गजेंद्र सिंह और मृणाल वल्लरी

दिग्गज हुए यहां पस्त: राष्ट्रीय राजधानी की चमक-दमक देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं और घूम कर चले जाते हैं। कौन यहां कब आकर बसा, इस पर हंगामा भी खूब है। इसी दिल्ली में एनआरबी (नॉन रेसिडेंशिल बिहारी) भी मुहावरा बन गया। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में बसे मुखर्जी नगर में प्रशासनिक सेवा की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों के ठिकाने सबसे ज्यादा हैं। यहां के युवाओं को इस बात की चिंता नहीं है कि कमरा कितना छोटा है, चिंता इस बात की है कि कितनी मेहनत करें कि बड़ी नौकरी मिल जाए। वे यहां के मतदाता नहीं हैं, इसलिए यहां की समस्याओं पर मुखर नहीं हैं। वहीं नई दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन और ग्रीन पार्क में वैसे परिवारों के युवा रहने आते हैं, जिनके लिए वहां के महंगे किराए के मकानों में रहना स्टेटस का मामला है। इनके लिए कई मुकम्मल मुकाम हैं सरकारी नौकरी के सिवा।

दिल्ली में सात लोकसभा सीटें हैं और सातों सीटों के इलाकों का मिजाज इस पश्चिमी दिल्ली के मुखर्जी नगर जैसा ही अलग-अलग है। पश्चिमी दिल्ली जहां सिख समुदाय की आबादी वाला क्षेत्र है, तो दक्षिणी दिल्ली में ऐतिहासिक इमारतों, क्लबों तथा बारों की अधुनिक दिल्ली का मिलाजुला संगम है। पूर्वी दिल्ली में आधुनिक परिवेश और कस्बाई संस्कृति दिखती है, तो नई दिल्ली सीट में लटयन की बसाई हुई दिल्ली खूबसूरती में चार चांद लगाती है। इसी तरह उत्तर-पूर्वी दिल्ली और उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में ग्रामीण और अनधिकृत कालोनियों में रहने वालों की संख्या है। अंतिम सीट चांदनी चौक है, जहां मुगल बादशाहत की छाप दिखती है। लाल किला और जामा मस्जिद जैसी ऐतिहासिक इमारतों के बीच इस इलाके में सांप्रदायिक सौहार्दभी देखने को मिलता है। इस तरह दिल्ली की अलग-अलग लोकसभा सीटों के तहत आने वाले इलाकों में रहने वाले लोगों की जरूरतों और उम्मीदों पर भी अलग-अलग राय देखने को मिलती है। एक करोड़ अड़सठ लाख जनसंख्या वाले शहर में साक्षर लोगों की संख्या 81.21 फीसद है। यहां जाति का गणित कितना काम करता है, वह इलाकों के ऊपर निर्भर करता है, लेकिन पूरी दिल्ली को इसमें शामिल नहीं कर सकते। राजेश खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मनमोहन सिंह जैसे उम्मीदवारों से दो-चार हो चुकी दिल्ली हमेशा से ही अपना साफ रुख दिखाती रही है। दो सितारों की टक्कर में सबसे ज्यादा प्रभावशाली राजेश खन्ना को चुनना हो या फिर बड़े अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह और महात्मा गांधी के पोते को नकारना हो। यहां के इलाकों और रहने वाले लोगों के मिजाज से ही आज तक पार्टियां अपने उम्मीदवार उतारती आईं हैं।
पूर्वी दिल्ली में आई ऑक्सफोर्ड वाली आतिशी: पूर्वी दिल्ली को यमुनापार का इलाका कहा जाता है। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान काफी चर्चा में आया। उस समय यहां काफी काम हुआ और जल्द ही दिल्ली के अन्य इलाकों की तरह यह भी चमका। यहां पॉश सोसाइटियां हैं और मध्यम और निम्न वर्ग के घर भी हैं। यहां की आबादी काफी मिलीजुली है। पिछली बार यहां से सांसद बने भाजपा के महेश गिरि को इस बार भाजपा ने अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है। यह वही सीट है, जो श्रीश्री रविशंकर के यमुना किनारे सिंचाई की भूमि पर हुए भव्य आयोजन की वजह से काफी चर्चा और विरोध में आ गई थी। गिरि खुद भी रविशंकर के अनुयायी थे। इस बार इस सीट से कांग्रेस ने अपने दिग्गज उम्मीदवार अरविंदर सिंह लवली को मैदान में उतारा है। 89.31 फीसद साक्षरता दर वाले इस इलाके में दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए आनर्स की पढ़ाई कर चुके लवली लोगों का समर्थन मांग रहे हैं।

भाजपा ने यहां सैंतीस वर्षीय क्रिकेटर गौतम गंभीर को टिकट दिया है। गंभीर की छवि एक खिलाड़ी होने के नाते लोकप्रिय हैं, लेकिन अचानक दिल्ली चुनाव लड़ने आए गंभीर जनता का मन टटोल रहे हैं। दिल्ली के सभी उम्मीदवारों में सबसे रईस गंभीर अपनी प्रतिद्वंद्वी और आम आदमी पार्टी की नेता आतिशी के निशाने पर रहे हैं। आतिशी सैंतीस साल की हैं और जंगपुरा एक्सटेंशन में रहती हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, इंग्लैंड से एमएमसी की पढ़ाई कर चुकीं आतिशी ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ कर शिक्षा में काफी काम किया। इलाके में लोग उनको काफी होशियार और बेबाक मानते हैं। आतिशी के पास दिल्ली में न तो अपनी जमीन है और न ही अपना घर। इन्होंने अपनी आय का स्रोत बचत और फिक्सड डिपाजिट से आने वाले ब्याज को बताया है। बसपा ने यहां से अड़तालीस वर्षीय संजय कुमार को उतार कर जनता की नब्ज पकड़ने की कोशिश की है। संजय डीएवी कॉलेज से बारहवीं पास हैं और सरकारी नौकरी कर चुके हैं।

दक्षिण में इस बार कड़ी टक्कर: जब दक्षिण दिल्ली सीट जैसी मिलीजुली दिल्ली की बात होती है, तो वहां से ग्रामीण छवि वाले रमेश बिधूड़ी का जीतना थोड़ा चकित करता है। यह वही सीट है जहां से 1999 में मनमोहन सिंह को तीस हजार वोट से हार मिली थी, वह भी तब जब 1991 में आर्थिक उदारीकरण के लिए पूरे विश्व में उनका परचम लहरा रहा था। हालांकि, पिछली बार मोदी लहर में बिधूड़ी को जनता ने संसद भेजा, लेकिन इस बार टक्कर कड़ी बताई जा रही है। दक्षिण दिल्ली के मौजूदा सांसद बिधूड़ी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकॉम और कानून की पढ़ाई चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से की है।

व्यापार और किराए की वसूली से जीविका चलाने वाले बिधूड़ी की चल संपत्ति एक करोड़ रुपए से अधिक है। कुतुबमीनार, तुगलकाबाद किला और मकबरों की रूमानियत के बीच पले-बढ़े यहां के 86 फीसद से अधिक लोग साक्षर हैं। लोगों के मिजाज को भांपते हुए आम आदमी पार्टी ने युवा नेता राघव चड्ढा को मैदान में उतारा है। तीस साल के राघव चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं, युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं। कांग्रेस ने राघव और बिधूड़ी को टक्कर देने के लिए बॉक्सर विजेंदर सिंह को उतारा है। विजेंदर तैंतीस साल के हैं, स्नातक हैं, लेकिन एक खिलाड़ी होने के कारण पहले से लोकप्रिय हैं। बसपा ने अपने बावन वर्षीय उम्मीदवार सिद्धांत गौतम को उतारा है, जो पेशे से वकील हैं।

अनधिकृत कालोनियों वाली पश्चिम दिल्ली: पश्चिमी दिल्ली में सिख समुदाय बहुतायत में हैं। यहां अनधिकृत कालोनियां भी अधिक हैं, जिनमें बाहर से आकर लोग बसे हैं। साक्षरता के हिसाब से देखें तो यहां की करीब 86.98 फीसद आबादी पढ़ी-लिखी है। यहां मौजूदा समय में भाजपा के इकतालीस साल के प्रवेश वर्मा सांसद हैं। पेशे से व्यापारी और सामाजिक कार्यकर्ता वर्मा ने दिल्ली के फोर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से एमबीए किया है। आम आदमी पार्टी ने यहां से बलबीर सिंह को टिकट दिया है। सैंतालीस वर्षीय बलबीर पेशे से वकील हैं और मेरठ से विधि की पढ़ाई की है। कांग्रेस ने अपने पुराने नेता महाबल मिश्र को यहां से टिकट दिया है, जो बिहार से प्री-यूनिवर्सिटी सर्टिफिकेट प्राप्त हैं। इनके पास कृषि योग्य भूमि भी है और सामान्य भूमि भी। वाणिज्यिक बिल्डिंग भी है और खुद का घर भी। पैंसठ वर्षीय महाबल मिश्र स्थानीय लोगों के बीच जाने जाते हैं।

चांदनी चौक की नब्ज पकड़ रहे डॉक्टर साहब: चांदनी चौक दिल्ली की ऐसी सीट है, जो दिल्ली की एक तरह से जान कही जा सकती है।
ऐतिहासिक इमारतें और आदर्श कालोनी जैसे इलाके में पुरानी पीढ़ी के लोगों की मौजूदगी बताती है कि वे सांप्रदायिक सौहार्द के प्रति कितने संजीदा हैं। सदर, मॉडल टाउन, लाल किला, मिर्जा गालिब, पराठों वाली गली और जामा मस्जिद से इसकी पहचान है। मौजूदा समय में यहां हर्षवर्धन भाजपा से सांसद हैं।
कानपुर के मेडिकल कॉलेज से कान, नाक और गले में मास्टर ऑफ सर्जरी कर चुके डॉक्टर हर्षवर्धन यहां लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं और सादगी के लिए जाने जाते हैं।

कांग्रेस ने हर्षवर्धन के खिलाफ पुराने कांग्रेसी जेपी अग्रवाल को उतारा है। जेपी दिल्ली विश्वविद्याल से स्नातक हैं और काफी समय पहले चांदनी चौक से चुनाव जीत चुके हैं। अग्रवाल चांदनी चौक सीट से दो बार संसद पहुंच चुके हैं। आम आदमी पार्टी ने पंकज गुप्ता को इस सीट से खड़ा किया है। इलाहाबाद से बीई इलेक्ट्रॉनिक कर चुके पंकज पीतमपुरा में रहते हैं। पेशे से साफ्टेवयर का काम करने वाले और परामर्शदाता पंकज गुप्ता इलाके में लोगों के बीच समर्थन मांग रहे हैं। चांदनी चौक दिल्ली के पुराने इलाकों में है, जहां लोगों की नब्ज पकड़ना थोड़ा मुश्किल है। ऐसे में यहां के मतदाताओं का मिजाज भी अभी उम्मीदवार समझ नहीं पा रहे हैं

चमकते चेहरों वाली नई दिल्ली: नई दिल्ली यहां की सबस वीवीआइपी सीट है। यहां लुटियन दिल्ली के अलावा कनॉट प्लेस और संसद भवन तो हैं ही, सुप्रीम कोर्ट के जज से लेकर राष्ट्रपति तक इसी सीट के तहत आते हैं। इस इलाके में पाकिस्तान से विस्थापित लोग रहते हैं और पंजाब से आए लोगों का घर भी लाजपत नगर और करोलबाग सरीखे इलाकों में पड़ता है। नई दिल्ली की 88.34 फीसद आबादी पढ़ी-लिखी है। यहां की मौजूदा सांसद भाजपा की मीनाक्षी लेखी हैं। शत्रुघ्न सिन्हा, राजेश खन्ना, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भी इसी सीट से अपना दावा ठोक चुके हैं। लेकिन शोहरत कुछ को ही मिली। इस बार इस सीट पर कांग्रेस ने दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रह चुके अजय माकन को उतारा है।

माकन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन में परास्नातक हैं और राजौरी गार्डन में रहते हैं। पचपन वर्षीय माकन और इक्यावन वर्षीय मीनाक्षी को टक्कर देने के लिए आम आदमी पार्टी ने रोहिणी में रहने वाले बृजेश गोयल को मैदान में उतारा है। बृजेश जयपुर से बीएससी पास हैं और व्यापार करते हैं। यहां के मतदातओं के मिजाज को समझना खासा मुश्किल बताया जाता है।

उत्तर-पश्चिमी सीट के गांवों को शहर होने का इंतजार: उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में सबसे अधिक गांव हैं। यहां चौदह लाख से अधिक मतदाता हैं। नरेला और बवाना ऐसे इलाके हैं, जहां सबसे अधिक वैध और अवैध कारखाने हैं। सीवर और पानी की समस्या सबसे अधिक है। चौरासी फीसद के आसपास साक्षर इलाके में मौजूदा सांसद उदित राज हैं, जो भाजपा से निकल कर अब कांग्रेस में जा चुके हैं। इस बार भाजपा ने उनको टिकट न देकर पंजाबी गायक हंसराज हंस को दिया है। पंजाब के रहने वाले हंसराज सत्तावन साल के हैं और भाजपा में अभी शामिल हुए हैं।

जलंधर से मैट्रिक पास हंसराज के खिलाफ आम आदमी पार्टी ने गुगन सिंह को उतारा है। कक्षा आठ तक पढ़े गुगन सिंह अपने निजी कार्य से जीविका चलाते हैं। कांग्रेस ने अपने पुराने नेता राजेश लिलौठिया को यहां से उम्मीदवार बनाया है। दोनों उम्मीदवारों में लिलौठिया सबसे अधिक शिक्षित हैं। उन्होंने सिक्किम मणिपाल विश्वविद्यालय से प्राकृतिक आपदा पर एमएससी किया है। यहां सबसे अधिक चुनौती हंसराज हंस के लिए है।