रोज स्कूल की छुट्टी के समय वह डंडे पर सींकों में सजे नारंगी और गुलाबी रंग की अजीब से चीज लेकर आता और एक ही सुर में पुकारता, ‘आओ-आओ रंग बिरंगे बुड्ढी के बाल खाओ, बच्चे जवान हो जाओ और बूढ़े बच्चे बन जाओ।’ उसकी रटी -रटाई आवाज सुन स्कूल से घर जाते बच्चे उसे पैसे दे झट से बाल खरीद लेते। मेरा घर स्कूल के पास ही था सो मैं पैदल ही स्कूल से घर चली आती, वह लड़का मुझे भी बुड्ढी का बाल बेचने की पूरी कोशिश करता। मैं कड़क लहजे में मना कर देती। मेरा कड़क लहजा सुन वह मेरा पीछा छोड़ देता और मैं मन ही मन सोचती कि मैं इसे लेती भी नहीं, फिर भी कितना पीछे पड़ा रहता है। समझ में नहीं आता इन लोगों से कैसे पीछा छुड़ाऊं? मैं सोचती क्यूों ये बच्चे गंदा बाल खाते हैं? कभी-कभी तो उंगलियों में चिपक जाता है तो सारी जगह चिप-चिप करता है और ऊपर से इसमें कितनी चीनी पड़ती है, वह भी तो नुकसान दायक है शरीर के लिए।
मैं उस विद्यालय में विज्ञान की अध्यापिका थी। अभी कुछ दिन बीते थे कि बच्चों की पुस्तक में नया पाठ शुरू हुआ, जिसका शीर्षक था ‘हमारा भोजन’, जिसके तहत संतुलित आहार, आहार के प्रति बरती जाने वाली शुद्धता और स्वास्थ्य के लिए अच्छे और बुरे आहार के बारे में जानकारी दी गई थी। जब मैं बच्चों को वह पाठ पढ़ा रही थी तो मैंने बताया, ‘हमें हाथ धोकर भोजन करना चाहिए, बाहर का खाना नहीं खाना चाहिए ।’ तभी मुझे वे बाल याद आ गए और मैंने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘हमें शुद्ध आहार लेना चाहिए और सड़क के किनारे बिकने वाले खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए। उन पर मक्खियां भिनभिनाती रहती हैं जैसे कि बुड्ढी के बाल जो आप लोग रोज खाते हैं, जिसमें कितने धूल के कण चिपके होते हैं। वह आप सब के पेट में जा कर बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।’ मेरे यह सब समझाने के बाद से एक-एक कर सभी विद्यार्थियों ने उस लड़के से बाल खरीदने बंद कर दिए और वह लड़का वहां नजर आना बंद हो गया।
मैं बड़ी खुश हुई कि चलो मेरे बोलने से बच्चों ने बात समझ ली।
कुछ दिन ही गुजरे थे कि एक दिन मैं पड़ोस के मंदिर गई। जब मंदिर से बाहर निकल चप्पल पहन कर चली तभी दो-तीन बच्चे प्रसाद मांगने आए और ‘ माई दो रुपया दे दे , सुबह से कुछ नहीं खाया।’ कह पैसा मांगने लगे और उनमें से एक वही बाल बेचने वाला बच्चा था। उसे देखते ही मेरे मुंह से निकल गया, ‘क्या तुम भीख भी मांगते हो ?’ इतना सुन वह कहने लगा, ‘अच्छा तो नहीं लगता लेकिन जब पेट में भूख सताती है तब अच्छे-बुरे में कुछ फर्क नहीं रहता बस रूखी-सूखी रोटी मिल जाए चाहे जैसे भी, इसीलिए मांगने लगा। अपनी भौंहें चढ़ाते हुए मैंने कहा और वह बुड्ढी के बाल उसका क्या हुआ?’ इतना सुन वह आंखों में आंसू लेकर बोला, ‘वह धंधा तो आप ही ने बंद करवा दिया मैडमजी, बच्चे अब लेते ही नहीं, कहते हैं गंदा है, बीमार हो जाएंगे, सो अब भीख मांगने लगा। मैडमजी ये बड़े-बड़े रेस्टोरेंट व होटलों में कोक, सिगरेट, शराब और न जाने कितने अन्य स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थ बिकते हैं वे सब क्यों नहीं बंद करवातीं आप, मुझ गरीब का धंधा चौपट करके आप को क्या मिला?’ उसकी बात सुन मैंने उससे पूछा, ‘और तुम्हारे माता-पता?’ कहने लगा, ‘वे आज जीवित होते तो मुझे वह धंधा न करना पड़ता और न ही भीख मांगनी पड़ती, वे तो पिछले साल जो भूकम्प आया था, उसमें मारे गए। मुझे मेरे पड़ोस के लोगों ने दूर के चाचा के पास भेज दिया। चाचा मुझे रोज शराब पीकर मारता था और मेरा साथ दुराचार भी करता था, सो मैं एक दिन घर से भाग गया और जो रेल गाड़ी स्टेशन पर थी उसमें बैठ गया। अगले ही स्टेशन पर टीसी ने उतार दिया, तब से बस इस शहर में दर-दर ठोकर खा रहा हूं।’
मैने पूछा और तुम रहते कहां हो? कहने लगा, ‘ फुटपाथ पर, जहां सारे भिखारी रहते हैं। मेरे हर सवाल पर उसका जो जवाब मिलता, वह मुझे अंदर तक झकझोर देता। अच्छा अब चलते हैं, यह कह मैं वहां से उठ खड़ी हुई और मैं ने जाते हुए कहा, ‘मैं कल फिर आऊंगी।’ वह मंदिर की तरफ बढ़ गया और मैं अपने घर की तरफ। मैं मन ही मन सोच रही थी जाने-अनजाने में इस लड़के के साथ बहुत बुरा किया, वह ठीक ही तो कह रहा था- बड़े-बड़े रेस्टोरेंट, होटलों में भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक चीजें खाने को मिलती हैं, उसे क्यों नहीं बंद करवातीं। मैं सोचने लगी अब मुझे इसकी पढ़ाई े शुरू कराने के लिए जरूर कुछ करना है। मैं घर जाकर रात के खाने की तैयारी में लग गई, लेकिन बार-बार मेरी नजरों के सामने उस मासूम की सूरत घूमती रही।
पति दफ्तर से आए मैंने उन्हें उस लड़के के बारे में सब कुछ बताया। उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा, ‘देखो अंजू तुम एक अध्यापिका हो, सो तुमने अपने विद्यार्थियों को अच्छे और बुरे का ज्ञान करवाया बस, इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं, भूल जाओ उस किस्से को।’ मैं कहां मानने वाली थी, सो कहने लगी, ‘ पर अनजाने में एक मासूम को तो भिखारी बना दिया मैं ने।’ मैं उसका प्रायश्चित करना चाहती हूं। ‘वह कैसे मेरे पति ने पूछा। मैं ने कहा,‘मैं उसकी शिक्षा फिर से शुरू करवाना चाहती हूं, अपने विद्यालय में उसका दाखिला करवाना चाहती हूं।’ पति कहने लगे और वह रहेगा कहां? मैं पूछ बैठी, ‘क्या हम रख सकते हैं उसे?’
मेरे पति कहने लगे, ‘हां-हां क्यों नहीं, लेकिन हमें कागजी कार्यवाही कर उसे गोद लेना होगा, शायद इसीलिए भगवान ने हमारी गोद शादी के इतने वर्षों बाद भी सूनी रखी। भगवान शायद यह नेक कार्य हमारे हाथों करवाना चाहता है। मैं ने खुशी-खुशी हामी भर दी और अगले ही दिन से मेरे पति उसे गोद लेने के लिए तैयारी में जुट गए।’ उसे तो मैं ने रख लिया अपने पास लेकिन आज भी एक सवाल मन को बार-बार कचोटता है कि न जाने ऐसे कितने बच्चे होंगे जो किसी न किसी मजबूरी के चलते सड़क पर मजदूरी करते होंगे या फिर भीख मांगते होंगे।
(रोचिका शर्मा)

