आमतौर पर सभी लोग यह इच्छा रखते हैं कि उनके पड़ोस में रहने वाला व्यक्ति भला हो। स्वाभाविक ही इस तरह की इच्छा रखने वाले सभी व्यक्ति को भी इस कसौटी पर खरा उतरना होगा, तभी यह संभव है। वरना एकतरफा कोई अच्छा पड़ोसी नहीं हो सकता।

सिमटती दुनिया

आस-पड़ोस के लोगों के बीच सहयोग और सद्भाव पर आधारित संबंधों के मामले में अब ग्रामीण जीवन को ही याद किया जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि शहरों में जैसे-जैसे जीवन का स्तर कथित तौर पर ऊपर उठा है, लोग अपने-अपने दायरों में कैद होने लगे हैं। बहुमंजिला इमारतों में बने फ्लैटों में कई बार एक घर में किसी की मौत हो गई होती है तो किसी घर में किसी खुशी के मौके पर जश्न मन रहा होता है। संभव है कि यह संवेदनहीनता की वजह से नहीं हो, मगर इसकी वजह संवादहीनता जरूर है, जो व्यक्ति को इतना सीमित कर देती है कि उसे अपने पड़ोस में रहने वालों की खबर नहीं होती। इस लिहाज से देखें तो एक अच्छा पड़ोसी सबकी कामना होगी, मगर इसके लिए अच्छा पड़ोसी बनने की भी चुनौती है।

यह ध्यान रखने की जरूरत है कि दो या ज्यादा परिवारों के बीच एक दूसरे को लेकर उपजा भरोसा एक बेहतर समाज भी बनाता है। इसमें आपसी संबंध सिर्फ औपचारिक मित्रता तक सीमित नहीं रहते, बल्कि एक दूसरे का खयाल रखने और उनकी मदद के लिए हर वक्त तैयार रहने की इच्छा एक स्वाभाविक चाह होती है।

सहयोग की कीमत

शहरों-महानगरों में, जहां लोग रिश्तेदारों से दूर होते हैं, वहां जीवनशैली आत्मकेंद्रित होती गई है, लोग एक दूसरे से कटते जा रहे हैं। मगर सगे-संबंधियों या रिश्ते-नाते के लोगों से दूरी की स्थिति में पड़ोस में रहने वाले किसी व्यक्ति या परिवार के सहयोग की कीमत तब पता चलती है, जब अचानक ही घर में कोई ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है, जिसमें एक या उससे ज्यादा लोगों की मदद की जरूरत पड़ती है। किसी भी तरह का संकट पैदा हो जाए, कोई अचानक बीमार हो जाए, तो पड़ोस में रहने वाला व्यक्ति या परिवार ही पहला मददगार होता है। इसी तरह अगर पड़ोसी से संबंध अच्छे हों, तो उसके साथ सुख-दुख बांटना, पर्व-त्योहार या अन्य खुशी के मौके पर उसे अपने साथ शामिल करना सामान्य जीवन के तनावों को भी कम करता है व खुशियों में इजाफा करता है।

परिवार की तरह

बहुत छोटी-छोटी गतिविधियों से पड़ोसी को अपने परिवार की तरह महत्त्वपूर्ण बनाया जा सकता है। मसलन, सीढ़ियों पर या रास्ते में किसी को देख कर स्वागत में अभिवादन कर देना, मुस्करा देना या घर में बने खाने-पीने के सामानों या तोहफों का आदान-प्रदान करना, कभी-कभार साथ भोजन करना आदि ऐसे संबंधों को जन्म दे जाता है, जो कई बार लंबे वक्त तक के साथ-सहयोग के रूप में कायम रहते हैं।