‘पाकीजा’ के रिलीज होने के हफ्ते भर बाद ही जिंदगी के दर्द से अकेले लड़ते लड़ते मीना कुमारी ने चालीस साल की उम्र में दम तोड़ दिया। लेकिन मरने से पहले मीना कुमारी भारतीय सिने जगत का एक ऐसा सितारा बन गर्इं, जिसकी चमक कभी कम न हुई।
उन्होंने जीवन भर दर्द को जिया। परदे पर और निजी जीवन में भी। परदे पर तो उन्हें ट्रेजडी क्वीन का खिताब मिला, लेकिन निजी जीवन में तनहाई के सिवा कुछ हाथ न आया। कहने को मां बाप थे, प्रसिद्ध पति मिले और प्रेमियों की तो लाइन लगी रही लेकिन उनके हिस्से में तो बचपन से इस्तेमाल होना लिखा था। यहां तक की मौत के बाद भी उनके नाम का इस्तेमाल किया गया। यह कहानी है महजबीन उर्फ बेबी मीना उर्फ मीना कुमारी की। 1 अगस्त 1932 को मुंबई में जनमी महजबीन के पिता अलीबख्श संगीत के मास्टर थे। उन्होंने कुछ फिल्मों में संगीत निर्देशकों के लिए हारमोनियम बजाया और कुछ छोटी-मोटी भी भूमिकाएं भी कीं। घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चल पाता था, इसलिए महजबीन की मां इकबाल बानो ने समूह नृत्य और नाटकों में काम करना शुरू कर दिया लेकिन घर को गरीबी दीमक की तरह चाटे जा रही थी। मजबूर हो कर महजबीन को सात साल की उम्र में घर चलाने के लिए अभिनय के मैदान में उतारा गया।
पहली फिल्म बेबी मीना के नाम से आई लेदर फेस (1939)। इसके अलावा बहन, गरीब, कसौटी, प्रतिज्ञा जैसी सात आठ और फिल्मों में महजबीन ने बेबी मीना के नाम से काम किया। घर की गाड़ी किसी तरह खिंचती रही, हालांकि महजबीन को अभिनय से कोई दिलचस्पी नहीं थी। पंद्रह साल की उमर तक पहुंचते-पहुंचते बेबी मीना के हुस्न की चर्चा होने लगी। और फिर ‘बच्चों का खेल’ (1946) फिल्म से मीना बाकायदा हिरोइन बना दी गर्इं। इसके बाद ‘पिया घर आजा’ (1947) और ‘बिछड़े बालम’ (1948) जैसी फिल्मों में मीना ने काम किया लेकिन उन्हें शोहरत मिली स्टंट और पौराणिक फिल्मों से। वीर घटोत्कच (1949), श्री गणेश महिमा (1950) हनुमान पाताल विजय (1951) और लक्ष्मीनारायण जैसी कई फिल्मों में मीना कुमारी नायिका बन कर आर्इं।
माना जाता है कि कोई एक फिल्म ऐसी होती है जो अभिनेता या अभिनेत्री के जीवन में मील का पत्थर साबित हो जाती है लेकिन मीना की जिंदगी में कई ऐसी फिल्में रहीं जो मील का पत्थर साबित हुर्इं। 1952 में आई ‘बैजूबावरा’ वह पहली फिल्म थी जिसने मीनाकुमारी को सुपर हिट की श्रेणी में ला खड़ा किया। इक्कीस साल की उम्र में अपने घरवालों की मर्जी के खिलाफ मीना ने अपने से दोगुनी उम्र के कमाल अमरोही से प्रेम विवाह कर लिया। इस शादी से मीना कुमारी को कुछ भी हासिल नहीं हुआ। यहां तक की वह मां भी नहीं बन सकीं।
पहले वह पिता के हिसाब से चलती रहीं, बाद में पति के हाथों की कठपुतली बन गई। उनकी कमाई कहां जाती थी, उसका कमाल अमरोही कैसे इस्तेमाल करते थे, यह जानने की मीना ने न कभी कोशिश की न ही कमाल अमरोही ने, उन्हें कभी इसकी जानकारी दी। धीरे धीरे एक सफल अभिनेत्री और एक चर्चित फिल्मकार के बीच अहं के टकराव ने मीना कुमारी और कमाल अमरोही के बीच दूरियां बढ़ा दीं।
लेकिन ये दूरियां बढ़न से पहले मीना ने कमाल के लिए ‘दायरा’ नाम की फिल्म में काम किया। फिल्म तो सफल नहीं रही लेकिन अपने जीवंत अभिनय के लिए मीना कुमारी ट्रेजडी क्वीन कहलाने लगीं। ‘परिणता’ में भी गंभीर अभिनय का जौहर दिखा कर मीना ने सबको विस्मित कर दिया। धीरे धीरे मीना कुमारी निराश, भावुक, किस्मत की मारी नायिका के लिए मीना कुमारी आदर्श मानी जाने लगीं। चिराग कहां रोशनी कहां, दिल अपना और प्रीत पराई, साहब, बीबी और गुलाम, भाभी की चूड़ियां, दिल एक मंदिर और मैं चुप रहूंगी जैसी फिल्मों में मीना ने भावुक दर्शकों को खूब रुलाया।
कमाल अमरोही की बेरुखी के दौर में ही भारत भूषण, धर्मेंद्र , फिल्मकार सावन कुमार और गुलजार से मीना कुमारी की नजदीकियां बढ़ीं, लेकिन किसी के साथ ने भी उन्हें वह सुकून नहीं दिया जिसकी उन्हें तलाश थी। अब मीना कुमारी ने शराब को ही अपना स्थायी दोस्त बना लिया। बचपन में ही काम के बोझ ने मीना को पढ़ाई करने का मौका नहीं दिया, जिसका उन्हें जीवन भर दुख रहा। लेकिन घर में उर्दू के माहौल में पलते बढ़ते मीना कुमारी कब शेर लिखने लगीं, इसका उन्हें अहसास ही नहीं हुआ। इस शायरी में दिलचस्पी की वजह से ही उनकी कमाल अमरोही से नजदीकियां बढ़ी थीं।
कमाल अमरोही से उनके मतभेद इतने बढ़ गए कि मीना कुमारी ने उनका घर छोड़ दिया। तब तक कमाल अमोरही फिल्म ‘पाकीजा’ शुरू कर चुके थे। फिल्म का काम रुक गया। मीना कुमारी ने खुद को शायरी और शराब के हवाले कर दिया। अब उन्होंने चरित्र अभिनय की भूमिकाएं करनी शुरू कर दी थीं। ‘दुश्मन’ और ‘मेरे अपने’ ऐसी ही फिल्में थीं जिनमें मीना कुमारी ने उम्र दराज महिला का किरदार निभाया। इस बीच नर्गिस और सुनील दत्त ने ‘पाकीजा’ फिल्म के शूट हुए कुछ हिस्से देखे। उन्होंने मीना से अनुरोध किया कि ‘पाकीजा’ जरूर पूरी करें। मीना कुमारी राजी हो गर्इं और इस तरह फिल्म पूरी हुयी। यह फिल्म मीना कुमारी और कमाल अमरोही ही नहीं बल्कि हिंदी सिनेमा के इतिहास में भी मील का पत्थर साबित हुई। ‘पाकीजा’ के रिलीज होने के हफ्ते भर बाद ही जिंदगी के दर्द से अकेले लड़ते लड़ते मीना कुमारी ने चालीस साल की उम्र में दम तोड़ दिया। लेकिन मरने से पहले मीना कुमारी भारतीय सिने जगत का एक ऐसा सितारा बन गर्इं, जिसकी चमक कभी कम न हुई।