को स्मार्टफोन में गुम देखते हैं। इस स्थिति का बच्चों पर क्या असर पड़ेगा? स्वाभाविक तौर पर बच्चा भी धीरे-धीरे इंटरनेट से लैस स्मार्टफोन में ही कोई गेम खेलने लगता है और धीरे-धीरे इसी पर उसकी निर्भरता बढ़ती जाती है। इस स्थिति के लिए किसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी?

जरूरी बनाम मजबूरी

एक समस्या यह है कि अनेक वजहों से बहुत सारे बच्चों और किशोरों के लिए अपनी पढ़ाई-लिखाई के लिए स्मार्टफोन का उपयोग करने की मजबूरी पैदा हुई है। मौसम या प्रदूषण या अन्य वजहों से स्कूलों को बंद करने और आनलाइन पढ़ाई का चलन बढ़ने की वजह से बच्चों के लिए बहुत सारा वक्त अपने स्मार्टफोन या कंप्यूटर के पर्दे में लीन रहना एक जरूरत बन गई है। मगर इस पर अध्ययन किए जाने की जरूरत है कि ज्यादा देर तक स्मार्टफोन या कंप्यूटर के स्क्रीन पर पढ़ाई के क्रम में क्या बच्चों या युवाओं के भीतर कुछ ऐसे बदलाव होते हैं, उनके दिमाग और सोचने-समझने की संरचना को इस तरह प्रभावित करते हैं, जो उन्हें इंटरनेट या मोबाइल की दुनिया के संजाल में उलझा देते हैं।

आज हालत यह हो गई कि ज्यादातर लोग जो स्मार्टफोन में गुम दिखते हैं, अगर वे अपने रोजाना चार-पांच या छह या इससे ज्यादा घंटे देखी गई सामग्री और उसके हासिल पर गौर करें तो उन्हें हैरानी होगी कि उन्हें कुछ भी महत्त्वपूर्ण हाथ नहीं लगा। बल्कि बहुत कम बातें या दृश्य उन्हें याद रहे। इसके बावजूद, बिना किसी प्रयास के हाथ स्मार्टफोन की ओर बढ़ जाते हैं और उसके स्क्रीन में गैरजरूरी चीजें देखने में समय गंवाना लोगों को जरूरी लगता है। एकाग्र होकर किसी चीज को देखने दशा यह हो गई है कि बहुत सारे लोग पच्चीस या तीस सेकंड के एक वीडियो को भी तेज गति करके देखते हैं या फिर पूरा नहीं देख पाते हैं। सवाल है कि व्यक्ति के भीतर यह मानसिक अस्थिरता कैसे पैदा हुई है।

अनुपस्थित विवेक

सच यह है कि इस मोड़ पर आकर व्यक्ति के भीतर एक ऐसी लत जड़ पकड़ चुकी होती है, जिसकी चपेट में वह कुछ वक्त भी बिना मोबाइल के गुजार पाने की कल्पना नहीं कर पाता। इसी मन-स्थिति में कभी उसे मोबाइल देखने या उसमें गेम खेलने से मना किया जाता है तो उसका विवेक अनुपस्थित हो जाता है और वह अपना आपा खो देता है। इसके बाद उपजी आक्रामकता में उसे किसी पर भी हमला करने में हिचक नहीं होती या यहां तक कि कई बार वह खुदकुशी भी कर लेता है।

अगर कोई व्यक्ति लगभग हर समय स्मार्टफोन का गैरजरूरी तरीके से और कई बार आदत से मजबूर होकर इस्तेमाल करने लगता है और इस क्रम में उसे अपने जीवन की सामान्य गतिविधियों और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों की फिक्र नहीं रहती है और वह खुद को मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से नहीं रोक पाता है, तो इस स्थिति को ‘नोमोफोबिया’ कहा जाता है। इससे पीड़ित व्यक्ति का उपचार मनोचिकित्सा और मस्तिष्क पर प्रभाव डालने वाली दवाओं के जरिए भी किया जाता है।

जरूरी बनाम गैरजरूरी

दुनिया भर में संचार, मनोरंजन और सूचना के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने और इससे भी आगे इस पर निर्भर रहने वाले लोगों के आंकड़ों में तेजी से उछाल आया है। लेकिन इसके समांतर इसके लगातार इस्तेमाल करने के क्रम में एक बड़ी आबादी, जिनमें एक बड़ा हिस्सा युवाओं और किशोरों का है, स्मार्टफोन का उपयोग किसी सार्थक या उपयोगी काम करने के बजाय आनलाइन गेम से लेकर सोशल मीडिया और अन्य गैरजरूरी सामग्रियां और यहां तक कि अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक चीजें देखने में अपना वक्त जाया करने लगी है। जरूरत के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल और एक लत के तौर पर इसमें डूबे रहने में बड़ा फर्क है। विडंबना यह है कि इंटरनेट और स्मार्टफोन के संजाल में फंस कर इसके लती हो चुके लोग यह फर्क कर पाने में खुद को सक्षम नहीं पा रहे।

अगर समय रहते स्मार्टफोन के इस्तेमाल को लेकर संयमित तौर-तरीकों पर गौर नहीं किया गया, तो आने वाला वक्त वैसी घटनाओं की त्रासद समस्या खड़ी करेगा, जिन्हें हम महज इक्का-दुक्का घटनाएं मानकर सहजता से अपने स्मार्टफोन के पर्दे में अपना सिर झुका लेते हैं।

बिगड़ती सेहत

स्मार्टफोन का इस्तेमाल लत की हद तक करने का असर लोगों की मानसिक सेहत को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है और मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार बना रहा है। लत में पड़े व्यक्ति को अगर कुछ पल के लिए स्मार्टफोन से दूर कर दिया जाए या उन्हें दूर होना पड़े तो उनकी बेचैनी चेहरे पर आ जाती है। कुछ प्रत्यक्ष असर इस तरह हैं :

तनाव और उससे आगे चिंता

  • अवसाद और अलगाव या एकाकीपन
    नींद का चक्र बुरी तरह प्रभावित होना

    याददाश्त में कमी
    बाधित एकाग्रता
    बौद्धिक कौशल में गिरावट
    काम की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर
    उत्पादकता में कमी
    स्मार्टफोन के बिना खुद को कुछ नहीं समझना
    रिश्तों की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित
    आवेग पर नियंत्रण में कमी
    हिंसक आक्रामकता का विकास

    भविष्य के नतीजों के आकलन की क्षमता में कमी।

पाबंदी के सहारे

कुछ समय पहले आई एक खबर के मुताबिक, आस्ट्रेलिया में अठारह वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सोशल मीडिया पर मौजूदगी पर रोक लगाई गई। यह बच्चों को मोबाइल या स्मार्टफोन से दूरी बनाने की कोशिशों की एक कड़ी के तौर पर देखा गया है। इसके अलावा, कुछ अन्य जगहों पर भी बच्चों के मोबाइल के इस्तेमाल को सीमित किया गया है।
यूरोप में फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, पोलैंड जैसे कुछ देशों में कहीं सभी स्कूलों में, तो कहीं कुछ स्कूलों में बच्चों के मोबाइल लाने पर मनाही है। एशिया में भी चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, हांगकांग, सिंगापुर में भी आमतौर पर स्कूलों में मोबाइल फोन का उपयोग प्रतिबंधित है। कनाडा और अमेरिका में भी कई स्कूलों में मोबाइल फोन का उपयोग प्रतिबंधित या सीमित है।

मुसीबत की कड़ियां

चार मार्च, 2025
ओड़ीशा के जगतसिंहपुर जिले में 21 साल के युवक ने अपने माता-पिता और बहन की हत्या कर दी। आरोपी को मोबाइल फोन पर आनलाइन गेम खेलने की लत थी और इसे लेकर पिता और मां अक्सर उसे रोकते थे। 4 मार्च को भी जब परिजनों ने युवक को मोबाइल फोन पर गेम खेलने से रोका तो उसने पत्थर मारकर उनकी हत्या कर दी। युवक ने 25 साल की बहन को भी मौत के घाट उतार दिया।

चार मार्च, 2025
मध्य प्रदेश में बालाघाट के वारासिवनी में एक युवक ने मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से मना किए जाने के बाद अपने माता-पिता पर लोहे की छड़ से हमला कर दिया। इस घटना में मां की मौत हो गई और पिता गंभीर रूप से घायल हो गए। आरोपी बेटा नीट की तैयारी कर रहा था और मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल को लेकर अक्सर माता-पिता से झगड़ता रहता था।

चार मार्च, 2025
एक नाबालिग लड़की ने जयपुर की द्रव्यवती नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली। पुलिस के मुताबिक, परिजनों ने जब लड़की को मोबाइल नहीं दिया, तो उसने पहले अपने हाथ की नसें काट कर जान देने की कोशिश की थी। परिजन उसे अस्पताल ले गए और इलाज कराया। लेकिन अगले दिन मंगलवार को उसने नदी में छलांग लगा दी। घरवालों के अनुसार, उनकी बच्ची मोबाइल के लिए हमेशा आक्रामक हो जाती थी, इसलिए वे उसकी आदत छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे, मगर बच्ची मानने के लिए तैयार नहीं थी।

23 फरवरी, 2025
इंदौर में मोबाइल गेम की लत और जिद ने एक नौवीं कक्षा के छात्र की जान ले ली। प्रिंस मोबाइल पर फ्री फायर गेम खेलने का आदी था और पुराना मोबाइल खोने पर वह लगातार अपनी मां से नया मोबाइल दिलाने की जिद कर रहा था। इसके बाद उसने जहर खा लिया, जिससे उसकी मौत हो गई।

16 दिसंबर, 2024
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में 14 साल की लड़की ने खुदुकुशी कर ली। खबर के मुताबिक, परिजनों ने नौवीं कक्षा की छात्रा से मोबाइल छीन लिया था।

14 नवंबर, 2024
बंगलुरु में शुक्रवार को एक शख्स ने अपने 14 वर्षीय बेटे की मोबाइल की लत और पढ़ाई में दिलचस्पी न होने को लेकर बहस के बाद क्रिकेट के बल्ले से पीट-पीट कर और दीवार पर उसका सिर पटक कर हत्या कर दी।

नौ नवंबर, 2024
छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में बड़े भाई ने छोटे भाई को ज्यादा मोबाइल देखने से मना किया। मोबाइल उससे छिन लिया, जिसके बाद छोटे भाई ने जहर का सेवन कर जान दे दी।

पांच सितंबर 2024
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में एक नाबालिग लड़के ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। खबर के मुताबिक, मां ने बेटे को मोबाइल चलाने से मना किया तो उसने खुदकुशी कर ली।